विषय:- प्रेम-काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतु
कविता:- बात उन दिनों की थी
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बात उन दिनों की थी
जब मैं पहेली बार तुझसे मिलने को आया
थोड़ा सरमाया थोड़ा घबराया
तू थोड़ा सा बेताब सी थी
मुझसे मिलने को उत्सुक सी थी
तुझसे मिले अरसा सा हो गया था
तुझ तक पहुचने में खर्चा सा हो गया था
तुझे उठाया
गले से लगाया
तुझसे मिलने की बड़ी आरजू थी बड़ी बेताबी थी
तुझे देख कर
तेरे चहेरे पर हर शब्द पढ़ लिया मैंने
तुझमे लिखा हर छण जी लिया मैंने
ये बात उन दिनों की थी
जब तुझे पढ़ कर हर इम्तेहान दे दिया करता था
तुझे सीने से लगा कर पूरी रात सो लिया करता था
कभी तुझे उठाने में मेरी कमर नहीं झुकी
कभी तुझे भुजता देख मेरी सांसें नहीं रुकी
तुझमे लिखा हर शब्द मुझे भाता था
तुझे पढ़ कर मेरा रोम रोम खिल जाता था
ये बात उन दिनों की थी
जब तू ही तो थी
जो मेरे साथ उठती बैठती थी
मेरे लाख कोशिशों बाद भी मैं तुझे मना न सका
तुझे अपने इम्तेहान के वक़्त लेजा न सका
मुझे पता था तू मुझसे नाराज थी
पर क्या करता मुझे भी खुद से आस थी
ये बात उन दिनों की थी
जब मैं तुझसे दूर जा रहा था
किसी और के करीब आ रहा था
अब वो बात नहीं थी
तुझसे बिछड़ कर मेरी कोई रात नहीं थी
वो चहरे पर शब्द पढ़ लेना
वो तुझमे लिखा हर छण जी लेना
तू थी तो हर इम्तेहान पास हो जाता था
तुझे पाकर ये जीवन आम से खास हो जाता था
तू गई तो ये जीवन वीराना सा हो गया है
सब कुछ अब अनजाना सा हो गया है
ये बात एक दिन की नहीं कई दिनों की थी
ये कोई और नहीं
ये मेरी किताब थी
ये बात उन दिनों की थी
ये बात उन दिनों की थी……….||
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रचनाकार का नाम:- रितेश जिंदल
पदनाम:- अधिवक्ता
डाक पता:- पुरानी मंडी, वार्ड न.08, सितारगंज, उधम
सिंह नगर, उत्तराखंड, पिन कोड- 262405
ईमेल पता:- [email protected]
मोबाइल/ व्हाट्सएप्प नंबर:- 8433193713
Last Updated on January 17, 2021 by riteshgpt00
- रितेश जिंदल
- अधिवक्ता
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