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डर
औरत लेकर पैदा नहीं होती
माँ के पेट से..
उसे चटाया जाता है घुट्टी में मिलाकर
पिलाया जाता है माँ के दूध में घोलकर
खिलाया जाता है रोटी के कोर में दबाकर
सिखाया जाता है स्कूल जाने से पहले
डर का सबक घर पर
दादी – नानी की कहानी में पिरोकर
मोहल्ले-पड़ोस की घटनाओं में डूबोकर
दिखाये जाते है डर के सबूत
माँ की पीठ पर
बेबात उठती हुई पिता की खीझ पर
लाद दिया जाता है मासूम बच्ची के कन्धों पर
घर -खानदान की झूठी इज्जत का बोझ
कुछ चीजें हिदायतों के साथ
बड़ी ख़ूबसूरती से परोसी जाती है
कम बोला करो
संस्कारी लगोगी
सर से दुपट्टा ओढ़ा करो
बहुत प्यारी लगोगी
घर से कम निकला करो
चहरे पर रौनक रहेगी
बातों को पीना सीख पलट कर जवाब क्यूँ देती हैं
न जाने ससुराल में कैसे निभोगी
डर..
औरत लेकर पैदा नहीं होती माँ के पेट से
एक सोचे समझे षड्यंत्र के तहत
बैठाया जाता है उसके दिमाग में
जीवन -मृत्यु से परे चिर स्थायी भाव बनाकर
Last Updated on January 20, 2021 by chitra.panwar20892
- चित्रा पंवार
- लेखक
- स्वतंत्र लेखन
- [email protected]
- गांव पोस्ट- गोटका, तहसील - सरधना, जिला - मेरठ यूपी
3 thoughts on “महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता हेतु कविता- “डर “”
चित्रा की कवितायें मन मस्तिक पर चित्र उकेरती हुई अंकित हो जाती हैं। शुभकामनाएं
👌👌
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ लिखी है, एक नारी शक्ति को कैसे कंमजोर किया जाता है बखूबी बया किया है आप ने।