बेटियाँ
घर मेरे मौसम की, बहार आयी,
घर मेरे शबनम की, फुहार आयी,
दे दिया तोहफ़ा, मुझे कुदरत ने,
बागीचे में मेरे, एक कचनार आयी।
ओस सी नाज़ुक, मासूम तितलियों सी,
कमल से नयन, चमक बिजलियों सी,
मुस्कुराहट तो ऐसी कि गम भूल जाऊँ,
सभी को हँसाने, एक गुलनार आयी।
ज़माने से लड़ना, है सिखाना तुम्हें,
आगे और आगे, है बढ़ाना तुम्हें,
पढ़ेगी, बढ़ेगी, होगा मुकाम हासिल,
मेरा सपना वो करने साकार आई।
बेटियाँ अमानत, हैं किसी और की,
सोच को ऐसी, बदलना ही होगा,
सम्भलेगी अभी, सम्भालेगी तभी,
दो-दो कुलों का, बढ़ाने मान आई।
नवल किशोर गुप्त
वाराणसी
मो. 7752800641
Last Updated on January 21, 2021 by replytonawal
- नवल किशोर गुप्त
- मुख्य प्रशिक्षक
- बनारस रेल इंजन कारखाना, वाराणसी
- [email protected]
- N-6/2B-49 इन्दीरा नगर कालोनी, चितईपुर, वाराणसी-221005 उ.प्र. भारत