मैं अर्पण हूं,समर्पण हूं,
श्रद्धा हूं,विश्वास हूं।
जीवन का आधार,
प्रीत का पारावार,
प्रेम की पराकाष्ठा,
वात्सल्य की बहार हूं।
तुम पूछते हो मैं कौन हूं?
मैं ही मंदिर, देवप्रतिमा।
मैं ही अरुण, अरुणिमा।
मैं ही रक्त, रक्तिमा।
मैं ही गर्व ,गरिमा।
मैं ही सरस्वती, ज्ञानवती
मैं ही बलवती, भगवती
मैं ही गौरी, मैं ही काली
मैं ही उपवन,मैं ही माली।
मैं ही उदय, मैं ही अस्त,
मैं ही अवनि ,मैं ही अम्बर।
मैं अन्नपूर्णा, सर्वजन अभिलाषा
करुणा, धैर्य, शौर्य की परिभाषा।
मैं ही मान, मैं ही अभिमान
मैं ही उपमेय, मैं ही उपमान।
मैं ही संक्षेप, मैं ही विस्तार
मैं ही जीवन, जीवन का सार।
मैं भूत, भविष्य, वर्तमान हूं,
हर तीज- त्योहार की आन हूं
सुनी कलाई का अभिमान हूं।
और..तुम पूछते हो मैं कौन हूं”?
तो सुनो, अब ध्यान लगाकर..
मैं पापा की परी, मां की गुड़िया,
दादा की लाडो,दादी की मुनिया।
काका की गुड्डो, काकी की लाली,
भैया की छुटकी, दीदी की आली।
मैं ही रौनक, मैं ही सबकी शान हूं।
मैं ही दानी, मैं ही सबसे बड़ा दान हूं।
मैं ही सबसे बड़ा दान हूं………….।
अब तो समझ गए कि मैं कौन हूं….?
लेखक:
सुशील कुमार ‘नवीन’
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है।
96717-26237
Last Updated on March 8, 2021 by hisarsushil
- सुशील कुमार 'नवीन'
- Deputy Editor
- सृजन ऑस्ट्रेलिया
- [email protected]
- hisar