श्याम ‘राज’ की कविता – ‘गाँव की गलियों में बसा है मेरा मन’
जेबें भरी हैं
नोटों से
मगर
आज भी सिक्के
लेकर
खनकाने का मन
करता हैं।
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
जेबें भरी हैं
नोटों से
मगर
आज भी सिक्के
लेकर
खनकाने का मन
करता हैं।
साथ रहने का वादा किया था हमसे उन्होंने
भुला कर हमें अब उनके साथ रहने वाली हैं…
मोल-भाव यहां तुम मत करना
बस दो रूपये का है एक दीया |