जमी’ पे तारे जो झिलमिलाए
कहो तो कैसी ये बात होगी ,
मेरे महल में जो चाँद उतरे
कहो तो कैसी वो रात होगी।
ये मस्त खुशबू, ये भौर गुंजन
तनुक-सी फुनगी पे फूल -स्पन्दन
प्रभात बेला, पुनीत वंदन
तेरे नयन का थिरकता खंजन
मेरे हृदय में उतर जो जाए
कहो तो कैसी ये बात होगी । जमी-पे—
स्वच्छंद वीणा के तार बोले
जो कोई मुक्ति के द्वार खोले
मधुर-सा सपना नयन में डोले
कोई जो प्राणों में रस को घोले
जो प्रीति-कलिका हृदय खिलाए
कहो तो कैसी ये बात होगी ।जमी पे—
अनंत आकाश का नील रंजन
तेरे प्रणय का ये गाढ़ बंधन
थिरक उठे क्यों ना मोर बन मन
न क्योँ लगे सिकता स्वर्ण का कण
जो रस में मेरा हृदय नहाए
कहो तो कैसी ये बात होगी ।जमी पे–
Last Updated on January 9, 2021 by amarkantkumar1959
- डॉ. अमरकांत कुमर
- एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग
- एम. एल.एस.एम कॉलेज, दरभंगा
- [email protected]
- मानस, न्यू प्रोफेसर कालोनी, दिग्घी पश्चिम, दरभंगा, बिहार
4 thoughts on “प्रेम- काव्य लेखन प्रतियोगिता”
अति ख़ूब। बेहतरीन
अति ख़ूब। बेहतरीन कविता।
मन महकने लगा बहुत ही बेहतरीन कविता है 👏👏👏👏👏
बहुत बढ़िया …..सुन्दर कविता सर