कभी यूँ खुशनुमा हो जाती,फूलों की सेज बनकर,
प्रभा सी चमकती कभी,रवि मडल की तेज बनकर,
स्वेद की बूँद बन,ठंड देती है,तपती देह को अपनी,
कभी आंसुओं की धारा बन, बहा देती गम कितनी।1।
हर पल जोखिम का होता,यूँ नहीं बनना अधीर,
जीवन की हर गुत्थी को यूॅ ही सुलझा देते हैं कर्मवीर,
जितनी धीरता होगी,बढकर उससे कठिन परीक्षा होगी,
मंजिल होती उससे सुखद,फिर भी हर पल समीक्षा होगी।2।
Last Updated on January 4, 2021 by opgupta.kdl
- ओमप्रकाश गुप्ता
- अवकाश प्राप्त प्रवक्ता गणित
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