*होलिका दहन*
हर साल मुझकों जलाने का अर्थ क्या हुआ ?
सोच से अपनें मेरें जैसे सामर्थ सा हुआँ
हाथ में मशाल वालों से पूछतीं हैं होलिका
जलाने का प्रयास मुझकों तेरा ब्यर्थ क्यों हुआ ?
अपनें शान के अग्नि में ख़ुद ही मैं जल गईं
अभिमान के तेज़ ताप में ख़ुद ही मैं तल गईं
देखती हूँ तुम सभी भरे हो उसी दम्भ में
इसलिए तेरे हाथों हर बार जलने से मैं रह गईं
प्रह्लाद जैसा बन के कोई गोंद में आ जाओ मेरे
प्यार की बयार से जलाओ और बुझाओ मुझें
गर्व दर्प हिंसा नफ़रत निकाल दे जो मन से तो
ऐसे कोई अग्नि में एक बार ही जलाओ मुझें
फ़िर देखना हर साल मुझें जलाने की जरूरत नहीं
पाक दिल इन्सान में रहने की कोई हसरत नहीं
बुराईयाँ सब मिट जाए ,ऐ इंसान गर तुझसे
तो धरती पर रुकने की मेरी कोई चाहत नहीं ।।
©बिमल तिवारी “आत्मबोध”
देवरिया उत्तर प्रदेश
#मन_रंगरसियाँ
#दिल_फ़क़ीर
Last Updated on March 28, 2021 by bmltwr
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