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डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

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डॉ. शैलेश शुक्ला

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पंगा मत लो नॉटी गर्ल,इन्हें अच्छे की भी समझ है और बुरे की भी, सरकार नहीं ‘सर्वकार’ हैं यें….

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सुशील कुमार ‘नवीन’

तेज प्रवाह से बहते नदी के पानी से टकराव मूर्खता ही तो होगी। कड़ाहे में खौलते तेल में हाथ डाल ऊष्मता को जांचना समझदारी थोड़े ही न कहलाएगी। बिजली है या नहीं इसके लिए नंगे तारों को छू कर थोड़े ही ना देखा जाएगा। बहती हवा और सूरज की रोशनी को जैसे किसी चारदीवारी में कैद नहीं किया जा सकता। उसी तरह कर्मवीरों को कोई भी बाधा या अवरोध आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती। जब सब कुछ सार्वभौमिक सत्य है तो फिर बीच समुंद्र बांध बनाने की कोशिश क्यों। सड़क के बीचों-बीच गड्ढे खोदने से क्या उनकी चाल की गति धीमी पड़ी। खुले आसमान तले टयूबवैल के पानी में रोज नहाने वाले इन धरतीपुत्रों को वाटर कैनन की धार क्या खाक रोक पाई।

आप भी सोच रहे होंगे कि आज मैंने कौन सी राह पकड़ ली है। तो सुने मैं भी आज दिल्ली की राह पर हूं। देश का सबसे बड़ा परिवार तो आज वही बैठा है। वहां न सिख है ना हिंदू। न जाट है ना ब्राह्मण, ना कुम्हार है ना सुनार। न कोई छोटा, न बड़ा। सब के सब एक परिवार ज्यों, कंधे से कंधा मिला हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। उधर कुछ लोग अब भी बाज नहीं आ रहे। साथ न दे सको कोई बात नहीं, चुप तो रह ही सकते हो। जब खुद का अंगना टूटा था तो वो नॉटी गर्ल खूब चिल्लाई भी थी और बिलबिलाई भी। अब बिन बुलाये मेहमान की तरह किसान आंदोलन के बीच में टपक पड़ीं हैं और ज्ञान बघारने लग गई हैं। हां, जवाब इन्हें भरपूर मिल रहा है।

     दिल्ली की कम्पकम्पाती रातों में डटे पड़े ये लोग कौन हैं। इनकी ताकत क्या है। क्यों समाज का हर वर्ग इनकी लड़ाई को अपनी लड़ाई मान समर्थन दे रहा है। तो सुनो। ये वो लोग हैं जो जुड़ना भी जानते हैं और जोड़ना भी। ये मुड़ना भी जानते है और मोड़ना भी। ये रोना भी जानते हैं और रुलाना भी। ये हंसना भी जानते हैं और हंसाना भी। ये गढ्ढा खोदना भी जानते हैं और भरना भी। ये मिलना भी जानते हैं और मिलाना भी। ये उखड़ना भी जानते हैं और उखाड़ना भी। ये दौड़ना भी जानते हैं और दौड़ाना भी। ये खाना भी जानते हैं और खिलाना भी। ये बहना भी जानते हैं और बहाना भी। ये चाल भी जानते हैं और चलाना भी। ये देना भी जानते हैं तो लेना भी। ये खोना भी जानते हैं तो पाना भी। 

     ये नफा भी जानते हैं और नुकसान भी। मौन इनकी सबसे बड़ी ताकत है पर जब मुखर होते हैं तो सबकुछ हिला देते हैं। वे आस भी रखते हैं और विश्वास भी। ये खुद ही अपने ब्रांड है और एम्बेसडर भी। कर्म के दीवाने हैं और मस्ताने भी। ये तो वो तूफान है जो अपनी दिशा खुद तय करते हैं। ये जितने सुलझे हैं, उससे कई गुना उलझना जानते हैं। और क्या कहूं ये मिटना भी जानते हैं और मिटाना भी। इसलिए इनसे पंगा मत लो नॉटी गर्ल। इन्हें अच्छे की भी समझ है और बुरे की भी, सरकार नहीं सर्वकार हैं यें..।

(नोट: लेख मात्र मनोरंजन के लिए है, इसे कोई व्यक्तिगत रूप से  जोड़ने का प्रयास न करें।

लेखक:

सुशील कुमार ‘नवीन’

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है।

96717-26237

Last Updated on December 5, 2020 by jaipalshastri20

  • सुशील कुमार 'नवीन'
  • Deputy Editor
  • सृजन ऑस्ट्रेलिया
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