बड़े नाम के पीछे की तू खुद सच्चाई जान, मना!
परदे के पीछे है क्या तू खुद ही पहचान, मना!
उठती लहरों की भी उल्टी हवाओं से सीना जोरी है,
ख़ुद में उठते झंझावातों को, तू खुद अब थाम, मना।
जिधर भी देखो ईर्ष्या,द्वेष का है बड़ा कद इस दुनिया में,
छोटे पौधों ने सही मार सदा जब कंटीला पौधा पनपा बगिया में,
खून से लथपथ होंगे पग, आदी हो जाएँगे काँटों में चलने के,
तुझको ही तो पाना है, फिर फूलों सा सम्मान, मना!
छीन- छीन कर खाने की इस दुनिया की फितरत है,
भद्दे को भी सजाने की कहते आज जरूरत हैं,
वक्त से हुई हाथापाई तो दोष किसे कोई अब दे,
दगेबाजों की है इक कंदरा, तू बन उसका दरबान, मना!
नीर नहीं अब बादल में फ़िर भी गड़गड़ाहट काबिज़ है,
थोथेपन की सच्चाई से कौन भला नहीं वाक़िफ़ है?
बनी बवंडर जब एक पवन तो हुए दरख़्त कई धाराशायी,
है बदलाव का तू ही पुरोधा, अब तू मत बन अंजान, मना!
– मवारी निमय
Last Updated on October 20, 2020 by srijanaustralia