ना कोई लाचारी ना कोई
दुःख व्याधि कायनात में
खुशियों खुशबू का हर मन
आँगन घर आँगन से नाता
शौर्य सूर्य कहलाता।।
युग मे नित्य निरंतर काल
की गति अविराम काल कदाचित
सूरज गति का सापेक्ष काल
निरन्तर चलता जाता।।
युग की फुलवारी का भूत भविष्य वर्तमान का ताना बाना आना
जाना आदित्य अर्थ बतलाता जाता।।
ब्रह्मांड के आदि अंत मे
युग काल के आगमन गमन में
प्रातः प्रशांत हृदय से उदय उदित
त्रिभुवन में सूरज काल कर्म
व्यख्याता।।
उदय वात्सल्य चंचल शीतल
कोमल नित धरा के स्वागत
का सृंगार बनाता।।
युवा प्रखर निखर प्रगति
प्रतिष्ठा का परम स्रोत पथ
प्रदर्शक उपलब्धि महिमा का
महत्व पुरुषार्थ का दाता।।
सांध्य अवसान युग को
चंद्र की शीतलता देकर
घड़ी पल प्रहर विश्राम
को जाता आंधेरो की
अनुभूति से युग को
सूरज चैतन्य चेतना
प्रकाश का एहसास
कराता।।
प्रातः संध्या भुवन भास्कर
आते जाते रक्त लाल सी
किरणों से आत्म बोध की
प्रेरणा जगाता।।
सांध्य अवसान की बेला में
चाँद अमावस से कहता जाता
अक्षुण्ण रखना युग ब्रह्मण्ड को
निद्रा में भय भाव
मत लाना।।
सूरज के मुस्कानों से हर प्रातः
युग ब्रह्मांड निद्रा का त्याग
कर नव जीवन का आद्यपान्त
आनंद की अनुभूति करता
आशीष है पाता।।
Last Updated on February 1, 2021 by nandlalmanitripathi
- नंन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
- प्राचार्य
- भारतीय जीवन बीमा निगम
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