।। ग़ज़ल ।।
बचपन से भरा कौन मेरा ख्वाब ले गया ।
अम्मा की गोद जन्नत-ए-नवाब ले गया ।।
कागज़ की कई कश्तियां पानी का किनारा ।।
ये कौन दुश्मनी में बेहिसाब ले गया ।।
बचपन का वो इतवार मेरे दोस्त कहां है ।
गलियों से मुहल्लों से वो सैलाब ले गया ।।
दो उंगलियों को जोड़ते ही दोस्त बन गए ।
प्रश्नों के भँवर छोड़ के जवाब ले गया ।।
अम्मा मुझे थमा दे वो स्कूल का थैला ।
अब ज़िन्दगी का बोझ भी शराब ले गया ।।
उड़ते थे चील ,कौवा क्यों बचपन भी उड़ गया ।
बेमोल मेरी ज़िन्दगी नायाब ले गया ।।
“अवधेश” अब तू ख्वाब की दुनियाँ से लौट आ ।
उस मोड़ से वो ,शख़्स भी आदाब ले गया ।।
डॉ. अवधेश कुमार जौहरी
Last Updated on January 4, 2021 by avijauhari
- डॉ.अवधेश कुमार जौहरी
- असी.प्रोफ.(हिंदी)
- संगम विश्वविद्यालय ,भीलवाडा
- [email protected]
- 3-क-८ चन्द्र शेखर आज़ाद नगर ,भीलवाड़ा (राजस्थान)३११०१