“जो बुंद से गयी वो”
[ लघु कथा ]
निले आकाश मे लाल, सुनहरे रंग बिखरे तब ही पायल घर से बाहर निकली। एक बो-या और ____, इतना साथ लेके वो चली थी। उसका अंदाज यह था की सब काम पूरा करके नऊ या दस बजे तक वापस लौटेगी। दूसरे चर्मकार, मुरदे फाडनेवाले इस डम्पिग ग्राऊंड पर आने से पहले ही पायल वहाँ पहुंच गयी थी। चारो पैर उपर करके एक भैंस का मुर्दा पडा था। कोई मालिक ने रात के अंधेरे मैं ही भैंस का मुर्दा उस ग्राऊंड पर लाके फेक दिया था। पायल को बहोत आनंद हुआ। वह मुर्दे के आसपास कुत्ते भी इधर उधर नही घुमते थे। वैसे तो वह कुत्ते बहुत खतरनाक थे। उन कुत्तों में कोई लौंडा भी आता था। तो वो वह धोखादायक होता था। क्यों कि वह जानवर जंगली और अचानक आदमीपर सीधी चाल करनेवाला था। आज से पहले एक-दो मेहेतर, लोंडे के हमले मे घायल होकर मर भी चुके थे। आज तो पायल को बडी अच्छी चीज मिलने वाली थी। क्यों कि वह अकेली ही थी।
पायल के बाप का, जिसका नाम नरसू था, उसका चमडी अच्छी तरह कमाने का व्यवसाय था। यह धंदा उसके पुरखों से घर में चालू था। नरसू जब सात – आठ बरस का था, तभी से वो यहाँ गंदगी में आता था। मृत जानवर की चमडी निकालने को। मरने के बाद जानवर, वहाँ जल्दी से जल्दी फेक दिया होता तो उसकी चमडी निकालना बहुत आसान हो जाता था। लेकीन जितना जादा वक्त गुजरेगा, उतना जानवर फाडने की बहुत मेहनत और तकलिफ होती थी। पुरी रात या एक – दो –दिन वहाँ पडा रहता तो हथियार की तेजी झटसे उतर जाती थी। कभी कभी, तीन – तीन, चार – चार हथियार भी चमडी निकालने मे नाकाम हो जाते थे। हाथ भी वह कठीन, कडक चमडी निकालने से दुखने लगते थे। वह डम्पिंग ग्राऊंड तो मृत जानवरों की स्मशान भूमी थी। उधर पीने को पानी भी नहीं मिलता था। एक प्याली चाय मिलना तो बडी दुरापास्त बात। लेकीन पापी पेट का सवाल तो है। कडी धूप या रात की घनी अंधियारी, कभी जोरसे घनी बरसात तो कभी बहुत थंडी मरे हुए जानवर छिलनेका काम तो करना पडता था। इस काम मिलाने के लिए सफाईवाले मेहतरो से दोस्ती करनी पडती थी। कभी कोई बैल, म्हैस, घोडा, सूअर, गाय, डम्पिंग मे मुर्दा आ गया तो तुरंतही नरसू को बताते थे। उसे तुरंत ही वहाँ आने का निमंत्रण देते थे। नरसू अपने जानवर की चमडी छिलने के सभी हाथियार तेज करके तैयार ही रहता था। वो वार्ता मिलते ही डम्पिंगपर जाता था। पूरा जानवर को सीधा अखंड छिलने मे नरसू माहिर था। उसका हाथ बैठा था। चमडी निकालते वक्त बहुत कुत्ते वो छिलनेसे खुला हो गया मांस खाने को तरसते थे। कव्वे, गिधड भी ताजा मांस खाने के लिए टुट पडते थे। ये मरे हुए जानवर का मांस कोई खाता नहीं था। क्यों की मरा हुआ जानवर बिमारी से मर जाता होगा, तो मांस आदमीने खाया तो जहरीला दुष्परिणाम भुगतना पडता था। इसिलिए कोई भी आदमी मांस घर पर नहीं ले जाता था। लेकिन, भटकनेवाले मोकाट कुत्ते, कव्वे, गिधड, उल्लू, लोमडा वो बिनाकष्ट से मिलनेवाला मांस को बडी खुशी से खाते थे। इस धंदे से ही नरसू का घरसंसार चलता था। नरसू की पहली पत्नी मर चुकी थी। पायल उसकी लडकी थी। नरसू ने दुसरी औरत से शादी की लेकिन वह दुसरी सौतेली माँ पायल को प्रेम सी पालती थी। माँ – बेटी के घरेलु संबंध बिलकूल अच्छे थे। लेकिन एक बुरी बात उस माँ में ये छुपी हुयी थी। वह बहोत आलसी थी। पायल को उसके काम मे बटोरना कभी भी नही करती थी।
एक दिन पायल के बदनसीब से नरसू को लकवा मारा। वो बिस्तर मे ही पडा था। अपने कुटुम्ब का कैसे गुजारा करूँ अभी? ये चिंता उसके मन मे अस्वस्थता पैदा करती थी। उसकी बिमारी इस वजह से दिन बे दिन बढती जा रही थी।
पालतू जानवरों की चमडी निकालने के बाद उसे चप्पल, जूते, हॅंड बॅग्स, बनाने लायक नरम और चिकना बनाना पडता है। वह काम बहुत ही मेहनत का था। कल तक वह काम नरसू बडी, कडी मेहनत से और रातदिन कर रहा था।
कौनसे जानवर की त्वचा हैं?
वह कितनी नरम, चमकदार बनायी गयी है। उसके हिसाब से एजंट लोग, अडत्या लोग, या चप्पल, जूते बनानेवाले सभी चर्मकार चमडी की किंमत लगाते थे। ’बोली’ लगाई जाती थी। ये सब प्रासेस मे नरसू बहोत होशियार था। कुडा –कचरा, गंदगी, मृत जानवरोकी सडे हुए शरीर दुर्गंधी, ये सब बातो से उसका कोई भी लेन – देन नहीं था। उसको बाँस ही आती नहीं थी। लेकिन वो समाज का एक घटक था। अति मौल्यवान लेकिन बहुत गंदा काम कर रहा था। उसकी सफाई से गाँव में बिमारीयाँ नहीं थी। इतना अनुपमेय काम वो करता था, लेकिन समाज तो उसको, हीन आदमी, दरिद्री, मेहेतर, शुद्र ऐसा ही संबोधित करते थे। ये दुख उसके आंतर्मन मे दर्द दे रहा था। कई बार उसके मन मे आता था, कि ये काम छोडेंगे। परंतु अभी इस उम्र मे दुसरा क्या धंदा – व्यापार करना भी उससे मुश्किल था। इतने पैसे भी नहीं थे उसके पास। कई बरसों से यही काम करते करती वह उसमे स्थिर हुआ था। अब तो कुछ नया काम शुरू करना भी आसान नहीं था। नरसू बिछाने पर लेटा ही रहता था। उसको बैठने की भी उम्मीद नहीं थी।
पायल की शादी के लिए जमा की हुई पुंजी, उसकी पहली पत्नी और खुद के दवा – दारू में खर्च हो चुकी थी। समाज सुधर गया। उसके ज्ञाती बांधव भी उस गंदगी से छुटकर कोई अलग काम करने लगे थे। वैसे तो पुरा विश्व मे झटपट बदलाव हो रहा था। सुख के बहुत से साधन आये। लोगों को बहुत पैसा मिलने लगा। लेकीन बेचारा नरसू वही दारिद्र्य मे, अनपढ और रोग, दु:ख जर्जर ही जिना जी रहा था।
“आगे क्यां होगा? प्रपंच कैसा चलेगा?”
यही एक चिंता उसे सताती थी। माथे में बहुत दर्द करती थी। जब वो चिंता से बहुत व्यथित होता था, उस समय अपनी दुसरी पत्नी पारूल को हुक्का भरके देने को कहता था। हुक्के की धुआ से उसे जो नशा आती थी, उसीमे वो सब विचार, सारी चिंताए,सारे दु:ख भूल जाता था और हुक्का पीते पीते ही सो जाता था।
“अपना क्या होगा पारू? ” वो पत्नी को निराश अवस्था में पुछता था।
“क्या होगा? आज भी दिन आते है, जाते है। वैसा ही चलेगा। हम भूखे नही मरेंगे। पारूल उसे विश्वास देती थी।
“नही मेरा पूछने का मर्तबा यह नहीं हैं। मेरी तबियत कब सुधरेगी। मेरी वजह से पायल को वो काम करना पडता हैं। अब तो वो जवान हो गयी है। उसकी शादी करनी पडेगी। लेकिन पैसा तो नही है। वो कहाँ से लाएंगे?” पायल तो जवान है। अकेली सुबह जल्दी वहाँ जाती हैं। उसके कष्ट कितनी लेंगे? और हम दोनो घर मे बैठे बैठे ही खायेंगे?
“बडी हो गयी, सयानी हो गयी तो क्या हुआ? कुछ काम – धंदा तो करना ही चाहिए उसने भी। मैनें भी बाहर आँगन मे सब्जी बेचने की दुकान लगायी हैं ना? पेट तो भरता हैं ना, किसी भी तरह। जी आप जरा मस्तिष्क को शांती दो। कुछ ऐसे बुरे,पगलापन की बाते मत सोचो। चूपचाप पडे रहो। वो ही तबियत को अच्छा है। सो जाओ। ”
“मैं तुझे हजार बार बोला हूँ, की उसे मत भेजो। आखिर तू सौतेली माँ है तू। वो अकेली जाती है। दिन खराब आये है। उसे कुछ अच्छा – बुरा हो गया तो…? ”
“कुछ नहीं होता। वो तो किसी को घबरती नहीं हैं। उसमे किसीसे दो हाथ करने की हिम्मत और ताकद भी है। और आप तो रात को भी जाते थे वहाँ। जानवर फाडने को। वैसा तो पायल नहीं जाती है ना। वो तो दिन मे जाती है।”
“अरे, पारूल, पायल की माँ, अब किसी का भरोसा नहीं है। कौन कैसा होगा, कुछ समझता ही नही। पायल तो स्त्री जाती की है। जवान भी है। वहाँ तो जुगार के अड्डे लगते है। जवान लडके शराब पीने को आते है। मुझे तो पायल रानी की बहुत फिक्र लगी रहती है। जब तक वो घर वापस नहीं आती।”
“आप तो ऐसी चिंता और फिक्र करके बैठो घरमे। आपको ये मालुम है?
“क्यां? मुझे कुछ नही मालूम। तुझे मालुम है तो बता देना मुझे। ”
“आपकी लाडली पायल अकेली नहीं रहती उधर। उसके आगे – पीछे चांग्या भी रहता है। वो उसको मदद करता है। उन दोनों का आपस मे प्रेम हैं। उसका काम खत्म हो चुका तो उसको वो कचरा – गाडी में बैठकर घुमने को ले आता है। समझे जी? आप इधर खटिया पर लेटे रहते है। आकाश के तारे गिनते है। एक दिन तुम्हारी बेटी पायल को चांग्या उसे लेकर भाग जाएगा, तब आपकी आँखे खुलेगी।
“कुछ नहीं, चांग्या तो सज्जन लडका है। और क्यां होता है उसकी गाडी से, उसके साथ घुमती,फिरती है, तो उसमे क्या बडी बात है। बुरी तो बात नहीं कुछ भी। उसकी उम्र ही अभी ऐसा है,आईने में दस बार देखनेका, और खुद को सजाने का? अच्छी दिखनी का? तेरा क्यों शक पायल पर। तू क्यों जलती हैं अंगार मे बिनाकारन? ”
“अभी और समय ना गुजारो। लडकी के हाथ पिले कर दो। आपकी चिंता, टेन्शन भी दूर हो जाएगा। उसको मत भेजो वहाँ गंदगी मे मृत जानवरों की चमडी निकालने को। हम, सब्जी बिकेंगे। उसमे भी बहोत प्रोफिट मिलता है।
“लेकिन पायल को मंगनी तो आनी चाहिये, और उसकी ढेर सारे पैसे लगेंगे, वो कहाँ से लाऊँ? ”
“आप भी ऐसे ना एक बात मैने सुझायी तो आप मुझे दस बाते सुनाते हो। मरने दो। मुझे क्या पडी है। मैं तो आपकी दुसरी पत्नी। पायल की सौतेली माँ। मुझे ही आप बुरा मनोगे। जिसका करते भला वो कहता है मेरी ही बात सच्ची है। आप और पायल जो करना है वो करो। मै बीच में कुछ नहीं बोलूंगी।
आज भी पायल घर से जल्द निकली। तब नरसू बोला- “वापस आते समय भुईमूग की सेंग, प्याज, तेल, मटन और मसाला भी लाना बेटी। ”
लेकीन आज पायल बदनसीब हुयी। उसके जाने से पहले ही किसी कसाई ने जानवर फाड के चमडा ले गया था। पायल को बडा अफसोस और दुख भी हुआ। उसके मन मे आया – पिताजीने जो चिजे लाने को बोला है। वह कैसे खरीदूंगी? इतने मे कुडा – कर्कट भरी गाडी लेके, चांग्या उधर आ पहुँचा।
“हाय, मेरी पायल, आज तेरा धंधा लॉस मे है क्या? नाराज मत होना। मैनें तेरे लिए कुछ खास लाया है। गिफ्ट, कागज मे पॅक की हुई वह चीज उसने पायल के हाथ सौंप दी।
“अरे क्या है? वडा – पाव? अच्छा हुआ तू ने लाया। मुझे बहोत भूख लगी थी।
दुसरे दिन पायल सुबह जल्दी उठ के गंदगी मे आयी। फिर आज और एक गाय का मुर्दा पडा था। उसने झटसे अपने हथियार – ‘रापी’ निकाली। पुरी चमडी निकालने तक दोपहर हो गयी। दिखने मे सादा लेकिन करने को बहोत कठिन और गंदा काम था। वह कल जैसे उस घने पेड की ठंडी छाया मे पसीना पोछते पोछते बैठी थी। प्यास भी लगी थी और भूक भी। उसने पानी की बोतल लायी थी। पानी पिया। आत्मा शांत हो गया। लेकिन भूख कैसी मिटेगी। घर तो जाना ही पडेगा। आज भी चांग्या आगया वडा पाव लेके तो अच्छा होगा। इतने मे चांगो की रोज की गाडी आयी। पूरी गाडी कचरे से भरी थी। पायल को अच्छा लगा। आनंद हो गया। अब चांग्या गाडी मे से घर तक छोड देगा। धूप तो नहीं लगेगी। यह विचार वो कर रही थी। गाडी से ड्रायव्हर उतर गया। वो चांगो नहीं था। वो रामशरण था। रामशरण बोतल और ग्लास लेके आया था। पायल घबरा गयी। दिल मे थरथराहट होने लगी। लेकिन इस बात का उसे आश्चर्य बिलकूल नहीं लगा। क्यों की यहाँ तो बहोत शराबी, गांजेकस, अफिम पिनेवाले, गर्दुले सब आते थे। ये तो कुछ नहीं कोई आदमी तो रंडिंयोंको भी इधर लाते थे। और खुले आसमान के नीचे, बेशरमी से संबंध बनाते थे। ये तो सभी रोजमर्रा की बातें थी। कोई अचरज नहीं लगा पायल को।
“ए पोरी, इकडे ये। तेरे को प्यास लगी होगी ना? ”
“नहीं, नहीं। मुझे प्यास भी नहीं और भूक भी नहीं लगी है। आज चांगो नहीं आया। क्यो? मैं अपने घर जाती हूँ।
“नही पोरी, मी तर हाय ना। मेरे साथ चलो। तुमको बाजारमधी घेऊन जातो। होटल मे प्याज, पालख की भजीया, पकोडे खाने को देता हूँ। चल मेरे साथ। क्या सोच रही है तू पगली?
“हां, लेकिन पहले मुझे जरा दवा लेनी है।” उसने बोतल ढक्कण निकाल दिया| दो ग्लासो में शराब डाली और बोला ‘धे,पी,तेरी प्यास थंडी हो जाएगी”।
“पायल मेरा कहना ये है की, तू ये धंधा छोड दे। हम दोनो शादी करेंगे। मैं तो ड्रायव्हर की नोकरी म्युनिसीपाल्टी मे कर रहा हूँ। तुझको मैं मुर्गे और मुर्गिया लेके दे दूंगा। तू मुर्गी के अंडे बिकना। ये गंदगीवाला काम तेरी तबियत को तकलिफ देगा आगले जीवन में।”
“मेरे पिताजी बिमार हैं। उनकी दवादारू करने को पैसा लगता हैं। इस वजह से में काम करती हूँ। दो बार खाना तो मिलता है।”
“मेरी माँ को बहू देखनी है। मैं आता हूँ तेरे पप्पा को मिलने को! ”
“हाँ कब आयेगा तू? कल? परसू? नरसू…”
“देखता हूँ। टाइम निकालना पडेगा। जल्दी ही आऊंगा। तेरे बिना अभी जिना मुष्किल है, पायल।”
पायल ये सुनकर बिन कुछ सोचे बिगर चांग्या को चिपक गयी। मिठी मे वो तो कभी नहीं गयी थी। आज पहली बार उसक होश उड गया था।
दिर्घ काल तक पायल चांग्या को बिलख कर वैसी की वैसी रही।
एका का एक पायल के ध्यान मे आया की बजार मे जाना है। कुछ खरीदना है। पप्पा बोले वही चीजे। लेकिन आज पैसे भी नहीं थे। उसने चांग्या के पास उधार माँगे। लेकिन वो शरमिंदा, संकुचित हुई। पैसा माँगने के कारण।
दुसरे दिन वो गंदगी में आयी। सुबह जल्दी उठकर। उसने बडी तेजी से वो गैय्यन का मुर्दा बहुत कम समय में चमडी निकालना शुरू किया। पुरी गैय्यन फाड डालने तक दोपहर हो गयी। वह बहुत थक गयी थी। ये कोई आसान काम नहीं था। पायल एक घनेगर्द पेड के नीचे ठंडी छाया में बैठी थी। इतने में चांगो की रोज आनेवाली बडी गाडी कुडा कचरा लेकर आ गयी। पायल को खुशी हुई। इतनी कडी धूप मे घर जाने को आज गाडी है। चांग्या घर तक पहुँचा देगा।
“नहीं नहीं बिलकूल नहीं। मैं ऐसा नहीं पिती। कभी पिया भी नही। मेरे को खाली सोडा वॉटर दे। बहोत प्यास लगी है।
उसने पायल को पकड के जबरदस्ती करके उसको शराब का ग्लास खाली करवाया।
बहूत रात हो चुकी थी। सुबह से गयी हई पायल अभी तक घर नहीं आयी, इसिलिए नरसू और पारूल चिंताग्रस्त हो चुके थे। नये नये अंदाज लगाते बाते कर रहे थे। टाईम पास करने के लिए। इतने मे चांगो, पायल की घर आया। उसने पहले ही पुछा “पायल कहाँ है। दिखती नहीं।”
“अरे वो तो आज अभी तक आयी ही नयी है। कोई सहेली मिली होगी। उसके साथ घुमती-फिरती होगी। बच्ची है। ना समझ है।
आखिर चांगो ने पायल के लिए लायी हुई एकदम भारी और सुंदर सारी, नरसू के हाथ में सौप दी। उसको भी बहुत परेशानी हो गयी, ये सुनकर।
पारूल चांगो को बोली, “चल बेटा सगाई का समय आयातो पायल कहाँ गूम हो गयी। कोई भटकनेवाले कुत्ते ने उस पर हमला तो नहीं किया? कोई जंगली भेडिया, लोमडी, कुत्ते जैसा, उसने उसे मार के खाया तो नहीं?”
“अभी तू ही चल मेरे साथ। उस गढी मे, गंदगी में जा के खोज लेंगे।”
“हाँ चलो माँ जी। अभी पता चलेगा। इतने रात मे मै भी कभी उधर नहीं गया हूँ। मुझे भी डर लगता है।”
पारूल और चांगो दोनो हाथ मे मशाल लेके बाहर निकले। अंधियारी तो घनी थी। वो दोनों उस अंधेरे मे ठेस खा खा के चलते चलते, पायल की खोज कर रहे थे। दोनो ने बहोत बडा डम्पिंग का भाग चून चून के खोज लिया। एक वटवृक्ष के नीचे कोई आदमी सोया है और वो चिल्ला रहा है। चीख रहा है। ऐसा उनको सुनने को मिला। वह दोनो उधर पहुँचे। पायल दुखसे किसी की मदद के लिए चिल्ला रही थी। उसका चिल्ला चिल्ला के कंठ सुखा था। वो वटवृक्ष के नीचे अकेली अंदाधुंद पडी थी। उधर एक भी गाडी नहीं थी। रामशरण भी नहीं था। पायल उठ गयी। उसने अपने कपडों पर नजर डाली। नीचे का पूरा अंग खूनसे बहबहके लालेलाल, खराब हुआ था। उसको उठने की, चलने की, बिलकुल ताकद नहीं थी।
पारूल और चांग्याने उसको वही गंदगी में बिठाया। आस्ते कदम से पायल आखिर घर पहुँची। थोडी लेटकर आराम करने के बाद चांग्याने, पायल के लिए खरीद कर लाई हुई सुंदर भारी किमतवाली सारी उसको दिखायी। लेकिन निस्तेज आँखों से उसने साडी पर एक नजर फेर ली। थोडीसी हँसी आयगी पायल को।
“चांगो ये सारी तुम वापस ले जाओ।” पायल अचानक बोली।
“क्यों पायल, तुझे ये कलर,डिझाईन, पल्लू पसंद नहीं हैं क्या? चल मेरे साथ कल ये बदल के तेरी पसंद से दुसरी सारी खरीदेंगे।”
“चांगो, तुझे अब कौनसे शब्दों मे समझाऊँ? तेरी ये सारी मुझे नहीं चाहिए। और तेरे साथ शादी का मैने जो वादा किया था। वह भी भूल जा। तू दूसरी कोई लडकी देख लेना।”
“पायल, मेरी लाडली ऐसा मत करना। चांगो को बहुत दुख हो जाएगा। रख ले वो सारी। बडे प्रेम से उसने दी है।” नरसू समझा रहा था।
“बापू, मै तो शरीर से अपवित्र हो गयी। मुझ पर रामशरण ने बलात्कार किया है। मेरा मन भी घायल हुआ है। अंदर से तो अभी खून बह रहा है। बापू मैं तुम्हारी सेवा करूंगी। कुँवारी ही रहुंगी मै। मर्द बहुत फसाते है।”
दूसरे दिन वो सँवर गयी। रापी और अन्य हथियार लेके घर से निकली। अभी एक कुंवारी लडकी ने सम्हलना चाहिए था, वो तो लूट गया था। उसको डर नही था। शादी की इच्छा नही थी। इस घटना की वार्ता या जाहिरात हुई नही। इस देश मे ऐसी कितनी पायल होगी जो सर्वस्व लुटी हुई है। उनका दोष या गलती यह है की उनका यौवन सुंदर दिखना। और क्या?
“पायल, अभी हम पुलिस थाने मे जाएंगे। तुम चलो मेरे साथ।”
“उधर क्या करेंगे? पुलिसवाले चार कागज लिखापढी करेंगे और मुजरीम रामशरण को दोन दिन गिरफ्तार करेंगे। वो पैसा दबाएगा। दो दिन बाद छुट जाएगा।”
“नहीं मैं तेरा कुछ भी नही सुनुंगा। चलो, सब चलो।”
“अरे चांगो लेकिन जो बूंद से गयी वह हौद से नही आती” गरीब का कोई वाली नहीं है।
चांगो मानने को तैयार नहीं था। वो सब पुलिस थाने म पहुँचे। चांगो ने फिर्यादी होकर गुन्हा रजिष्टर करने की बिनती की। पुलिसवालो ने भी नाटक किया। रामशरण को गिरफ्तार कर दिया। दो-चार चाटे लगाए। पायल, चांगो, बापू, पारूल सबको जबानी लेके छोड दिया।
चांग्याने पायल को समझाया। “उसमे तेरा क्या दोष है?”
“नहीं लेकिन मेरे जीवनपर लगा हुआ ये धब्बा कभी भी नही जाएगा।”
थोडे अवसर के बाद चांग्याने फिरसे शादी का प्रस्ताव बापू-रूपल को बयाता। दोनों की शादी हो गयी। उस दिन से पायल ने डम्पिंग पर जान बंद किया। लेकिन हर दिन मन में आता था, “बूंद से गयी वो………”
Last Updated on December 12, 2020 by prof.mane21
- राजेंद्र वैद्य
- बूंद से गयी वो
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