एहसास
मन भावों को कैसे उकेरूं,
शब्द नहीं हैं पास मेरे,
कैसे गढ़ू मैं चित्र घनेरे,
रंग नहीं हैं पास मेरे।
एहसासों के बादल बरसें,
चढ़े रंग तेरे प्यार का,
भीनी-भीनी खुशबू फैले,
मौसम हो यह बहार का।
स्नेह-शिला पर प्रकृति बैठी,
करती हो श्रृंगार रे,
आलिंगन में भरके मुझको,
देती चुम्बन-हार रे।
यादों की इस बेला में,
शाम सुहानी लगती है,
मध्धम सी दीपक की लौ,
अनकही कहानी कहती है।
जीवन की आपा-धापी में,
कब हो जाये प्यार रे,
मिलने की मैं आश करूँ,
अवलम्ब नहीं है पास रे।
नवल किशोर गुप्त
वाराणसी
मो 7752800641
Last Updated on January 21, 2021 by replytonawal
- नवल किशोर गुप्त
- मुख्य प्रशिक्षक
- बनारस रेल इंजन कारखाना, वाराणसी
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