*1-कारगिल युद्ध गाथा*
कारगिल में गूँज उठी थी,शूरवीरों की ललकार
पाकर सह शैतानों का जब घुस आए थे आतंकी हज़ार
देश की तब सरकार जगी,सुनकर शैतानों की फुँफकार
लेकर राय देश से सारा भेजी शूरवीर हज़ार
ख़ाकर आज्ञा राजधर्म का,सैनिक हुए जाने को तत्पर
मन मे लिए आक्रोश वतन का,करेंगे उनका सामना डटकर
कोई शेर सोया था अपनी बूढ़ी माँ के आँचल में
कोई होश खोया था अपनी नई नवेली दुल्हन में
किसी के घर पर गूँज रही थी अभी अभी शहनाई हैं
किसी की बहना ओढ़ चुनरियाँ,अभी हुई पराई हैं
कोई आया था घर अपने,टूटी भवन बनाने को
कोई आया था घर अपने छप्पर छाजन छवाने को
किसी की आँखे सूज रही थी पिता के ग़म की सिसकारी में
किसी की आँगन गूँज रही थी बच्चे की किलकारी से
पर अब जाना होगा इनको, सन्देश सीमा से आई हैं
छोड़ के अम्मा बाबा बच्चा सबका प्रीत पराई हैं
बर्फ़ीली वादी गूँजी थी इन बीरों की ललकार से
कोई तोड़ नही पाकी का,निश्चित अपनी हार से
कायरता से कोई युद्ध क्या जीता कभी भी पाक हैं
अपनी धोखा में ही पड़कर होता अब ये साफ़ हैं
तोड़ दो पैर कमर अब उसकी अपनी बुद्धि चाल से
कांप उठे सोचकर भारत से,किसी युद्ध के ख़याल से
आग लगा दो घर उसके,तभी नही ऊपर होगा
आग बुझायेगा घर का वो,कभी नही हम पर होगा
ख़बर शहीदों के ख़ून की,सारा भारत रोया था
उनके आने की आहट में सारी रात ना सोया था
दरवाज़े पर पड़ी लाल की माथा चुम अम्मा रोई
प्यार सज़ा जिसकी आहट से,गाथा सोच दुल्हन रोई
काजल वाली आँखे खुलकर,रोई घर के कोने में
आज उमड़ फिर आयी ममता,बूढ़ी माँ के सीने में
शायद दाग़ लगा अब देखों नई नवेली दुल्हन को
देख रही हैं बूढ़ी अम्मा अपनी सुनी आँचल को
दूध लिए मुँह में बच्चा,जोर जोर फुँफकार रहा
शायद पिता की कुर्बानी का,जोर जोर जयकार रहा
उछल कुंद करता बालक भी सोये पिता से बोल रहा
क्या मीडिया क्या जनता देखो सबका सब्र अब डोल रहा
वीर शहिदों की कुर्बानी बस चंद दिनों की चर्चा हैं
फिर नही मिलेगा क़िस्सा कोई,कितना पुराना पर्चा हैं
शहिदों का ख़ून भी पानी,हो जाता दिल्ली की करतूतों से
जीता समर हरा देता जब अनर्गल अनोढ़ सी बातों से
जिस दिन लाश आएगी सीमा से,बेटा गर किसी नेता की
बात नही तब बम फूटेगा,मुँह से सारे नेता की ।।
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*2-कश्मीर समस्या*
काश्मीर में सभी बग़ावत करने वाला शातिर है
डाल फुट का मज़ा उठाने वाला कोई माहिर है
जो सोच रहा है ये चिंगारी जला ही देगी जन्नत को
मैं कहता हूं ये सोचने वाला सबसे बड़ा जाहिल है
काश्मीर जो भभक रहा है चंद मज़हबी उन्मादों से
काश्मीर जो धधक रहा है सियासत के दामादों से
काश्मीर जो बिगड़ रही है चंद इस्लामिक जज्बातों से
काश्मीर क्यो निखर रही ना दिल्ली की वैधानिक बातों से
कभी ना बिगड़ी है कश्मीरियत नफरत फैलाने वालों से
बिगड़ के भी खामोश हुई शराफत फैलाने वालों से
कोई ना चाहता अमन चैन काश्मीर में जिंदा हो
सबका तख़्त बना बैठा है काश्मीर में हिंसा हो
अपने तख़्त ताज़ की खातिर काश्मीर को फूंक रहे है
लेकर नाम काश्मीर का जग में सारा घूम रहे है
करो बेपर्दा इन सब को जो मासूमों को बहका रहे है
चंद रुपये खातिर हाथों में इनके पत्थर कोई पकड़ा रहे है
इन के बच्चे भी क्या क़भी पत्थर हाथ मे पकड़े है
काश्मीर की लाल चौक पर नारों के संग निकले है
इनका काम ही धंधा बस काश्मीर को सुलगाना है
रहेगा जीवन इनका सुरक्षित जब काश्मीर को बहकाना है
काश्मीर के सभी अवामो आँख से पट्टी खोलकर फेंको
समझो इनके दिल का खेला रद्दी समझकर इनको फेंको
केशर की घाटी में अपने खातिर जिसने बम फेंका
घाटी से अब उस सबकों निकालकर बाहर तुम फेंकों ।।
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*3-आज़ादी*
आज़ाद वतन की माटी अब इतनी खामोश क्यु हैं ?
आज़ादी में रहने की क्या हमको आदत ही नही हैं
आज़ाद चमन है आज़ाद गगन है पवन भी है आज़ाद अब
डर दिल में भय मन में और सच कहने की आदत ही नही ,
आज़ादी का पावन पर्व क्यों सुना सुना लगता है
अपनी शाशन में रहना और जीना दूभर लगता है
ऐसा ही होना था तो क्यों वतन आज़ाद लिया हमने
आज़ादी लेने की खातिर हर दिन मरा जिया हमने ,
बंदिश में गर रहना है तो आज़ादी का मतलब क्या ?
बात बात पर रंजिश हैं तो आज़ादी का मतलब क्या ?
बोलने पर पाबंदी हो तो आज़ादी को फेल ही समझो
हर बातों पर गर्दिश हैं तो आज़ादी का मतलब क्या ?
आज़ादी के नारों से अब भय सा लगने लगता है
इन नारो के साये में कोई हमको ठगने लगता है
छीन लिया आज़ादी सबकी आज़ादी के नारों से
गाकर गीत आज़ादी का घर अपना भरने लगता है ।।
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द्वारा -बिमल तिवारी “आत्मबोध”
S/O -स्व दयाशंकर तिवारी
ग्राम+डाक-नोनापार
जनपद-देवरिया उत्तर प्रदेश भारत 274701
फ्रेंच भाषा में स्नातक, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी वाराणसी
पर्यटन प्रशासन में स्नातकोत्तर, डॉ राम मनोहर लोहिया यूनिवर्सिटी फैज़ाबाद
पर्यटन प्रोफेशनल के साथ साथ यात्रा विवरण,कविता,किस्सा-कहानी-लघुकथा,डायरी,मेमोरीज़
लिखने का शौकीन ।
Whatsapp No. – 8418997646
Calling No. -6394718628
शपथ—
मैं बिमल तिवारी “आत्मबोध” शपथ पूर्वक कहता हूँ कि अपनी रचना जो आपकी पत्रिका/संकलन में प्रकाशन के लिए दिया हूँ।उसे मैं अब तक कहीं भी किसी को प्रकाशित करने के लिए नही दिया हूँ।
और यह भी की मेरी उक्त रचना आजतक कहीं भी प्रकाशित नहीं हुईं है।
यह भी की उक्त रचना मेरी अपनी रचना हैं।
किसी भी तरह के विवाद के लिए प्रकाशक नही,अपितु मैं ख़ुद ही जिम्मेदार होऊँगा।
बिमल तिवारी “आत्मबोध”
Last Updated on January 9, 2021 by bmltwr
- Bimal
- "Aatmbodh"
- स्वतंत्र
- [email protected]
- Nonapar, deoria, उत्तर प्रदेश