*वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई – बलिदान दिवस*
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रचयिता :
*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
रानी लक्ष्मीबाई को उत्सर्ग दिवस पर नमन करें।
देकर अपनी श्रद्धांजलि सच्ची कथा श्रवण करें।
पिता थे मोरोपंत ताम्बे व माता भागीरथी बाई।
बचपन में नाम मणिकर्णिका कहें मनु भी भाई।
19नवम्बर1828 बनारस में जन्मी लक्ष्मीबाई।
चार वर्ष के उम्र में माँ स्वर्ग गईं भागीरथी बाई।
बचपन में शिक्षा दीक्षा पिता मोरोपंत देते गये।
माँ की मृत्यु बाद पिता मनु को लेके बिठूर गये।
तात्या टोपे से शास्त्रों व अस्त्र शस्त्र शिक्षा पाई।
नाना साहब से भी हर विद्या की है शिक्षा पाई।
बिठूर में रानी लक्ष्मीबाई को छबीली कहते थे।
इस वीरांगना कन्या की लोग चर्चायें करते थे।
13वर्ष के आयु में ही छबीली का विवाह हुआ।
झाँसी शासक गंगाधर राव नोवलकर संग हुआ।
1851में लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया।
3माह बाद ही ये पुत्र अकाल मृत्यु प्राप्त किया।
वंश चिन्ता में बीमार राजा ने बच्चा गोद लिया।
गंगाधर ने दामोदर राव को उत्तराधिकार दिया।
20नवम्बर1853 को गंगाधर राव की मृत्यु हुई।
दत्तक पुत्र को वारिस मानें अंग्रेजों से ये रार हुई।
मार्च1854में अंग्रेजों ने लक्ष्मीबाई को निकाला।
झाँसी किला छोड़ दें रानी ऐसा आदेश निकाला।
लक्ष्मीबाई झाँसी दुर्ग छोड़ी रानीमहल चली गई।
ब्रिटिश साम्राज्य के अत्याचारों से अब त्रस्त भई।
1857मंगल पाण्डे से क्रांति का प्रथम शंखनाद।
गोरे दिये मृत्युदण्ड भड़की जगह जगह ये आग।
बागियों ने गोरों को मेरठ कानपुर झाँसी में मारा।
कमिश्नर सागर रानी को शासन सौंप दिया सारा।
सदाशिव राव झाँसी का करेरा दुर्ग कब्ज़ा किया।
धोखा दे खुद को झाँसी का राजा घोषित किया।
ये दशा देख ओरछा के नत्थेखां ने हमला बोला।
रानी लक्ष्मीबाई ने उसके खोपड़ी का नट खोला।
इन युद्ध गतिविधियों ने ब्रितानी गोरे क्रुद्ध किया।
ह्यूरोज के नेतृत्व में ये 1858में झाँसी घेर लिया।
किसी द्रोही ने दुर्गद्वार खोला अंग्रेज होगये अंदर।
रानीसहयोगी झलकारीबाई मोतीबाई सुंदर मुंदर।
दत्तक पुत्र पीठ पे बाँधे रानी की कालपी प्रस्थान।
ह्यूरोज भी अपनी सेना ले पहुँचा कालपी स्थान।
पेशवा के सम्मिलित सेना व ह्यूरोज से युद्ध हुआ।
यहाँ रानी क्रांतिवीरों संग ग्वालियर का कूच हुआ।
जियाजी राव सिंधिया भी अंत में मुँह मोड़ लिया।
सिंधिया व समर्थक सबने ह्यूरोज का साथ दिया।
17जू58 ह्यूरोज-स्मिथ ग्वालियर पे धावा बोला।
रानी के रामचंद्र देशमुख पुत्र ले सुरक्षा को डोला।
ग्वालियर में गोरों से लक्ष्मीबाई का अंतिम युद्ध है।
रणचंडी अवतार में रानी का पराक्रमी यह युद्ध है।
दुर्ग दीवार न पार हुई रानी का घोड़ा झिझक गया।
यह लाभ उठा गोरों का प्राणघातक प्रहार हो गया।
18जून1858 इस भीषण घाव ने प्राण हर लिया।
गुलमुहम्मद ने वीरांगना मृत शरीर सुरक्षित किया।
बुंदेलखंड की माटी के कण-2 में वह हैं रची बसी।
भारत की वीरांगना बहूबेटी रानी लक्ष्मीबाई बसी।
रानी लक्ष्मीबाई ये भारतीय इतिहास में अंगारा है।
गोरों को तलवार से काटा मौत के घाट उतारा है।
अदम्य साहस व निर्भीकता रानी के रग-2 में रहा।
बुद्धि चातुर्य विलक्षण प्रतिभा ये व्यक्तित्व में रहा।
सुभद्राकुमारी चौहान की कालजयी रचना में देखें।
इतिहास में अमर क्रन्तिकारी लक्ष्मीबाई हैं ये देखें।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने यही सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली ही रानी थी।
रचयिता :
*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22,एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596
Last Updated on June 26, 2021 by dr.vinaysrivastava
- डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव
- वरिष्ठ प्रवक्ता
- पी बी कालेज
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