(मोटनक छन्द)
सेना अरि की हमला करती।
हो व्याकुल माँ सिसकी भरती।।
छाते जब बादल संकट के।
आगे सब आवत जीवट के।।
माँ को निज शीश नवा कर के।
माथे रज भारत की धर के।।
टीका तब मस्तक पे सजता।
डंका रिपु मारण का बजता।।
सेना करती जब कूच यहाँ।
छाती अरि की धड़कात वहाँ।।
डोले तब दिग्गज और धरा।
काँपे नभ ज्यों घट नीर भरा।।
ये देख छटा रस वीर जगे।
सारी यह भू रणक्षेत्र लगे।।
गावें महिमा सब ही जिनकी।
माथे पद-धूलि धरूँ उनकी।।
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*मोटनक छन्द* विधान:-
“ताजाजलगा” सब वर्ण शुभं।
राचें मधु छंदस ‘मोटनकं’।।
“ताजाजलगा”= तगण जगण जगण लघु गुरु।
221 121 121 12 = 11 वर्ण
चार चरण, दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया
Last Updated on June 11, 2021 by basudeo
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