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डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

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डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

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सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
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हास्य और गाम्भीर्यता की अनूठी रार, गजब… ‘पोली’ और ‘पोली का यार’

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सुशील कुमार ‘नवीन ‘

किसी रिपोर्टर ने हरियाणा के रामल से पूछा कि आप लोग बार-बार कहते सुनाई देते हो कि भई, स्वाद आग्या। ये स्वाद क्या बला है और ये आता कहां से है। रामल ने कहा-चल मेरे साथ।आगे-आगे रामल और पीछे-पीछे रिपोर्टर। दोनों चल पड़े। रास्ते में एक व्यक्ति खाट पर लेटा हुआ था। दोनों पैरों पर प्लास्टर बंधे उस व्यक्ति से रामल ने पूछा-चोट का क्या हाल है भाई। होया कुछ आराम। वो बोला-दर्द तो है पर स्वाद सा आ रहया सै। काम-धाम कुछ नहीं, दोनों टेम घरकै चूरमा बनाकै देण लाग रै सै। हल्दी मिला गरमागर्म दूध जमा तोड़ सा बिठा रहया सै।

आगे चले तो दो लुगाई (औरत) गली के बीच में बात करने में जुटी हुई थी। एक सिर पर गोबर भरा बड़ा सा तसला लिए हुए थी तो दूसरी पानी से भरा घड़ा। बातों में इतनी मग्न थी कि तसले और घड़े का वजन भी उन्हें तिनके ज्यूं लग रहा था। एक घण्टे से भी ज्यादा समय उनकी मुलाकात शुरू हुए हो चुका था। अभी भी उन्हें ग्लूकॉन-डी की कमी महसूस नहीं हुई थी। होती भी कैसे दोनूं बैरण सबेरे-सबेरे लास्सी के दो ठाडे (बड़े) गिलास बाजरे के रोट गेल्या चढ़ा कै आ रहयी थी। उनसे भी वही सवाल पूछा तो जवाब मिला। औरे भाई, तू पाछे नै बतलाइए, आज या घणा दिनां म्ह मिली सै, बातां म्ह जमा स्वाद सा आ रहया सै। रिपोर्टर आगे बढ़ना छोड़ पीछे मुड़ लिया।

बोला-गजब हो भई। आपके तो स्वाद का भी अलग ही जायका है। दर्द में भी और बोझ में भी स्वाद लेना कोई आपसे सीखे। रामल बोला-ये तो दो सैम्पल दिए हैं स्वाद के। हम तो जीण- मरण, खावण-पीवण, लेवण-देवण, हासण-रोवण, कूटण-पीटण सब जगह स्वाद ले लेते हैं। 

रामल ने कहा-चौपाल तक और चलो। फिर लौट चलेंगे। रिपोर्टर ने फिर से हिम्मत जुटाई और पीछे-पीछे चल पड़ा। चौपाल में चार बुजुर्ग ताश खेल रहे थे। अचानक एक बुजुर्ग जोर से चिल्लाया-इब लिए मेरे स्वाद। दूसरा बोला-कै होया, क्यूं बांदर ज्यूं उछलण लाग रहया सै। हथेलियों में फंसे मच्छर को दिखाकर वो बोला- यो तेरा फूफा इबकै काबू म्ह आया सै। एक घण्टे तै काट-काट सारी पींडी सुजा दी। तीसरा बोला-इब इसनै फैंक दे, कै(क्या) इसका अचार घालेगा। जवाब मिला-न्यू ना फेंकू। घरा ले ज्याकै तेरी भाभी नै गिफ्ट म्ह दयूंगा। रोज कहे जा सै, एक माच्छर ताईं मारा नहीं जांदा तेरे तै। चौथा कहां पीछे रहने वाला था। बोला-देखिये कदै वीर चक्र कै चक्कर में महावीर चक्र मिल ज्या। इतने में हरियाणा वाला बोल पद्य महावीर चक्र का नाम सुनते ही सब बोले-ले भाई, स्वाद आग्या। रिपोर्टर बोला-ये महावीर चक्र का क्या मामला है। और इस पर हंस क्यों रहे है। एक बुजुर्ग बोला-बेटा-एक बार सफाई के दौरान म्हारे इस साथी की घरवाली ने इसे गेहूं की बोरी साइड में रखवाने की कही। साथ में ये कह दिया कि बाहर से किसी को बुला लाओ, अकेले से नहीं उठेगी। यही बात इसके आत्मसम्मान को चुभ गई। बोला-ये बोरी क्या, मैं तो दो बोरी एक-साथ उठा दूं। कह तो दिया इसने पर दो क्या इससे आधी बोरी उठनी सम्भव नहीं थी। किसी तरह घरवाली के सहयोग से इसने एक बोरी पीठ पर लाद ली और बजरंगबली का नाम लेकर चलने का प्रयास किया। एक कदम में ही बजरंगबली से इसका कनेक्शन टूट लिया। ये नीचे और बोरी ऊपर। घरवाली बाहर से दो आदमी बुलाकर लाई और भाई को बोरी के नीचे से निकाला। उस दिन बाद ये बोरी तो छोड़ो सीमेंट के कट्टे उठाने की न सोचे।

     रिपोर्टर ने रामल से अब लौटने को कहा। स्वाद की पूरी बायोग्राफी उसके समझ आ चुकी थी। अब आप सोच रहे होंगे कि ये स्वादपुराण मैंने आपको क्यों पढ़ाया। तो सुनें। किसान आंदोलन के दौरान हरियाणा के एक युवक का मजाकिया वीडियो लगातार चर्चा में है। शुरू-शुरू में सबको सिर्फ ये हंसने-और हंसाने मात्रभर लग रहा था। माना जा रहा था कि किसी भोले युवक के रिपोर्टर स्वाद ले रहे हैं। पर उसके दूसरे वीडियो ने तो पहले वाले वीडियो को और वेल्युबल कर दिया। पहले वीडियो में हरियाणवीं युवक भजन किसान आंदोलन में अपने एक मित्र ‘पोली’ के न आने से नाराजगी दिखा रहा था। कह रहा था कि वो अपनी बहू के डर के कारण यहां नहीं आया। सोशल मीडिया पर ‘पोली’ को उसके द्वारा आंदोलन में शामिल होने के आमंत्रण का तरीका सबको भा गया। जब से ये वीडियो चर्चा में आया, तब से कमेंट में ‘आज्या पोली’ लगातार सुर्खियों में था। अब उसका एक और वीडियो आया है। उसमें भजन के साथ उसका मित्र पोली आ गया है। ये वीडियो भी पहले वाले से कमतर नहीं है। कृषि कानून बदलवाने जैसे गम्भीर विषय को लेकर जारी किसान आंदोलन के दौरान दोनों वीडियो लोगों को भरपूर स्वाद दे रहे हैं। हास्य के साथ एकजुटता की गाम्भीर्यता भरा संदेश हरियाणवीं से बेहतर कोई नहीं दे सकता। तभी तो कहा गया है कि हरियाणा वालों को कहीं भी भेज दो, स्वाद तो ये अपने आप ही ढूंढ लेंगे। 

(नोट:लेख मात्र मनोरंजन के लिए है। इसे किसी के साथ व्यक्तिगत रूप से न जोड़कर पढ़ा जाए।)

लेखक: 

सुशील कुमार ‘नवीन’

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है।

96717-26237

Last Updated on December 26, 2020 by jaipalshastri20

  • सुशील कुमार 'नवीन'
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