न्यू मीडिया में हिन्दी भाषा, साहित्य एवं शोध को समर्पित अव्यावसायिक अकादमिक अभिक्रम

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित, विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित, बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका

A Multidisciplinary Peer Reviewed International E-Journal Published from, Victoria, Australia

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला

सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

“महिला दिवस काव्य लेखन प्रतियोगिता- रेड लाइट एरिया”

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#रेड लाईट एरिया#

 

हम अपनी जमात में अगर बात कर दें रेड लाईट एरिया की तो
कई जोड़ी आँखों के साथ 
घर की दीवारें भी ऐसी घूरती हैं 
जैसे,
जवान होती बहन से किसी भाई ने पूछ दिया हो पीरियड की बात……….,
नैतिकता के पैमाने पर यहाँ बात करना वर्जित है
लेकिन रात के अँधेरे में 
उन गलियों के चक्कर लगाना नहीं


हम बगल में सोती लड़की का चेहरा देखने से भी कतराते हैं लेकिन,
जो देखना है उसे जी भर के देखते हैं 

मोक्ष प्राप्ति के बाद नोटों की गड्डी फेंक देते हैं
कालर ऊँची करते हैं
और कभी न कटने वाली नाक ऐसे ऊँची करके चलते हैं 
जैसे,
किसी महत्वपूर्ण शिखर वार्ता से वापस लौट रहे हों…………………..
लेकिन,
दिन के उजाले में वो गलियाँ बेहद उदास नज़र आती हैं
वहाँ हर रोज मर रही औरतों की तरह
रात के अंधेरे में यहाँ थोड़ी चहल-पहल होती है
खरीदे-बेचे जाने की कुछ बात
रंडी है औरत जात कुछ ऐसे श्लोक भी बोले जाते हैं


दूर से आती है किसी लड़की की कुंवारी हँसी
आज वो खूब हँस रही है
कोई उसे दिखा रहा है कुछ सपनें जिसके 
टूटने की आवाज़ कर देगी उसके शोर मन को शांत,
यहीं कहीं कोई दूसरी लड़की खूब रो रही है
खुद को कोस रही है की उसने क्यों किया मजनू पर विश्वास
यह जानते हुए कि,
इस एरिया की माँग में सिंदूर नहीँ होता…………….,
एक छोटी लड़की को सिखा रही हैं उसकी बहनें 
की अब दुपट्टा थोड़ा सरका कर लो
वह दिखना चाहिये जो सब देखना पसंद करते हैं
और
वो पागल समझ नसीहत पा रही यह नासीहत
एक और लड़की…..नहीं औरत कर रही है अपने जाहिल निर्माता को याद कि,
पैदा होने वाली नस्ल लड़की ना हो


यहाँ सबक़ुछ जल रहा है
गलियाँ 
सड़कें
दीवारें 
औरत 
लड़की 
बच्चे 
बचपन 
जवानी 
सपनें……और
एक पूरा का पूरा जीवन
जो मरने से भी बदतर है
फिर भी जल रहें हैं कुछ दीप
इस उम्मीद से कि,
कहीं दूर ही सही लेकिन होगा कल्किका अवतार
रातें बदलेंगी 
लेकिन,
मुझे नज़र नहीँ आते कोई आसार बस 
कानों में गूंज रहा है वह अट्टहास जो
कह रहा है
यह एरिया एक शरीर है 
और,
औरत एक योनिजिसे 
मैं हर रोज कुचलूँगा……………………”

 

 

Last Updated on January 19, 2021 by singhrashmi0092

  • रश्मि सिंह
  • शोधार्थी
  • महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी,बिहार
  • [email protected]
  • रश्मि सिंह, शोधार्थी, हिंदी विभाग, महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, बिहार-845401
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