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प्रेम- काव्य लेखन प्रतियोगिता

जमी’ पे तारे जो झिलमिलाए
कहो तो कैसी ये बात होगी ,               
मेरे महल में  जो चाँद उतरे               
कहो तो कैसी  वो रात होगी। 
 
ये मस्त  खुशबू, ये  भौर    गुंजन 
तनुक-सी फुनगी पे फूल -स्पन्दन
प्रभात    बेला,     पुनीत    वंदन
तेरे नयन  का  थिरकता  खंजन
मेरे   हृदय  में   उतर  जो   जाए
कहो  तो  कैसी  ये  बात  होगी । जमी-पे—
 
स्वच्छंद   वीणा  के  तार  बोले
जो कोई  मुक्ति  के द्वार  खोले
मधुर-सा सपना नयन में  डोले
कोई जो प्राणों  में रस को घोले
जो प्रीति-कलिका हृदय खिलाए
कहो  तो  कैसी  ये  बात   होगी  ।जमी  पे—
 
अनंत आकाश का  नील रंजन
तेरे  प्रणय  का  ये  गाढ़  बंधन 
थिरक उठे क्यों  ना मोर बन मन
न क्योँ लगे सिकता स्वर्ण का कण
जो   रस   में   मेरा  हृदय  नहाए 
कहो  तो  कैसी  ये   बात   होगी   ।जमी पे–