निलनभपर सुरज तिरंगा ललाट गेरुआ तप्त श्वेत मध्यमा और धरती हरीयाली. हिमालय करता गरीमा और महासागर पैर चुमता.
आत्मद्विप हैं मॉ भारती
पुकारे वाणी वेद की
प्राण उपनिषद गीता के
थिरकते पाव संतोंके
राहपर है तुफान अनेक
मुश्किले भी है पर्वत बनकर.
झरने को सागर में मिटना होगा.
देश बनकर तुम्हे उठना होगा.
प्यास है धरती की
आस है माॅ भारती की
कर दो तुम अपनी आवाज बुलंद.
मुठ्ठी में बाँध लोजोश को.
हवा का बदल दो रुख तुम .
फिर वंदे मातरम् का गाओ तुम.
हे ! प्रकाश के स्वामी.
चेतना के पुजारी.
आशिष दे, हम है हिंदुस्थानी.
हरदिन,हरक्षण गाये हम.
वंदे मातरम्, वंदे मातरम् .
Last Updated on January 12, 2021 by khatate4life
- मनिषा खटाटे
- व्याखाती
- क्रिया योग शाला
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