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बचपन

।। ग़ज़ल ।।
बचपन से भरा कौन मेरा ख्वाब ले गया ।
अम्मा की गोद जन्नत-ए-नवाब ले गया ।।

कागज़ की कई कश्तियां पानी का किनारा ।।
ये कौन दुश्मनी में बेहिसाब ले गया ।।

बचपन का वो इतवार मेरे दोस्त कहां है ।
गलियों से मुहल्लों से वो सैलाब ले गया ।।

दो उंगलियों को जोड़ते ही दोस्त बन गए ।
प्रश्नों के भँवर छोड़ के जवाब ले गया ।।

अम्मा मुझे थमा दे वो स्कूल का थैला ।
अब ज़िन्दगी का बोझ भी शराब ले गया ।।

उड़ते थे चील ,कौवा क्यों बचपन भी उड़ गया ।
बेमोल मेरी ज़िन्दगी नायाब ले गया ।।

“अवधेश” अब तू ख्वाब की दुनियाँ से लौट आ ।
उस मोड़ से वो ,शख़्स भी आदाब ले गया ।।
डॉ. अवधेश कुमार जौहरी