मानव के भीतर की पशुता,
पशुता के अंदर की सभ्यता,
पशु के भीतर की मानवता,
मानवता भीतर की महानता,
देख लिया है अब सब तुमने,
सब कुछ समझ लिया हमने।1।
सभ्य बनाने में लगी मजहबें,
फिर क्यों गायब है, मानवता,
इबारत नहीं लिखती किताबें,
फिर क्यूँ पशु में होती मानवता,
लगता है नियति से लिया तुमने,
दंभ औ द्वेष से गुमा दिया हमने।2।
विकासवाद के आंधी ने मुझे,
विरासत में, जो दे दी पाखंड,
देवता बनने के चक्कर में हम,
संतों के फेर में, पी लेते हैं मंद,
क्रूरता से पिसता सारा जीवन,
गुमसुम हो समझ लिया हमने,
डूबे चिंता से भांप लिया तुमने।3।
बीते वैभव ने छल करके हमसे,
इस संध्या पर दिया एकांत वास,
इस बेला का सच्चा साथी बनके,
तू रहना चाहता है अब मेरे पास,
जीवन भर पाला सबको तुमको,
परख लिया मैने देख लिया तुमने।4।
ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला
03:01:2021
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Last Updated on January 3, 2021 by opgupta.kdl
- ओमप्रकाश गुप्ता
- अवकाश प्राप्त प्रवक्ता गणित
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