न्यू मीडिया में हिन्दी भाषा, साहित्य एवं शोध को समर्पित अव्यावसायिक अकादमिक अभिक्रम

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित, विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित, बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका

A Multidisciplinary Peer Reviewed International E-Journal Published from, Victoria, Australia

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला

सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

वैश्विक हिंदी की चुनौतियां: कुछ भाषाई समाधान

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विभिन्न समय ज़ोन में आप सभी को मेरा यथोचित अभिवादन। मैं आज आप सभी को एक अत्यन्‍त  महत्वपूर्ण मुद्दे पर संबोधित करने में सम्मानित महसूस कर रहा हूं । हिंदी का भूमंडलीकरण  एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर हम भारतीय पिछले कुछ दशकों से काम करते आ रहे हैं क्योंकि हम दुनिया भर में भाषाई मक्का के रूप में जाने जाते हैं।

  1. जॉर्जअब्राहम ग्रियर्सन ने वर्ष 1928 में प्रकाशित अपने भारत के भाषाई सर्वेक्षण (एलएसआई) में रिकॉर्ड किया था कि दक्षिण एशिया में 364 भाषाएं और बोलियां मौजूद हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 19,500 से अधिक भाषाएं या बोलियां मातृ भाषाओं के रूप में बोली जाती हैं  और 121 भाषाएं ऐसी है, जिन्‍हें 10,000 या उससे अधिक लोग बोलते हैं । भाषाएँ हमारे सभ्यतागत अस्तित्व और सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता की एक महत्वपूर्ण और पारिभाषिक विशेषता रही हैं । फिर भी, हमने बड़ी कुशलता का परिचय देते हुए और महाद्वीपीय–आकार के विविधतापूर्ण राष्ट्र में अंग्रेजी का उपयोग संपर्क भाषा के रूप में करते हुए संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को समाहित किया है।
  1. मुझे खुशी है कि सृज़न ऑस्ट्रेलिया अंतर्राष्‍ट्रीय ई-पत्रिका ने भारतीय उच्‍चायोग, त्रिनिदाद और टोबैगो को भारत की आजादी के 75 वर्ष के जश्‍न के तहत आज की इस वेब संगोष्‍ठी को संयुक्त रूप सेआयोजित करने का अवसर प्रदान किया है। जैसा कि दिनांक 12 मार्च 2021 को साबरमती के तट पर “आजादी के अमृत महोत्सव” का उद्घाटन करते हुए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा कि ये समारोह “1.3 बिलियन भारतीयों की आकांक्षाओं, भावनाओं, विचारों, सुझावों और स्‍वप्‍नों को साकार करेंगे”। यह वेब संगोष्‍ठी उस भावना में अपना योगदान देने की दिशा में एक सराहनीय प्रयास है।
  1. एक वैश्विक भाषा हमें सांस्कृतिक, पारंपरि‍क, क्षेत्रीय और विशेष रूप से जातिगत या स्‍वभाव या प्रवृत्तिगत विविधता के बावजूद दुनिया को एक-दूसरे के साथ साझा करने योग्य, सुपरिचित और सुलभ बनाने में सक्षम बनाती है।यह इस मायने में वैश्विक है क्योंकि यह स्‍वरूप के मामले में सरल और सहज, कार्यक्षेत्र के मामले में मुक्‍त और अवसरों के मामले में बंधनरहित है। अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश और जर्मन जैसी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय भाषाएं इस श्रेणी में आती हैं। लोग या तो प्रथम, द्वितीय या तृतीय भाषा के रूप में इन भाषाओं में निपुणता हासिल कर बेहतर रोजगार, गुणवत्तायुक्‍त शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय पहचान प्राप्‍त कर सकते हैं। ये भाषाएं पश्चिमी सभ्यताओं की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं के लंबे इतिहास का प्रतिनिधित्व भी करती हैं, जो वैश्विक बौद्धिक विमर्श का हिस्सा भी हैं। जैसे जैसे साम्राज्यों ने अपने अपने प्रभाव क्षेत्रों का विस्तार किया, वैसे ही उनकी भाषाओं का भी विस्‍तार हुआ।
  1. इसके विपरीत, भारत एक सभ्यता और समाज दोनों के रूप में सदियों से बाहरी दुनिया के लिए खुला रहा है। मसालों के व्यापार के माध्यम के अलावा, यहाँ बौद्धिक परंपराओं, संस्कृति, दर्शन, विज्ञान और नवाचार का निर्बाध प्रवाह बना रहा है।दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते वैश्विक मंच पर भारत का आचरण सदैव पारदर्शी रहा है। 21वीं सदी में भारत संपूर्ण मानवता के 1/5 भाग का प्रतिनिधित्व करता है, जहां लगभग 50% आवादी 25 वर्ष से कम उम्र की है। भारतीय युवावर्ग वैश्विक है और आकांक्षाओं व उत्‍साह से भरा हुआ है।हर वर्ष  लगभग आधा मिलियन भारतीय छात्र अंग्रेजी बोलने वाले देशों के शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेते हैं। वेविश्व स्तर पर उभरते हुए भारत और इसकी विविधता के अग्रदूत हैं और भाषा इस प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग हैं। भारतीय फिल्म उद्योगों ने भी दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भारतीय प्रवासी समुदायों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। कई लोगों द्वारा या तो प्रथम, द्वितीय या एक लोकप्रिय भाषा के रूप में बोली और समझी जाने वाली हिंदी आने वाले दशकों में एक महत्वपूर्ण वैश्विक भाषा भाषा के रूप में उभर कर सामने आने की स्थिति है। फिर भी, ऐसा करने के लिए इसे कुछ दीर्घकालिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ये चुनौतियां इस प्रकार हैं:
  • हिंदीत्‍तर वक्ताओं के लिए हिंदी को प्रासंगिक बनाना – किसी हिंदीत्‍तर वक्ता को हिंदी क्यों सीखनी चाहिए? उसे शिक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान, वाणिज्य, व्यापार, राजनीति, कूटनीति, पर्यटन, मीडिया और वेब  के क्षेत्रों में इसका उपयोग क्‍यों करना चाहिए? एक प्रसिद्ध कहावत है कि जिसके पास बोलने के लिए कोई भाषा है वह अपने आटे (उत्‍पाद) को दूसरे, जो वहां कि भाषा नहीं जानता है, की तुलना में अधिक तेजी से बेच सकता है। यह तर्क किसी भी भाषा के लिए भी लागू होता है। किसी भी भाषा को वैश्विक भाषा बनने के लिए  उसे अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करना होगा, तभी वह दुनिया भर के उपभोक्‍ताओं के बीच लोकप्रिय हो सकती है।
  • हिंदी बोलने वाले प्रवासी भारतीयों कोजोड़ना – नेपाल, फिजी , मॉरीशस , गुयाना, संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, युगांडा, बांग्लादेश, बेलीज, भूटान, बोत्सवाना, कनाडा, जिबूती, इक्वेटोरियल गिनी, जर्मनी, केन्या, न्यूजीलैंड,  फिलीपींस, सिंगापुर, सिंट मार्टेन, संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम, यमन, जाम्बिया  जैसे देशों में हिंदी का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। हालांकि, त्रिनिदाद और टोबैगो जैसे  देशों में भारतीय मूल के लोगों ने अपनी भाषा खो दी है, चाहे वह  भोजपुरी  हो या हिंदी। भारत सरकार युवाओं के बीच हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए सभी प्रयास कर रही है । हालांकि, यह तब तक सुलभ नहीं होगी जब तक कि वे लोग भारत की अर्थव्यवस्था, संस्कृति, उच्च शिक्षा, वैज्ञानिक सहयोग  और मनोरंजन  उद्योग के साथ अभिन्न रूप से नहीं जुड़ते हैं।
  1. वैश्विकसमुदाय के लिए हिंदी को तुलनात्‍मक रूप से अधिक सुलभ  बनाने के लिए कुछ भाषाई समाधान इस प्रकार किए जा सकते हैं:
  1. सरलीकरण- कोई भी भाषा संरचनात्मक रूप से जितनी जटिल होती है, वह नए शिक्षार्थियों के लिए सीखने की दृष्टि से उतनी ही अधिक दुरूह हो जाती है। भाषा लचीलेपन से सुलभ होती है । यह एक सकारात्मक प्रवृत्ति है कि पिछले कुछ वर्षों में  हिंदी का सरलीकरण हुआ है और इसे डिजिटल उपयोग की दृष्टि से आसान बनाया गया है।
  2. विदेशी शब्दों का समावेश– इन वर्षों में, हिंदी ने खुद को समृद्ध बनाने के लिए अन्य भाषाओं से नए शब्द भी अपने शब्‍दकोश में जोड़े हैं। इसने हिंदी और अन्य सहोदरा भारतीय भाषाओं के बीच की सीमाओं को भी लगभग अप्रासंगिक बना दिया है। हिंदी को कई अन्य विदेशी भाषाओं के साथ भी इस परम्‍परा को जारी रखना होगा। ऐसे शब्‍द भंडार, विशेष रूप से वैज्ञानिक अनुसंधान और विश्लेषण  में जिनका उपयोग किया जाता है,  को वाक्‍य संरचना में  शामिल करने की आवश्यकता है।
  • डिजिटलीकरण– भारत डिजिटाईजेशन के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा प्रायोगि‍क स्‍थल है,  यहां इंटरनेट का उपयोग धीरे-धीरे हर गली-कूचे और नुक्कड़ तक पहुँच रहा है। लगभग सभी सामाजिक मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे कि फेसबुक, ट्विटर, इंस्‍टाग्राम, यूट्यूब, कू, टेलीग्राम, वाट्सएप इत्‍यादि में भी हिंदी सहित भारतीय भाषाओं का उपयोग किया जाता है। कई सांस्कृतिक महत्‍व की सामग्री का भी डिजिटलीकरण किया जा रहा है, जिससे पारंपरिक और समकालीन दर्शकों और श्रोताओं तक डिजिटल पहुंच सुनिश्चित करने के लिए एक नया आयाम  प्राप्‍त हो रहा है। इन उपकरणों की कुशलता और इनके इस्‍तेमाल की सहजता पर और अधि‍क काम किए जाने की आवश्‍यकता है। देवनागरी लिपि  के डिजिटल उपयोग  और पहुंच ने सामाजिक मीडिया, की-बोर्ड टाइपिंग और पुस्तकों के प्रकाशन को भी अधिक सरल बना दिया है। किंडल डिजिटल प्रकाशन (केडीपी) की तरह हिन्दी में डिजिटल प्रकाशन की सुविधा भारत में भी विकसित की जा सकती है, जिससे न केवल डिजिटल रूप से बल्कि वास्तविक प्रिंट के रूप में प्रकाशन करने में भी आसानी होगी। विकिपीडिया में दिखाया गया है कि एक आधुनिक डिजिटल संदर्भ पुस्तकालय कैसे काम करता है। विश्व स्तर पर लोकप्रिय होने के लिए हिंदी में ऐसे डिजिटल संसाधन किसी भी व्‍यक्ति के लिए 24X7 आधार पर उपलब्‍ध होने चाहिए, चाहे उनका उपयोग किसी भी संदर्भ, अधिगम और अनुसंधान के लिए क्‍यों न किया जाना हो।
  1. अंतरभाषिक संचार (संप्रेषण):हिंदी को अपनी उपयोगिता बढ़ाने के लिए डिजिटल स्पेस में अन्य भारतीय भाषाओं के साथ स्वतंत्र रूप से संवाद स्‍थापित करना चाहिए । कई लेखक, कथाकार और सामग्री निर्माता आज की दुनिया में बड़े पाठक वर्ग तक पहुंच बनाने के लिए कई भारतीय भाषाओं का उपयोग करना चाहते हैं। हिंदी को अन्य भाषाओं को भी समुचित स्थान दिलाने की दिशा में नेतृत्वपरक भूमिका अदा करनी चाहिए और भारत में तथा भारत के बाहर भारतीय भाषाभाषी समुदायों तक व्यापक  पहुंच बनाने के लिए अपनी ताकत का उपयोग करना चाहिए।
  2. ई-वाणिज्‍य-भारत के टियर-II और टियर-III शहरों में ई-वाणिज्‍य और विज्ञापन के क्षेत्र में अपार संभावनाएं निहित हैं और वैश्विक कनेक्टिविटी की भी संभावना है। एफबी बिजनेस, डब्‍ल्‍यूए बिजनेस जैसे प्लेटफार्मों  के लिए भी हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की जबरदस्त आवश्यकता है।
  3. डिजिटल मीडिया- पिछले कुछ वर्षों में यूट्यूब, वेबसमाचार चैनलों जैसे डिजिटल मीडिया  की  सक्रियता जनता के बीच काफी बढ़ गई है। टेलीविजन की जगह स्मार्टफोन ने ले ली है। इससे हिंदी को वैश्विक दर्शकों तक पहुंच बनाने के लिए जबरदस्त अवसर मिल रहे हैं।
  • डिजिटल शिक्षण- 21वीं सदी आभासी कक्षाओं, चैटबॉक्‍स और दूरस्‍थ अधिगम की सदी है। कोविड-19 ने हमें सिखाया है कि कि‍सी आभासी दुनिया में काम कैसे करना है। लगभग सभी शिक्षण संस्थान अब अनुवाद अध्ययन, वाकपटुता कौशल और अन्य समझ विकसित करने वाले कौशल जैसे आवश्यकता-आधारित पाठ्यक्रम बनाने की कोशिश कर रहे हैं। हिंदी इन पहलों का हिस्सा हो सकती है।  हिंदीत्‍तर भाषियों के लिए नए सॉफ्टवेयर पैकेज  डिज़ाइन और विकसित किए जा सकते हैं। नए प्रयोक्‍तानुकूल आईसीटी पैकेज और अनुप्रयोग विकासित और तैयार किए जा सकते हैं ताकि बड़े पैमाने पर हिंदी का अध्‍ययन अध्‍यापन किया जा सके।
  • वैश्विकयुवा वर्ग को जोड़ना: यहाँ हिन्दी के लिए वैश्विक ई-अधिगम प्लेटफार्मों के विकास की भी गुंजाइश है। भारत के बाहर कई प्रवासी बच्चे अंशकालिक स्कूली पाठ्यक्रम गतिविधियों के रूप में या स्कूल के बाद हिन्दी सीखना चाहते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हमें छात्रों और स्कूलों के लिए जल्दी से सुलभ होने वाले डुओलिगो जैसे वैश्विक प्लेटफार्म विकसित  करना चाहिए।  
  1. भारत ने वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराते हुए खुद को सुस्थापित कर लिया है।पूरे देश में उच्‍चगति कनेक्टिविटी का विस्‍तार किया जा रहा है। कोविड-19 के बाद भारत के एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में उभर कर सामने आने की पूरी उम्मीद है। यह नई संभावित स्थिति निस्संदेह एक लोकप्रिय अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाएगी। यह भी संभावना है कि हिंदी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं को भी फिर से  नए सिरे से अपना प्रयोग बढ़ाने का अवसर प्राप्‍त  हो। वैश्विक अवसरों का लाभ उठाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्‍तर की मानक सामग्री के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए डिजिटल स्‍पेस में “सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व” बनाए रखने के लिए अन्य भारतीय और विदेशी भाषाओं के साथ सहयोग करना हमारी रणनीति होनी चाहिए।

हिंदी अनुवाद : शिवकुमार निगम, द्वितीय सचिव (हिंदी, शिक्षा एवं संस्‍कृति), भारतीय उच्‍चायोग, पोर्ट ऑफ स्‍पेन, त्रिनिदाद और टोबैगो

 

Last Updated on April 18, 2021 by srijanaustralia

  • महामहिम श्री अरुण कुमार साहू
  • त्रिनिदाद और टोबैगो में भारत के उच्चायुक्त 
  • भारतीय उच्चायोग,  त्रिनिदाद और टोबैगो
  • [email protected]
  • भारतीय उच्चायोग,  त्रिनिदाद और टोबैगो
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1 thought on “वैश्विक हिंदी की चुनौतियां: कुछ भाषाई समाधान”

  1. हिंदी के विकास के लिए बहुत ही ज्ञानवर्धक सराहनीय कार्य

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