अंचल सक्सेना,
उप प्राचार्य, केन्द्रीय विद्यालय कानपुर केण्ट कानपुर
मो.: 8004912415, ईमेल पता : [email protected]
शोध सारांश- बाल साहित्य वह साहित्य है जो बच्चों के मनोरंजन, ज्ञानवर्द्धन, जिज्ञासावृत्ति, मानसिक विकास, चारीत्रिक व व्यक्तित्व विकास एवं प्रेरणाप्रद सामाजिक बोध के लिए लिखा जाता है तथा जो बच्चों की रुचियों, कल्पनाओं, बौद्धिक क्षमताओं, सूझ-बूझ, परिवेश, बाल मनोवृत्ति, बाल मनोभावों, बाल वृत्ति तथा बाल सोच को समझ कर तद्नुरूप रचनात्मकता से प्रेरित साहित्य ही बाल साहित्य कहलाता है।
बालक के चतुर्मुखी विकास के लिए उनमें अच्छे गुणों की अभिवृद्धि करना, उनमे शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक व चारित्रिक विकास के लिए उनमे अच्छे गुण विकसित करने होते हैं; यथा उत्साह, विश्वास, विनय, स्वाभिमान, अनुशासन, सदाचार, समय पालन, आत्मबल, साहस, निर्भयता, आज्ञापालन, सात्विकता, अनुसंधान, त्वरित निर्णय, उत्सुकता, निश्चय आदि।
बालक मे चरित्र के विकास के लिए भगवान राम व कृष्ण, जवाहर लाल नेहरू व मोहन दास करमचंद गांधी, वल्लभभाई पटेल, बाल गंगाधर तिलक, सुभाष चंद्र बोस आदि महान देशभक्तों पर लिखी गई बाल कहानिया ही नही, वरन “गिल्लू” “नीलकंठ” जैसे संस्मरण भी सहायक होते हैं। भगत सिंह तथा अब्राहम लिंकन ने ऐसे ही बाल साहित्य को पढ़कर अपने चरित्र व भविष्य का निर्माण किया था।
“हितोपदेश”, “सिहासन बत्तीसी”, “बेताल पचीसी” तथा बिष्णु शर्मा कृत “पंचतंत्र” जैसी कहानियाँ, दक्षिण भारतीय मासिक पत्रिका “चंदामामा”, “नन्दन” जैसी मासिक पत्रिकाएं तथा राजस्थान साहित्य अकादमी का बाल साहित्य विशेषांक की कुछ कहानियां निश्चित रूप से बालमन मे अच्छे संस्कार का निर्माण करतीं हैं।
सुभद्रा कुमारी चौहान की “झांसी की रानी” ,विपुल ज्वाला प्रसाद की “आओ करे देश से प्यार” जैसी कई रचनाएँ तथा “बाल दर्पण” जैसी पत्रिकायें, बालमन मे न केवल राष्ट्रीय चरित्र का विकास करतीं है, वरन राष्ट्र के प्रति मर मिटने की भावना का विकास करती है।
हिन्दी रचना “पर्वत की पुकार” तथा अग्रेज़ी स्पाइरी कृत “हीडी” जैसी रचनायेँ बालमन मे प्रकृति के प्रति प्रेम जाग्रत करती है। वही भारतीय साहित्य की “आधुनिक मीरा” “श्रीमती महादेवी वर्मा” की कहानी “गिल्लू” जिसमे एक गिलहरी के बच्चे के साथ उनके संस्मरण तथा “नीलकंठ” जिसमे एक मोर के साथ उनके संस्मरण तथा “मेरे बचपन के दिन” आदि मे उन्होने बालमन को प्रेरित कर उसमे पशुओं के प्रति प्रेम को जाग्रत करती हैं। इसी प्रकार अंग्रेज़ साहित्यकार “रुडयार्ड किपलिंग” की पुस्तक “जंगल बुक्स” मे अनेक ऐसी घटानाओं का समावेशन है, जो यह दर्शाती हैं कि प्रेम व सहानुभूति से खूंखार जानवरों को भी वश मे किया जा सकता है तथा यह जीव जन्तुओं के प्रति प्रेम को विकसित करती है ।
वहीं जान रस्किन की रचना “किंग आफ द गोल्डन रिवर” कथा, रूसी लेखक अकार्ड गैदर का बाल उपन्यास “ तीमूर और उसकी टोली”, टालस्टाय की कहानी “बड़ों से अच्छे बच्चे” तथा राजस्थान साहित्य अकादमी मे प्रकाशित डा0 (सुश्री) लीला मोदी की कहानी “दीवार ढह गई” जैसी बाल कहनियाँ मानवीय प्रकृति व मानवीय प्रवृत्तियों का चित्रण करते हुये मित्रता की भावना का, मानव का मानव से प्रेम तथा मानवीयता की भावना का विकास करती है।
हिन्दी बाल साहित्य तथा विश्व साहित्य मे ऐसी पर्याप्त रचनाएँ जो बालकों का चतुर्मुखी विकास तथा संवर्धन करने मे सक्षम है तथा उसका अध्ययन बालमन के सभी पक्षों का विकास करता है।
कीवर्ड्स/बीज शब्द – बाल साहित्य वस्तुत: बालमन के वहुमुखी विकास के लिए पूर्णतया सक्षम है ।
परिचय:- बाल साहित्य वह साहित्य होता है जो बालकों के लिए लिखा जाता है अर्थात् वह साहित्य जो बच्चों के मनोरंजन, ज्ञानवर्द्धन, जिज्ञासावृत्ति, मानसिक विकास, चारीत्रिक व व्यक्तित्व विकास एवं प्रेरणाप्रद सामाजिक बोध के लिए लिखा जाता है तथा जो बच्चों की रुचियों, कल्पनाओं, बौद्धिक क्षमताओं उनकी सूझ-बूझ, उनका परिवेश, उनकी मानसिकता आदि को केन्द्र में रखकर लिखा गया हो। बाल मन प्रोढ़ मन से भिन्न होता है। बाल मन निर्मल, निष्कपट, कोमल, कल्पनाशील होता है। बाल साहित्य लिखने के लिए बाल मनोवृत्ति, बाल मनोभावों, बाल वृत्ति तथा बाल सोच को समझना होता है। इस तरह बाल मनोविज्ञान को समझने वाला तथा तद्नुरूप रचनात्मकता से प्रेरित साहित्य ही बाल साहित्य कहलाता है। बालसाहित्य के स्वरूप का निरूपण करते हुए महीयसी महादेवी वर्मा ने एक सार्थक टिप्पणी की थी कि ’’वैसे वह स्वयं एक काव्य है स्वंय ही साहित्य है ,हम उस साहित्य को एक दिशा देते हैं, सीमाएं बांधते हैं और इसे बाल साहित्य कहते है।‘‘
बाल साहित्य के सृजन के महान उद्देश्यों के अंतर्गत बालक के कोमल व्यक्तित्व का चतुर्मुखी विकास भी प्रासंगिक है। बालक के चतुर्मुखी विकास के लिए उनमें अच्छे गुणों की अभिवृद्धि कर नई पीढ़ी को एक स्वर्णिम भविष्य प्रदान करना बाल साहित्य का एक महान उद्देश्य है । परन्तु बालक का बहुमुखी विकास एक सामान्य व सरल कार्य नही है । इसके लिए उनमे अच्छे गुण विकसित करने होते हैं। बालक मे नियमित व्यायाम ब खेल के साथ पौष्टिक आहार लेने की प्रेरणा जागृत करनी होती है तथा उनके मानसिक, संवेगात्मक व चारित्रिक विकास के लिए उनमे अच्छे गुण विकसित करने होते हैं; यथा उत्साह, विश्वास, विनय, स्वाभिमान, अनुशासन, सदाचार, समय पालन, आत्मबल, साहस, निर्भयता, आज्ञापालन, सात्विकता, अनुसंधान, त्वरित निर्णय, उत्सुकता, निश्चय आदि। बाल साहित्य बच्चों को मनोनुकूल, उनका मनोविज्ञान समझकर, उन्हीं के स्तर पर उतरकर, उन्हीं की भाषा में उनके समझने योग्य अभिव्यक्ति पर उतरकर ही लिखा जाना होता है ।
शोध विधि–उपरोक्त विषय से संबन्धित वास्तविक तथ्यों के अन्वेषण के लिए प्राथमिक व द्वितीयक दोनों ही डाटा का अध्ययन किया गया इसके लिए न केवल मूल पुस्तकों का अध्ययन किया गया वरन पुस्तक समीक्षाओं को भी अवलोकन किया गया । चूंकि बाल साहित्य का क्षेत्र किसी एक भाषा तथा एक देश मे ही सीमित नही है अतएव देश व विदेश के लेखकों के कृतित्व का अवलोकन अध्ययन किया गया तथा विभिन्न भाषाओं के रचनाये इस अध्ययन मेसम्मिलित की गई। चूंकि विषय बाल साहित्य से बालक के प्रत्येक पक्ष के विकास को सुनिश्चित करने का है, अत: यह जानना भी आवश्यक है कि बाल साहित्य क्या है तथा बालक का चतुर्मुखी विकास किस प्रकार संभव हो सकता है? अतएव बाल साहित्य तथा बालक के चतुर्मुखी विकास की समीक्षा करते हुये साहित्य की समीक्षा की गई ।
साहित्य समीक्षा – बालक मे चरित्र का विकास करना एक बड़ी चुनौती है परन्तु बाल साहित्य लेखक विभिन्न महान चरित्र यथा आजाद, भगत सिंह, सुभाष चंद्र, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल बहादुर शास्त्री की तरह देशभक्तों तथा भारतीय पौराणिक ग्रन्थ जैसे वेद ग्रंथों, रामायण तथा महाभारत से सम्बन्धित छोटी-छोटी कहानियां जब बालक बालिकाओं के लिए लिखते हैं तो भगवान राम की भांति बनने की प्रेरणा वे इन्हीं कहानियों से प्राप्त करेंगे तथा प्रेरणा का बाल मन पर विशेष प्रभाव होता है यथा विश्व के महानतम गणितज्ञों मे एक थे कार्ल फ्रेडरिक गौस जो बचपन से ही अंको के पैटर्न का अवलोकन कर गणनाये कर लेते थे उन्होंने गणित विषय मे कई शोध प्रस्तुत किये । जब इनकी प्रतिभाओं के विषय मे मरियम मिजकानी नामक एक ईरानी बालिका ने जब इनके विषय मे पड़ा तो वे इतना प्रभावित हुई तो उन्होने गणित विषय मे रुचि लेना प्रारम्भ किया तथा गणित का अध्ययन करना प्रारंभ किया तथा कई वर्षों के अध्ययन के बाद वे स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर बनी। उन्होने 2014 मे गणित का सर्वोच्च पुरस्कार “फील्ड मैडल” अर्जित किया । वे इस पुरस्कार को अर्जित करने वाली प्रथम महिला बनी ।
बाल मन का इतने मानसिक चारित्रिक विकास के ऐसे कई उदाहरण हैं नेहरू जी ने बाल साहित्य की अनेक उत्कृष्ट पुस्तकें पढी थीं और उनके बाल मन पर वे पुस्तकें जो प्रभाव डाल सकीं उसी के परिणाम स्वरूप उन्होंने बडे होने पर बच्चों के बौद्धिक विकास की महत्ता को समझा और इसके विकास के लिए प्रयत्नशील भी रहे। भगत सिह ने अपने बाल्यकाल मे क्रांतकारियो के वीरत्व की कहानिया पढ़कर सुनकर अपने पित से खेत मे बंदूकें बोने की बात की थी। अब्राहम लिंकन के जीवन का प्रेरणास्रोत भी बचपन में पढी एक पुस्तक ही रहीं जिसने उनके भविष्य का निर्माण किया। पाश्चात्य विद्वान पॉल हेजार्ड का यह कथन इस संदर्भ में द्रष्टव्य है “बच्चों की पुस्तकों के द्वारा इंग्लैंड का पुननिर्माण किया जा सकता है।”
नई शिक्षा नीति 1986 मे बालको को बाल साहित्य के द्वारा चारित्रिक विकास का समर्थन किया है । चिलड्रन बुक ट्रस्ट की पुस्तक “महान व्यक्तित्व पार्ट एक से दस तक” भी व्यक्तित्व निर्माण हेतु उपयोगी है। बाल साहित्य का उद्देश्य एक ऐसे चरित्र का निर्माण करना है जो विश्व कल्याण, विश्व बंधुत्व, मानवमात्र का कल्याण तथा स्वयं मे करुणा व प्रेम की भावना का विकास करके एक आदर्श समाज की स्थापना कर सके तथा मैत्री, प्रेम, दया, परोपकार और देश प्रेम के भावों का साम्राज्य स्थापित कर सके।
बाल मन मे संस्कार का विकास कैसे हो? “पंचतंत्र” के रचनाकार श्री विष्णू शर्मा ने पंचतंत्र की कहानियों में पशुओं और आम लोगों के माध्यम से विविध घटनाएं और प्रसंग इस प्रकार सृजित किया है कि उनकी हर कथा में मानवीय मूल्य यथा मैत्री, एकता, पारिवारिक प्रेम, देशभक्ति, करुणा, त्याग, सहनशीलता आदि मूल्यों समाहित हैं। पंचतंत्र में विष्णु शर्मा ने कहा है – “जिस प्रकार किसी नये पात्र का कोई संस्कार नहीं रहता, ठीक उसी प्रकार बालकों की स्थिति होती है।” अतएव कहानीयों के माध्यम से उन्हें प्रेरणा देकर उनमे संस्कार विकसित करना चाहिए। ’हितोपदेश‘ ’सिंहासन बत्तीसी‘ ’कथासरित्सागर‘ आदि ऐसी ही कृतियां हैं जो न केवल बालमन को आकृष्ट करती हैं, वरन वे उनमे एक उच्च संस्कार का विकास करती हैं। इस विषय पर एक दक्षिण भारतीय मासिक हिन्दी पत्रिका “चंदामामा” जो श्री बी नागी रेड्डी के द्वारा संपादित की जाती थी तथा मासिक पत्रिका “नंदन” की चर्चा भी प्रासंगिक है। ये दोनों पत्रिकायेँ केवल बालमन के उपयुक्त कहानियाँ प्रस्तुत करती हैं, वरन बच्चों को अच्छा बनने के लिए एक उच्च संस्कारित आदर्श का निर्माण करने के लिए प्रेरित करती हैं। राजस्थान आकदमी की पत्रिका –“मधुमती” का बाल साहित्य विशेषांक तथा नारायण लाल परमार द्वारा रचित “वाणी ऐसी बोलिए” तथा श्रीमती इंदिरा परमार द्वारा रचित “अच्छी आदतें” बाल मन को सही मार्ग दिखाकर तथा उनके मन मे अच्छे संस्कार उत्पादित करती है”।
बच्चे राष्ट्र की धरोहर होते है, जिनमें हमारा अतीत सोता है, वर्तमान करवट लेता है और भविष्य अंकुरित होता है। विकसित होने पर यही बच्चे अपनी योग्यता के बल पर वह जब बुराइयों से लड़ते हैं और अपने समाज एवं देश में एक नई चेतना भरते हैं, तब वह राष्ट्र विकसित होकर उन्नतशील देशों के समक्ष खड़ा होने योग्य हो जाता है। बेताल पचीसी व सिंहासन बत्तीसी जैसी कहानी संग्रह बालक के मन मे राष्ट्र के प्रति अपने गौरव तथा कर्तव्य की भावना को जाग्रत करती है। सुभद्रा कुमारी चौहान की “झांसी की रानी” के बोल “खूब लड़ी मर्दानी” उनमे राष्ट्र गौरव व उसके लिए मर मिटने की भावना का विकास करते हैं। समकालीन साहित्य मे राजस्थान साहित्य अकादमी मे प्रकाशित श्री विपुल ज्वाला प्रसाद के द्वारा रचित “आओ करे देश से प्यार” भी इसी क्रम मे प्रासंगिक है। वास्तविकता मे बाल साहित्य बच्चों को मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रभावित करके उनमे एक संस्कारित चरित्र का निर्माण करता है, यही कारण हे कि राहीजी बाल कविताओं को मात्र निरर्थक तुकबंदी का खेल नहीं मानते वह उन्हें किसी न किसी जीवनमूल्य अथवा संदेश का संवाहक मानते हैं।
पंडित रामनरेश त्रिपाठी की कविता “प्रार्थना” आज भी बच्चों में आध्यात्मिक भावना का स्वतः संचार करती है जैसे-’हे प्रभु आनंद दाता ज्ञान हमको दीजिए” इस छोटी से कविता में कवि ने बालमन की नैतिक अभिव्यक्ति को शब्द प्रदान करते हुए लयात्मक और गेय बनाया हैं। विमला शर्मा का उपन्यास “एक था सिपाही” बालमन मे साहस वृत्ति उत्पन्न करता है। रूसी लेखक अकार्ड गैदर का बाल उपन्यास “तीमूर और उसकी टोली” बच्चों मे संगठन की भावना का विकास करता है तथा बाल व्यक्तित्व के विकास मे योगदान देता है। टालस्टाय की कहानी “बड़ों से अच्छे बच्चे” मे बच्चों का झगड़ा बड़ो का झगड़ा बन जाता है, बच्चे तो तुरंत मेल कर लेते हैं, लेकिन बड़े तो झगड़ते रह जाते है। इसी कर्म मे प्रासंगिक है। राजस्थान साहित्य अकादमी मे प्रकाशित डा0 (सुश्री) लीला मोदी की कहानी “दीवार ढह गई” जिसमे घर के बटवारे के मध्य दो बालकों के मध्य दोस्ती का सजीव चित्रण प्रदरशित किया गया है । यह कहानी वस्तुत: मित्रता की भावना का मानव का मानव से प्रेम स्थापित करती है।
बाल साहित्य का लक्ष्य बच्चों के मानसिक धरातल पर उतारकर उन्हें रोचक ढंग से नई जानकारियां देना है। बच्चों को जो अच्छा लगता है, उसे ग्रहण करने में सकुचाते नहीं हैं और जो सामग्री उन्हें थोपी हुई लगती है, उसे नकारने में कदापि संकोच नहीं करते हैं। अज्ञेय के अनुसार “बेशक बच्चा संसार का सर्वाधिक संवेदनशील यंत्र नहीं है। वह चेतनशील प्राणी है अपने परिवेश का समर्थ सर्जक है। वह स्वंय स्वतंत्रचेता है, क्रियाशील है और जो कार्य अपनी अन्तःप्रेरणा से करता है।” इस संबंध में खलील जिब्रान की यह पंक्ति उल्लेखनीय है, “’‘तुम उन्हें अपना प्यार दे सकते हो, लेकिन विचार नहीं। क्योंकि उनके पास अपने विचार होते हैं।‘‘ परंतु बालकों मे अपार जिज्ञासा होती है उनकी इसी जिज्ञासा का उपयोग उनके मानसिक विकास मे करना होता है “उपयोगी आविष्कार”, “पर्वत की पुकार” ,”रंगो की महिमा’, “विज्ञान के मनोरंजक खेल” आदि बालकों के ज्ञान का संवर्धन करते हैं। डा श्याम मनोहर व्यास के द्वारा लिखित पहेलियाँ “अणु-परमाणु के टुकडे किये”, “ऐसा बली है कौन”। तीन नाम उसने दिये, इलेक्ट्रान, प्रोटान तथा न्यूट्रान।” आदि उनके ज्ञान का संवर्धन करती हैं। भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने “बाल-बोधिनी” नाम से बालिकाओं के लिए पत्रिका निकाली थी जिसमे बालिकाओं के लिए सिलाई कढ़ाई चूल्हा चौका तथा तथा अन्य सामाजिक विषयों पर रोचक तथा ज्ञान वर्धक सामग्री थी । इन्हीं की प्रेरणा से 1882 मे “बाल दर्पण” नमक पहली बाल पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ था। विज्ञान प्रगति तथा आविष्कार नामक पत्रिकाएँ बालकों को न केवल सामान्य जानकारियाँ वरन नवीनतम वैज्ञानिक व तकनीकी जानकरियाँ भी देती है।
पढना केवल बौद्धिक अनुभव नहीं है उसके द्वारा भावनात्मक अनुभवों की भी प्राप्ति होती है।‘ पढने से हास्य, रुचि, प्रसन्नता, उत्साह और महत्त्वाकांक्षा का विकास होता है। बालक के व्यक्तित्व का विकास होता है और बौद्धिक ज्ञान की भी वृद्धि होती है। जीवन जीने की कला और उसके उद्देश्यों को प्राप्त करना ही मानव का कर्तव्य होता है किन्तु यदि वह जीवन व्यवहार की कला नहीं जानता तो उसे सफलता नहीं मिलेगी। जोना स्पाइरी कृत “हीडी” एक ऐसी कहानी है जिसमे प्रकृति प्रेम सादा सरल जीवन एवं उच्च विचारों का संदेश है। लेखिका ने एक अनाथ बच्ची के माध्यम से कथा प्रस्तुत की है। बर्फ से ढके पहाड़ों पर चमकती चाँदनी का सौंदर्य, घाटियों मे गुंजती संगीत जैसी धुन, जंगली फूलों तथा तितलियों के खेल के मध्य एक शहरी लड़की “कलाज” की कहानी है जिसके पैर बेकार है लेकिन आलापस की खुली हवा एवं प्रकृति की गोद मे रहकर वह स्वस्थ हो जाती है। बालमन मे प्रकृति के प्रति प्रेम उत्पन्न करने वाली यह कहानी प्राकृतिक सौंदर्य के द्वारा भावनात्मक व संवेगात्मक विकास का उदाहरण है।
इसी प्रकार बालमन मे मानवीय सम्बन्धों को विकसित करने के लिए उपयुक्त बाल साहित्य भी लिखा गया है। अंग्रेज़ी लेखक जान रस्किन की रचना “किंग आफ द गोल्डन रिवर” कथा मानवीय प्रकृति व मानवीय प्रवृत्तियों का ऐसा जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करती है कि पाठक अभिभूत रहा जाते हैं।
बालमन मे पशुओं के प्रति प्रेम को विकसित करने के लिए कई कहानियाँ साहित्य हमारे मध्य उपस्थित हैं यथा भारतीय साहित्य की “आधुनिक मीरा” “श्रीमती महादेवी वर्मा” की कहानी “गिल्लू” जिसमे एक गिलहरी के बच्चे के साथ उनके संस्मरण तथा “नीलकंठ” जिसमे एक मोर के साथ उनके संस्मरण तथा “मेरे बचपन के दिन” आदि मे उन्होने बालमन को प्रेरित कर उसमे पशुओं के प्रति प्रेम को जगाया है । इसी प्रकार साहित्य का नोबल पुरस्कार पाने वाले अंग्रेज़ साहित्यकार “रुडयार्ड किपलिंग” की पुस्तक “जंगल बुक्स” जिसमे जानवर बोलने वाले पात्र हैं (जिसमे मोगली बालमन का अत्यंत लोकप्रिय पात्र है।) इस पुस्तक मे लेखक ने काम क्रोध, लोभ, मोह, आकांक्षा प्रेम जैसे मानवीय मूल्यों को उकेरा है तथा इसमे अनेक ऐसी घटानाओं का समावेशन है जो यह दर्शाती हैं कि प्रेम व सहानुभूति से खूंखार जानवरों को भी वश मे किया जा सकता है। ये सभी पुस्तकें बालमन को न केवल इस संसार के समस्त जीव जंतुओं से प्रेम करना सिखाती है। ये पुस्तकें उनके मन मे मानवीय सवेदना विकसित कर उनके उचित भावनात्मक, मानसिक आत्मिक तथा संवेगात्मक विकास को सुनिश्चित करती हैं। यही वजह कि ये सभी पुस्तके सीबीएसई के पाठ्यक्रम मे प्रथम ही सम्मिलित की जा चुकी है।
बच्चे को जन्म देना ही पर्याप्त नहीं है, उसके जीवन को दिशा देना उसे सही राह दिखाना भी उतना ही आवश्यक होता है। परंतु यह तभी संभव जब ऐसे साहित्य का सृजन हो जो बालकों को भावनात्मक दृष्टि से संबल दे सके उनमे धैर्य सहनशीलता त्याग स्नेह जैसे मानव मूल्य तथा संवेग व भावों का विकास हो सके। बच्चे स्वभाव से ही समझदार तथा संवेदनशील होते हैं परंतु फिर भी उन्हें भावनात्मक रूप से उचित संरक्षण की आवश्यकता होती है अतएव बालको का लगाव उसी साहित्य से होता है जो उसके अपने परिवेश से संबन्धित होता है। सामान्यतया बाल मन की कल्पना शक्ति अत्यंत प्रखर व उर्वर होती है कि वे कहानी व कविताओं मे दिये गए सूक्ष्म संकेतों से ही उन्हे सजीव बना लेते हैं तथा कहानी के पात्रों को अपने निजी जीवन से जोड़ लेते हैं। उनकी जिज्ञासा इतनी तीव्र व प्रबल होती है है कि वह विश्व के हर कोने के विषय मे जानना चाहता है यही बालको का विशेष गुण हे जिसका उपयोग कर सभी शिक्षक(माँ, गुरु तथा अध्यापक) उन्हें शिक्षा व विश्व के उस समस्त ज्ञान को प्रदत्त कर सकते हैं जो उसके विकास के लिए आवश्यक है साथ ही उसमे रचनात्मक विश्लेषणात्मक क्षमता का विकास कर सकते है । बाल साहित्य मे “डेनियल डफ़ो की रचना “रॉबिन्सन क्रुसों” जिसमे रोमांच तथा साहसिक अभियान समाविष्ट है तथा क्रुसों ,एक नाविक जो एक निर्जन द्व्वीप पर छूट जाता है तथा वर्षों तक अकेला रहता है । वास्तविकता मे यह एक सच्चे नाविक की कहानी है। इसी प्रकार क्रिस्टोफर कोलम्बस की सामुद्रिक साहसिक खोजों पर आधारित तथा काल्पनिक व वास्तविक घटनाओं से परिपूर्ण वर्ष 1928 मे वाशिंगटन इर्विंग के द्वारा लिखी गई काहनी संग्रह “ए हिस्ट्री आफ द लाइफ एंड वायाज़ आफ क्रिस्टोफर कोलम्बस” (3 वाल्यूम) आदि कहानियाँ वास्तव मे बालमन की जिज्ञासा को चतुर्मुखी विकास की ओर ले जाती हैं। इसी प्रकार अमरीकी लेखक “एडगर राइस बरो” ने भी टारजन श्रंखला की पुस्तकों के द्वारा बचपन मे ही जंगल मे भटक गए एक लड़के की कहानी प्रस्तुत की है । इसी प्रकार जोनाथन स्वीफ्ट ने गुलीवर ट्रेवल्स मे एक ऐसे नाविक की कथा का वर्णन किया है जो रोमांचक यात्रा करता है तथा एक ऐसे द्व्वीप पहुंचता है, जहाँ के निवासी बौने है, वहा सभी उसे दैत्य समझ लेते है । उनसे संघर्ष के बाद एक ऐसे देश पहुँच जाता है जहां के निवासी विशालकाय हैं। वहाँ उनके सामने वह स्वयं बौना प्रतीत हाओता है इस हास्यपूर्ण कहानी मे भी बालमन की जिज्ञासा व भाव का संवर्धन होता है। ये समस्त कहानिया, बाल साहित्य वस्तुत: बालमन की जिज्ञासा को जाग्रत व प्रबल कर उसमे अधिक ज्ञान ग्रहण करने विश्लेषण करने तथा उसके चतुर्मुखी विकास करने की संभावना बनाता है।
बालमन की समस्याओं को भी लेखको ने प्रदर्शित कर उनके मन को भी टटोला गया है साथ ही उन्हे दिशा देने का प्रयास भी किया गया है यथा एक दक्षिण भारतीय मासिक हिन्दी पत्रिका “चंदामामा” जो श्री बी नागी रेड्डी के द्वारा संपादित की जाती थी, मासिक पत्रिका “नंदन” तथा “सुमन सौरभ” जैसी बड़े होते बच्चो की पत्रिका मे अनेकों ऐसी काहानियों का समावेशन किया है जो न केवल उनको मन को संबल प्रदान करती हैं वरन उनके बाल मन की समस्याओं को संबोधित कर उन्हें सुलझाती हैं । इसी प्रकार “ बच्चों की परी कहानिया” इसी प्रकार एक बच्ची का यह भ्रम दूर करती है कि उसकी माँ उसे प्यार नही करती है, जबकि अंत मे उसे अपनी भ्रांति का हल मिल जाता है ।
एक तथ्य फिर स्पष्ट करना होगा उपरोक्त उदाहरण मे से कई पुस्तकों मे से कई पुस्तक बच्चो के लिए नही लिखी गई थी परंतु फिर भी चूंकि बालमन के लिए उपयुक्त थी अतएव बालमन ने उन्हें अपना लिया।
परिणाम व चर्चा –
बालक मे चरित्र के विकास के लिए वाल साहित्य की भगवान राम व कृष्ण, जवाहर लाल नेहरू व मोहन दास, करम चंद गांधी ,वल्लभ भाई पटेल, बाल गंगाधर तिलक, सुभाष चंद्र बोस आदि महान देशभक्तों पर लिखी गई बाल कहानिया ही नही,वरन गिल्लू नीलकंठ जैसे संस्मरण भी सहायक होते हैं ।भगत सिंह तथा अब्राहम लिंकन ने ऐसे ही बाल साहित्य को पढ़कर अपने चरित्र व भविष्य का निर्माण किया था ।
हितोपदेश,सिहासन बत्तीसी, बेताल पचीसी तथा बिष्णु शर्मा कृत पंचतंत्र जैसी कहानियाँ,दक्षिण भारतीय मासिक पत्रिका चंदामामा, नन्दन जैसी मासिक पत्रिकाए तथा राजस्थान साहित्य अकादमी का बाल साहित्य विशेषांक की कुछ कहानिया निश्चित रूप से बालमन मे अच्छे संस्कार का निर्माण करतीं हैं।
सुभद्रा कुमारी चौहान की “झांसी की रानी” ,विपुल ज्वाला प्रसाद की “आओ करे देश से प्यार” जैसी कई रचनाएँ तथा बाल दर्पण जैसी पत्रिकायें, बालमन मे न केवल राष्ट्रीय चरित्र का विकास करतीं है, वरन राष्ट्र के प्रति मर मिटने की भावना का विकास करती है।
हिन्दी रचना “पर्वत की पुकार” तथा अग्रेज़ी स्पाइरी कृत “हीडी” जैसी रचनायेँ बालमन मे प्रकृति के प्रति प्रेम जाग्रत करती है। वही भारतीय साहित्य की “आधुनिक मीरा” “श्रीमती महादेवी वर्मा” की कहानी “गिल्लू” जिसमे एक गिलहरी के बच्चे के साथ उनके संस्मरण तथा “नीलकंठ” जिसमे एक मोर के साथ उनके संस्मरण तथा “मेरे बचपन के दिन” आदि मे उन्होने बालमन को प्रेरित कर उसमे पशुओं के प्रति प्रेम को जाग्रत करती हैं। इसी प्रकार अंग्रेज़ साहित्यकार “रुडयार्ड किपलिंग” की पुस्तक “जंगल बुक्स” मे अनेक ऐसी घटानाओं का समावेशन है जो यह दर्शाती हैं कि प्रेम व सहानुभूति से खूंखार जानवरों को भी वश मे किया जा सकता है तथा यह जीव जन्तुओं के प्रति प्रेम को विकसित करती है ।
वहीं जान रस्किन की रचना “किंग आफ द गोल्डन रिवर” कथा, रूसी लेखक अकार्ड गैदर का बाल उपन्यास “ तीमूर और उसकी टोली, टालस्टाय की कहानी “बड़ों से अच्छे बच्चे” तथा राजस्थान साहित्य अकादमी मे प्रकाशित डा0 (सुश्री) लीला मोदी की कहानी “दीवार ढह गई” जैसी बाल कहनियाँ मानवीय प्रकृति व मानवीय प्रवृत्तियों का का चित्रण कराते हुये मित्रता की भावना का, मानव का मानव से प्रेम तथा मानवीयता की भावना का विकास करती है।
“ए हिस्ट्री आफ द लाइफ एंड वायाज़ आफ क्रिस्टोफर कोलम्बस” (3 वाल्यूम), अमरीकी लेखक “एडगर राइस बरो” ने भी टारजन श्रंखला तथा डेनियल डफ़ो की रचना “रॉबिन्सन क्रुसों” आदि कहानियाँ वास्तव मे बालमन की जिज्ञासा को चतुर्मुखी विकास की ओर ले जाती हैं।
निष्कर्ष- हिन्दी बाल साहित्य मे ऐसी पर्याप्त रचनाएँ जो बालकों का चतुर्मुखी विकास तथा संवर्धन करने मे सक्षम है तथा उसका अध्ययन बालमन के सभी पक्षों का विकास करता है। इसी प्रकार विश्व के बाल साहित्य मे भी ऐसी कई अनुपम रचनाए है जो बालमन के चतुर्दिक विकास को सुनिश्चित करता है श्री के शंकर पिल्लई द्वारा बाल साहित्य के सन्दर्भ में “चिलड्रन बुक ट्रस्ट” की स्थापना 1957 मे की गई थी अब हमारे देश मे पर्याप्त साहित्य है जो बालकों का चतुर्मुखी विकास को सुनिश्चित करता है।
आभार-
सृजन आस्ट्रेलिया अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका का धन्यवाद जिन्होने भारत के बाहर भी हिनी का प्रसार को अपना ध्येय बनाया है तत्पश्चात उन सभी पुस्तकों के लेखकों व प्रकाशकों का धन्यवाद जिनकी पुस्तकें पढ़कर मै इस शोधलेख को लिखने मे मै सक्षम हो सका ।
सन्दर्भ-
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डा श्याम सिंह शशि, भारतीय बाल साहित्य और विश्व परिदृश्य,हिन्दी साहित्य पत्रिका, प्रकाशन 01 नवम्बर 2007
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डा0 दिविक रमेश,हिन्दी का बाल साहित्य: परम्परा, प्रगति और प्रयोग,(हिन्दी कहानियाँ, लेख,लघु कहानियाँ, निबंध, नाटक, कहानी,आलोचना, उपन्यास, बाल कथाएँ, प्रेरक कथाएँ)- गद्य कोश ( org)
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यदुनंदन प्रसाद उपाध्याय, बाल साहित्य का उद्भव एवं विकास(आलेख),साहित्य शिल्पी (https://www.sahityashilpi.com/2016/02/baal-sahitya-history-article-yadunandan-prasad-upadhyay.html)
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विजय शंकर मिश्र, आजकल: बाल साहित्य-परम्परा और आधुनिकता बोध: पृष्ठ सं011
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डा0 बच्चन सिंह, आधुनिक साहित्य का इतिहास, पृष्ठ सं0270
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रेखा जोड़ एवं डा0 राजेश कुमार, हिन्दी बाल साहित्य: आवश्यकता एवं महत्व, जर्नल आफ एडवांस्ड एंड स्कोलरली रिसर्चेज इन अलाइड एजुकेशन, अकतूबर 2013
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Last Updated on December 12, 2020 by srijanaustralia
- अंचल सक्सेना
- उप प्राचार्य
- केन्द्रीय विद्यालय कानपुर केण्ट कानपुर
- [email protected]
- केन्द्रीय विद्यालय कानपुर केण्ट कानपुर