जा रे जा,जिया घबराए ऐ लंबी काली यामिनी
आ भी जा,देर भई रश्मिरथी मृदुल उषा कामिनी
काली घटा घिर घिर आए
गरज गरज बदरा हैं छाए
जाने क्यों खामोश हवाएं
किस दर पे बिजुरी गिर जाए
आंधी तूफां कितने आए
उड़ते छप्पर गिन ना पाए
बछड़े बिन गैया रम्भाए
चकवी किसको हाल सुनाए
नियति उथल पुथल कर जाए
वन्दन भी क्रन्दन बन जाए
देख–देख धरा कुम्हलाए
अम्बर से देखा ना जाए
जा रे जा,जिया घबराए ऐ लंबी काली यामिनी
आ भी जा,देर भई रश्मिरथी मृदुल उषा कामिनी
ज्ञानवती सक्सैना
Last Updated on June 15, 2021 by shubhaagya
- ज्ञानवती सक्सैना ‘ज्ञान’
- सेसेवानिवृत्त व्याख्याता
- का.उ.मा.वि.डाबिच,जयपुर
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- सुभाष सक्सैना 68/171प्रताप नगर,सांगानेर,जयपुर,राजस्थान 302033