प्यार के शब्द की अनकही सी वही
अपने दिल की ग़ज़ल गुनगुना दीजिए
दर्द देता है मायूस चेहरा सनम
मेरी खातिर जरा मुस्कुरा दीजिए
लाखों की भीड़ में गुमशुदा मैं सही
मुझे पहचान अपनी बना दीजिए
खुशबू बनके तुम्हारी महकता रहूं
अब मुझे इत्र अपना बना दीजिए
मैंने प्यासे लबों से कहा है मगर
अपने होठों की शबनम गिरा दीजिए
आँख भर आए जो यूँ मेरी बात से
मेरे होठों से ही मुस्कुरा दीजिए
जिस तरह थी संवारी वो कॉलर मेरी
जिन्दगी को भी सुन्दर बना दीजिए
चाहता हूँ निहारूं तुम्हें उम्र भर
अपने चेहरे से पर्दा हटा दीजिए
शर्म आए जो मेरी निगाहों से भी
आप पलकों को अपनी झुका दीजिए
सीधे कर न सको बात जो इश्क़ की
बातों की फिर जलेबी बना दीजिए
उमेश पंसारी
युवा समाजसेवी छात्र व लेखक
मो. 8878703926
Last Updated on January 12, 2021 by umeshpansari123
- उमेश
- पंसारी
- NSS
- [email protected]
- सुभाषमार्ग इंग्लिशपुरा, सीहोर, मध्यप्रदेश