स्ताह भर से
भूखे पेट हूँ
पेट की गड्ढे में
आग जल रहा है
धू-धू कर
हुंह और बर्दास्त नहीं हो रहा है
सर के ऊपर तक
आग की लपटें उठ रहा है .
पेट की गड्ढे को भरने
जलती आग को
बुझाने के लिए
तुमसे कितना प्रार्थना किया
एक मुट्ठी भोजन के लिए
बार -बार गया तुम्हारे पास
पर तुम
बचा हुआ भोजन को
अधखाया और जूठन को
मुझे देने में
तुम्हे नागवार लगा
गन्दी नाली में बहा दिया
कच्ची दूध को
पत्थर की देवता की माथे पर
डाल दिया
मीठी -मीठी पकवाने
देवताओं को सौंप दिया
शायद मन में विचार किया
मैं तुम्हारे बराबर का नहीं हूँ
दो पैरवाला जानवर हूँ
इसलिए मेरा भूख से मुरझाना
भूख से मर जाना
तुम्हे आनंद दे रही है .
Last Updated on January 1, 2021 by srijanaustralia