लहरों को देखा आज यूं ही लहराते हुए,
हवाओं को भी देखा गुलछर्रे उड़ाते हुए,
बादल घूम रहा अकेले इधर उधर आज,
मिट्टी में मिली खुद जीवन सभालते हुए।
खूब घोट लो सत्य का गला घोंटने वाले,
किसी बात पे अपनी बात जोतने वाले,
क्या हो रहा आज छुपकर कहा सो रहे,
कहां खोए समाधि पे फुल चढ़ाने वाले।
अहिंसा के पुजारी दांत दिखाते हुए,
अपने ही कामों को मुंह चिढ़ाते हुए,
बोल रहे बढ़ चढ़ के उन्हीं के हत्यारे,
फिर आ जाओ हमें ये सिखाते हुए,
जिंदा हैं बहू बेटियों को यूं डराते हुए,
घूम रहे इज्जत को तार तार करते हुए,
भूल गए वहीं आज नारा लगाया जो,
जी रहे सरकार का मौज उड़ाते हुए।
आ गया वहीं दो अक्टूबर फिर आज,
आए दो फुल चढ़ा वो समाधि पे आज,
पूरा करके दिखा दिया सरकारी कोरम,
मिले जो सच को सच से ही छुपाते हुए।
सब मौन हैं पर कह रहे मिलकर आपसे,
सुना जो नहीं वहीं गुजर गया जो पास से,
बने एक विधान नियम हो जाए फांसी जो,
वो भूल जाए बाला का रेप करना आज से।
Last Updated on January 2, 2021 by srijanaustralia