

देशभक्ति काव्य पाठ प्रतियोगिता हेतु
जनम जनम का रिश्ता ……………………… यह रिश्ता प्यारा जनम जनम का, मैं किस तरह, इसे इजहार करूँ ,
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
जनम जनम का रिश्ता ……………………… यह रिश्ता प्यारा जनम जनम का, मैं किस तरह, इसे इजहार करूँ ,
वारिस की पहली फुहार में …………………………… जब से तुम परदेशी हो गये, खूब आते सुनहले सपने में, सजना,तुम
तुमने ये गजरे कयूॅ नहीं लगाये, चंदन सा बदन क्यो नहीं महका, ये जुलफें वैसे कयूॅ नहीँ बलखाई,
अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस के कवि सम्मेलन हेतु नारी तुम कितनी हो महान, तुम जग को दे सर्वस्व
कभी मेरे नयनों में सपने की तरह, अब जीवन नैया के हो पतवार की तरह, माथे पे बिन्दी
तन का सिंगार तो हजार बार होता है, पर प्यार तो जीवन में एक बार होता है, नाव
कभी यूँ खुशनुमा हो जाती,फूलों की सेज बनकर, प्रभा सी चमकती कभी,रवि मडल की तेज बनकर, स्वेद की
कभी यूँ खुशनुमा हो जाती,फूलों की सेज बनकर, प्रभा सी चमकती कभी,रवि मडल की तेज बनकर, स्वेद की
मानव के भीतर की पशुता,पशुता के अंदर की सभ्यता,पशु के भीतर की मानवता,मानवता भीतर की महानता,देख लिया है
परिवर्तन ही नियति का सनातन नियम है, जल प्रवाहित होना ही नदी का संयम है, निश्चल खडा पर्वत