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गणतंत्र दिवस पर स्वर्णिम अध्याय लिखने की तैयारी में शांति-संयम का गठजोड़…

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सुशील कुमार ‘नवीन’

‘एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति!’ अर्थात् एक मैं ही हूं दूसरा सब मिथ्या है। न मेरे जैसा कभी कोई आया न आ सकेगा। आप भी सोच रहे होंगे कि इतनी बड़ी बात आज किस सन्दर्भ में लिखी जा रही है। नहीं समझे। अरे, भलेमानुषों। 26 जनवरी को स्वर्णिम इतिहास रचने जा रहा है। जो पहले कभी न हुआ वो होने जा रहा है। विश्व का सबसे बड़े लोकतंत्र इस बार अपना 72वां गणतंत्र दिवस मनाएग। इस दौरान देश के राजपथ पर एक तरफ जहां तीनों सशस्त्र सेनाओं के जवान अपनी ताकत प्रदर्शित करेंगे तो दूसरी तरह उनके पितृव्य कृषिपुत्र दिल्ली की सड़कों पर अपनी एकजुटता का दर्शन कराएंगे। देश के इतिहास में यह किसी स्वर्णिम अध्याय से कम नहीं होगा। 

इस बार का गणतंत्र दिवस वैसे भी अनूठा ही है। कोविड-19 के बुरे दौर से देश निकल चुका है। वैक्सीन लगने की शुरुआत हो चुकी है। शनिवार तक इस दिवस के और भी ऐतिहासिक बनने के आसार बन रहे थे। कृषि कानूनों को रद्द कराने के लिए दो माह से आंदोलित किसान इस दिन दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकालने पर अड़े थे। दिल्ली पुलिस प्रशासन इसकी मंजूरी न देने पर अड़ा था। सुप्रीम कोर्ट तक इस मामले में रोक से इनकार कर चुका है। ऐसे में अब तक शांतिपूर्वक चल रहे किसान आंदोलन में 26 जनवरी को दिल्ली पुलिस और किसानों के बीच टकराव के हालात बन रहे थे। शनिवार को वार्ता के बाद किसानों को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकालने की मंजूरी मिल ही गई। नियमावली में बंधी इस मंजूरी से दोनों पक्षों की इज्जत बनी रह गई। दिल्ली प्रशासन टकराव को टालने में कामयाब हो गया और किसान अपने शक्ति प्रदर्शन की मांग मनवाने में।

सीधे तौर पर देखा जाए तो यह किसानों की नैतिक जीत ही है। प्रबंधनीय गुणों से लबरेज अपनी तरह का यह पहला आंदोलन है। जो अभी तक किसी भी रूप में कमजोर नहीं पड़ा है। न एकजुटता में और न ही व्यवस्था प्रबंधन में। एक चीज की जरूरत महसूस होने पर दस हाजिर हो रही है। राजनीति की सबसे पुरानी नीति है ‘साम, दाम, दंड, भेद’। ‘साम’ अर्थात् ‘समता’ से या ‘सम्मान देकर’, ‘समझाकर’, ‘दाम’ अर्थात् ‘मूल्य देकर’ या आज की भाषा में ‘खरीदकर’, ‘दंड’ अर्थात् ‘सजा देकर’ और ‘भेद’ से तात्पर्य ‘तोड़ना’ या ‘फूट डालना’ है। इसे यूं समझें। किसी से अपनी बातें मनवाने के चार तरीके हो सकते हैं । पहले शांतिपूर्वक समझाकर, सम्मान देकर अपनी बातें मनवाने का प्रयास करो। मान जाए अच्छा है, आपकी भी लाज रहे, मानने वाले की भी। न माने तो मानने का मूल्य दो। फिर भी बात न बने, तो उसे इसके लिए दंडित करो अर्थात डराओ धमकाओ। फिर भी बात न बने तो  ‘राजनीति का ब्रह्मास्त्र’ ‘भेद’ का प्रयोग करो। चाणक्य की यह नीति राजनीति शास्त्र की मूल नीतियों में है। इसका प्रयोग सार्वभौमिक है। विश्व का ऐसा कोई जन आंदोलन नहीं होगा जहां इस नीति के तत्वों का प्रयोग न किया गया हो। पर किसान आंदोलन में यह नीति कारगर नहीं रही है। यही वजह है कि किसानों की जिद पर सरकार और तंत्र को एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रखना पड़ रहा है। वहीं आंदोलनकारी भी अपनी तरफ से कोई कमी का मौका नहीं दे रहे। शांतिपूर्ण और संयमित तरीके से गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली निकालना इनके आंदोलन का प्रमुख हिस्सा है। इसके माध्यम से वो अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कराना चाहते हैं। सब कुछ सामान्य रहा तो अपनी तरह का यह अनूठा प्रदर्शन इतिहास के पन्नों पर दर्ज होगा।   

 

लेखक: 

सुशील कुमार ‘नवीन’

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है।

96717-26237

Last Updated on January 25, 2021 by hisarsushil

  • सुशील कुमार 'नवीन'
  • Deputy Editor
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