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डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

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डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला

सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

कृषि कानून और नेताजी की चिंता

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कृषि कानून और नेताजी की चिंता …….

सर आपके चुनाव क्षेत्र से कुछ लोग आपसे मिलने आए है, आप से बात करने आए हैं ।
तुमने उनसे पूछा कि उनकी समस्या क्या है वे हमसे किस विषय पर बात करना चाहते है । पूछा था सर ” पानी पिलाने के बाद सबसे यही पूछा था ” कहने लगे नए कृषि कानून को लेकर बात करनी है , तो इस विषय पर उन्हें हमसे क्या बात करनी है यह तो हमारा मंत्रालय भी नही है फिर मान लो उन्होंने हमारे सामने अपनी समस्या रख दी तो उसे समझेंगे कैसे हम तो अभी तक “अपने मंत्रालय को भी ठीक से समझ नही पाएं है ।”
तुम ऐसा करो उनसे कहा दो की मंत्रीजी अपने मतदाताओं की समस्या दूर करने अपने चुनाव क्षेत्र में गए हुए है, सर आप बात को समझिए वे आपके चुनाव क्षेत्र से प्रोटोकाल के तहत ही आ रहे है, मेने उन्हें समझाने की कोशिश भी की थी कि मंत्रीजी मीटिंग होने के कारण दूसरे शहर गए हुए हैं तब सभी एक सुर में कहने लगे “ठीक है अब वोट डालने के समय हम भी अपने परिवार को लेकर दूसरे शहर चले चले जाएंगे ” चुनाव के समय तो कहते थे में तुम्हारे लिए आधी रात को खड़ा हूँ और आज यहां दिन में भी नही मिल रहे है बड़ी मुश्किल से कोल्ड्रिंक पिला कर उनका गुस्सा शांत किया, अच्छा कहीं से ये पता करो कि यह “कृषि बिल है क्या और इसे लेकर किसान इतना इतना विरोध, इतना परेशान क्यों हो रहे है ।”
सर उस दिन तो प्रेस कॉन्फ्रेंस में आप कह रहे थे कि मैने इस बिल का एक एक शब्द पढ़ा है और इसमें सिर्फ किसानों के हित की बात कही गई है नए कृषि कानून में जो भी नियम बनाए गए हैं उससे सिर्फ और सिर्फ किसानों का ही भला होने वाला है ।
यह आपकी सरकार है आपके मत से चुनी हुई सरकार है जो केवल किसानों के हित की बात करती है , इसलिए आप लोग किसी के बहकावे में न आए और हमारी नियत पर भरोसा करे ।
हाँ, हाँ कहा था ! मगर तुम तो जानते हो कथनी और करनी में अंतर होता है ! हम तो पिछले पचास वर्ष से कह रहे है देश मे गरीबी खत्म करेंगे अब तुम्ही बताओ हुई क्या ,नही हुई सर उल्टे गरीब खत्म हो गए मगर इनका क्या करे सर जो बाहर बगीचे में आपका इंतजार कर रहे है में भी वही सोंच रहा हूँ कहीं ऐसा न हो कि में कुछ ऐसा कह दूँ जो पब्लिक में जाकर बड़ा इश्यू बन जाए अच्छा यह बताओ उस बिल में ऐसा क्या लिखा है जिससे किसान आग बबूला होकर गाँव से शहर आ गए ।
सर उन्हें लग रहा है कि इस नए कानून की वजह से कृषि का क्षेत्र भी पूँजीपतियों व कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा मगर सरकार तो साफ साफ कह रही है कि किसान अब अपनी फसल किसी भी बाजार में मनचाही कीमत पर बेच सकेगा यह बात तो हम सालों से कह रहे हैं मगर आज भी किसान को अपनी फसल का लागत मूल्य भी नही मिल रहा है सर असल बात यह है कि खेती में बड़ा मुनाफा सिर्फ सरकारी योजनाओं में दर्शाया जाता है मिलता कभी नही है अगर इतना ही मुनाफा मिलता तो” रामदीन अपनी पचास एकड़ जमीन आपको क्यों बेचता जिस पर आप बगैर खेती किए टैक्स की छूट का लाभ ले रहे है।”
सच आप भी जानते है हम जिसे अन्नदाता कहते हैं, जो देश वासियों का पेट भरता है वह आज अपने पेट की ख़ातिर सड़क पर उतरा है संवाद के अभाव में उसे लग रहा है कि उसके हक़ को , अधिकार को छीना जा रहा है।
अच्छा चलो उनसे बात करते है उन्हें नए कानून से, सरकार से क्या तकलीफ है यह उन्ही से समझते है ।
राम राम काका सभी को नमस्कार आप का यह सेवक आपकी क्या सेवा कर सकता है। हुजूर हम बहुत मुश्किल में है बड़ी आस लेकर आपके पास आए है हमारी मदद करो।
हाँ, हाँ लेकिन हुआ क्या है सरकार तो आपके भले की ही सोंचती है आप बिल्कुल चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा अरे ऐसे कैसे ठीक हो जाएगा हमारे वोट से सरकार बनाकर हम से ही आँख मिचौली खेली खेली जा रही है किसानों का रुन्दन सुनकर ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी नेताजी की तिजोरी से निकलकर बाहर आ गई उनसे नेता के सामने गिरियाते किसानों के आँसू देखे नही गए वे लक्ष्मी से दुर्गा के रूप में अवतरित हो कर नेताजी की और कुदृष्टि कर बोली जनता के सामने इन्हें अन्नदाता कहते हो व इन्ही के खिलाफ संसद में नए कानून बनाते हो पिछले पंद्रह साल से कह रहे हो कि किसान की आय में वृद्धि करेंगे उनकी मेहनत का उचित मुआवजा दिलवाएंगे ओर कुर्सी पर बैठते ही अपना वादा भूल कर गिरगिट से भी तेजी से रंग बदलने लगते हो नही देवी नही यह सच नही है ,पंद्रह साल पहले हमारी सरकार थी ही नही, हो सकता है लेकिन विरोध में तो तब भी थे न फिर सरकार में आते ही किसानों की गरीबी, बदहाली क्यों दूर नही हुई ।
मै तुम्हारे यहां एक क्षण भी नही रुकूँगी कान खोल कर सुन लो में इन भोले भाले किसानों का दुर्भाग्य अपने हाथों दूर करूंगी, तुम इन्हें बहुत छल चुके अब में स्वयं अपने हाथों आर्थिक पैकेज देकर इन्हें सुख सम्पन्न आत्मनिर्भर कर बना कर दिखा दूंगी ।
………………….


  1. प्रमाणीकरण-
    रचना पूर्णतः मौलिक  है ।

    अनिल गुप्ता
    कोतवाली रोड़ उज्जैन

Last Updated on January 16, 2021 by mahakalbhramannews

  • अनिल
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