अकेला विसरा अपनी राहों में चला था,
किसी की जरूरत सता रही थी,
जिनसे दिल की बातें करूँ,
दिल के दर्द बयां करूँ,
फिर वो दिन आया जब सब बदल गया,
उसकी आहट से जिंदगी में रंग से भर गए ।
उसकी हंसी जीने की उम्मीद जगाते,
उसकी पर्शायी मुश्किलो से भरी जिंदगी को,
नयी दिशा दे जाती,
सुखी हवा भी ठंडक दे जाती,
उसके साथ चलने से जीवन धन्य हो जाता ।
फिर एक दिन उसने धीमे आवाज़ में पूछा,
मुस्कुराते हुए,
तुम हो तो हमारी जाति के न,
तुम बिन अब गुज़ारा नही हमारा,
उसने (लड़का) थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोला,
तुमसे छोटी जाति का हूँ,
पर कमी कोई नहीं आने दूँगा,
पलकों पे बिठाकर,
खुद धुप में जलकर, छाया दूँगा,
उसने (लड़की ) कहा मेरे घर वाले नहीं मानेंगे ।
और फिर,
घर वालों को पता चलते ही,
लड़की की शादी कहीं और करदी,
रोती बिलखती ससुराल जो गयी वो,
उसे यह सुनकर खुदा याद आया और कहा,
क्यों किया ऐसा, बिगाड़ा क्या है मैंने किसी का,
दो पल की ख़ुशी दी थी छीन ली वो भी ।
खुदा ने चुपके से कहा,
मैंने तो इंसान है बनाया, यह तो तूने बनाया,
इसी आग से खेलते जो आये हो,
इसी अहंकार में जीवन बिता रहे,
तुम्हें इसी में जीवन बिताना है, पर हाँ,
इसे बदलने की कोशिश जरूर करना,
एक नया अध्याय मानवता को समर्पित जरूर करना,
ताकि आने वाली पीढ़ी सबक ले,
और तुम्हारी तरह किसी और को तकलीफ न हो ।
Last Updated on January 17, 2021 by kpankaj.pk47
- पंकज कुमार
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