न्यू मीडिया में हिन्दी भाषा, साहित्य एवं शोध को समर्पित अव्यावसायिक अकादमिक अभिक्रम

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित, विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित, बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका

A Multidisciplinary Peer Reviewed International E-Journal Published from, Victoria, Australia

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला

सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

हमारा भारत देश ,जीवन की यात्रा, विश्वास,आत्म-निर्भरता ,काश! तुम, अधूरी चाहत ।

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हमारा भारत देश
…………………..

मानचित्र में देखो अंकित भारत देश ही न्यारा है,
अभिमान से सब मिल बोलें हिन्दुस्तान हमारा है ।

एक धर्म व संप्रदाय है,कोई जातिवाद नहीं,
भाईचारे की मिसाल दें,कोई भी प्रतिवाद नहीं,
हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई,हर ज़ुबान पे नारा है,
अभिमान से सब मिल बोलें,हिन्दुस्तान हमारा है ।

नेताओं की तानाशाही के विरूद्ध एक मुहिम लिये,
बेईमानी और रिश्वतख़ोरी,जितने भी सब जुर्म किये,
जला दिये उनके मंसूबे,बनकर एक अंगारा है ,
अभिमान से सब मिल बोलें,हिन्दुस्तान हमारा है ।

अमन शांति में रहकर के जो सच्चाई के साथ चले,
देश की ख़ातिर मर मिटने का मन में एक अरमान पले,
उनके माथे तिलक लगाते जो जनता को प्यारा है,
गर्व करें इस वतन के वासी ,हिन्दुस्तान हमारा है ।

धन्य वो माँ के लाल , जिन्होंने अपना खून बहाया है,
नमन वो वीर जवान युद्ध में,रण कौशल दिखलाया है,
गौरवान्वित जिनपर अब है ये देश नहीं जग सारा है,
अभिमान से सब मिल बोलें, हिन्दुस्तान हमारा है ।

स्वरचित 
चंदा प्रहलादका 

जीवन की यात्रा
………………
ये यात्रा जीवन की एक खोज में परिणत है,
ख़्वाब नहीं हक़ीक़त की पहचान ही जन्नत है।
यथार्थ में जीने की तमन्ना की कोशिश ,
प्रात की उजली किरण श्वासों में बसे ख्वाहिश ।

मनमोहक सफ़र भाव के सूक्ष्म मर्म को जाने ,
दृष्टि की बात ,बदल गई तो असीम सुख माने ।
आनंद, भौतिक साधनों का मोहताज नहीं फिर,
शाश्वत सत्य जो कल था रहेगा आज वही फिर।

भीतर की खोज अनमोल मोती नज़र आयेंगे ,
बस बंद मुट्ठी में सारा अक्षय धन ही पायेंगे ।
जीवन देता है अवसर सहज श्रेष्ठ बनने का,
जीत लें हर पलों को ,साथ -साथ चलने का।

फूल काँटों से ऊपर उठे मन ,कर सामांज्यस,
सम भाव निहित ह्रदय ,नव चेतनता का रस ।
हर क्षण में परिवर्तित जग रहता अभिमान कहाँ
मिट्टी मिट्टी में मिले रहे नहीं गुमान यहाँ ।
हर इंसा में एक नूर, जुदा नहीं प्राण यहाँ ,
आडंबर से घिरे हुए, ढूँढ रहे भगवान कहाँ ।

स्वरचित 

चंदा प्रहलादका 

विश्वास
………….
सघन तम के बादलों से ,घिर गई काली निशा है,
किरण स्वर्णिम का उजाला,साधती मन की दिशा है
बीतते पल-पल समाहित,नयन में नव आस लेकर ,
प्रात जागेगी सलोनी ,अब लगा विश्वास के “पर”।

बीज धीरज का डले जो, वृक्ष भावों से सींचते ,
फूल फल विश्वास के लग,स्वत:मंज़िल को खींचते
नयी कोंपलें दिन-प्रतिदिन,सेतु नभ तल से बँधा नित
चाहतों की डोर गूँथी, भावना विश्वास के हित ।

ओस की बूँदें धरा की , घास पर मोती चमकती,
तृप्त श्वासों की महक से,प्यार मधुमय ले चहकती।
धूप ताप से यूँ तपती,ग्रीष्म में अवनि का कण-कण,
रिमझिम बारिश की बूँदें, राहतों में हो सभी जन ।

दीपक जले विश्वास का, टूटते सारे भ्रम जाल ,
ओढ़े उजास की चादर ,अंतर संकल्प दृढ़ पाल ,
नहीं असंभव जग में फिर,मंज़िल है सामने खड़ी,
चाँद पर पहुँचा जहां है ,विश्वास बढ़ता हर घड़ी ।

ह्रदय अमृत रस बहा है।
विश्वास पर जीता जहां है।
स्वरचित
चंदा प्रहलादकाशीर्षक-
आत्म निर्भरता
……….. ….

भाग्य के भरोसे हमें अब नहीं रहना है,
कर्तव्य पथ पर चले कर्मवीर बनना है।
आत्म विश्वास अपना टूटने न पाये,
खुद की परेशानी खुद दूर करते जाये।
विवेक से ले काम बना रखे निज मान,
गौरव से सिर ऊँचा ऐसा हो सम्मान ।
सही राह पे चले मंज़िल तक पहुँचना है।
कर्तव्य पथ पर चले कर्मवीर बनना है।

आत्मबल जीवंत करें मेहनत मज़दूरी,
ग़लत कार्यों से रहें हमेशा ही दूरी।
कोई भी काम छोटा बड़ा नहीं होता है,
खुद का परिवार का पेट भरना भी ज़रूरी ।
आत्म निर्भरता से अब आगे ही बढ़ना है ।
कर्तव्य पथ पर चले कर्मवीर बनना है।

महामारी से बढ़ी सब तरफ़ बेरोज़गारी,
मंहगाई ने पहले ही कमर तोड़ी हमारी।
आधार लेके किसी का कब जी पायें हम,
आत्म निर्भर होकर ही कर्म कर पायें हम।
जीवन है अनमोल क़ीमत हमेशा करना है ।
कर्तव्य पथ पर चले कर्मवीर बनना है ।
स्वरचित
चंदा प्रहलादका

काश ! तुम
……..     …

काश तुम साथ होते अलग बात थी,
झूम जाता गगन ,नाचती फिर जमीं ।
उलझने भरके दामन में चल दिये,
जो तुम संग नहीं अश्क बहते गये।
पास जन्नत हो , सजते जज़्बात भी ।
काश तुम साथ होते अलग बात थी ।
काश तुम साथ होते अलग बात थी।

बह गये ख़्वाब के शामियाने कई,
चाँद को ढूँढते हैं सितारे कई ।
सूखकर आस के फूल मुरझा गये,
दीप नयनों के सारे बुझते गये ।
पास जन्नत हो सजते जज़्बात भी ।
काश तुम साथ होते अलग बात थी ।

वेदना पलक से यूँ छलकती रही,
टूटे दर्पण में सज सँवरती रही ।
काश मिलते ना तुम तो ग़म क्या ख़ुशी,
अब सजा बन गई है चुभती हँसीं ।
पास जन्नत हो, सजते जज़्बात भी ।
काश तुम साथ होते अलग बात थी ।

कैसे नादान बन गुम तुम हो गये,
ढूँढती तुममें खुद को तुम खो गये।
सेज काँटों की मन को रहे साधते,
कदम दर कदम प्यार के वास्ते ।
पास जन्नत हो , सजते जज़्बात भी ।
काश तुम साथ होते अलग बात थी ।

बैठ आहों की चादर सिलती गयी,
बर्फ़ सी ज़िंदगी यूँ पिघलती गयी।
बाद मुद्दत के पहचान खुद से हुई ,
अपनी परछाई जब दगा दे गई ।
पास जन्नत हो , सजते जज़्बात भी ।
काश तुम साथ होते अलग बात थी ।

स्वरचित

चंदा प्रहलादका

 
अधूरी चाहत
……………
अवगुंठित उर वेदना ,ख़्वाहिशों का कर समर्पण ,
उनींदी पलक बोझिल ,हो संवेदना का अर्पण ।
मैं अधूरी चाहत के बंधन को बिसराऊँगी ,
मुस्कान से प्रीत पुरानी आज फिर निभाऊँगी ।

राह पथरीली छिलन का हो मगर अहसास कैसे,
काँटे दामन में चुभे ,आहों का विश्वास कैसे।
विकल होती श्वासों में अरमानों को बहाऊँगी ,
मुस्कान से प्रीत पुरानी , आज फिर निभाऊँगी ।

बसुंधरा गर्भ में अग्नि कणों के मोती बिखरे ,
पलक के कोमल तट को आँसू से धोती गहरे।
आस पिघली बर्फ़ सी,अवशेष को छितराऊँगी ,
मुस्कान से प्रीत पुरानी, आज फिर निभाऊँगी ।

चाँदनी की शुभ्र किरणों से धरा होती तरंगित,
वक़्त की धारा पलटती,विषम पल-पल में निहित।
सोच को मिलती दिशा नव अब कहाँ पा जाऊँगी।
मुस्कान से प्रीत पुरानी, आज फिर निभाऊँगी ।

बीता युग यूँ स्वप्न सा , क्या लौट मुझमें पायेगा,
दर्द से जड़ती हूँ सुध को , सुप्त हो भरमायेगा ।
नेह बाती सा जले दृग , राख को बिखराऊँगी ।
मुस्कान से प्रीत पुरानी, आज फिर निभाऊँगी ।

ज़िंदगी के पन्नों पर ,स्याही व्यथा बनके उमगी,
गूँथी माला टूट बिखरी ,उलझी- उलझी मैं जगी।
समेटती रिसती हथेली को कहाँ छिपाऊँगी ।
मुस्कान से प्रीत पुरानी, आज फिर निभाऊँगी ।
स्वरचित
चंदा प्रहलादका

 

Last Updated on January 16, 2021 by lkpcp1962

  • चंदा
  • प्रहलादका
  • समाज - सेवी
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