एक कहानी : बाबू साहब…!!!
तपस्या, संकल्प सिद्ध करने का एक मात्र सर्वमान्य रास्ता है…मेरे विचार से। लेकिन एक वक़्त होता है…जब विमुखता आ जाती है…कर्तव्य मार्ग से, तप भाव से। कोई तो कारण होता है जब कोई अपने उद्देश्य मार्ग से विचलित हो जाए…..और अक्सर ये तब होता है जब कोई किसी के प्रेम पाश के वशीभूत हो जाता है।
ऋषभ त्रिवेदी, उम्र २१ वर्ष, अभी-अभी स्नातक पास कर के पहुंचा ही था…नवाबों के शहर लखनऊ में…एक स्वप्न लिए हुए। कर्तव्य पालन के लिए स्वयं से एक प्रण था उसका। कोई ना कोई एक सरकारी नौकरी का वरण करना था उसको। पहुँचते ही सबसे पहले महेंद्रा कोचिंग ज्वाइन की। सुबह ०६:३० से शाम ८ बजे तक… मैथ, रीजनिंग, इंग्लिश… मैथ , रीजनिंग, इंग्लिश…बस कुछ और नहीं था उसके जीवन में। बैंकिंग सैक्टर मे एक क्लर्क बनने की अभिलाषा थी उसकी।
मवैयां में था एक विद्यालय…नाम था गांधी विद्यालय। स्पीड टेस्ट दे रहा था वो…जब पहली बार देखा उसने…बाबू साहब को। बिल्कुल सरल सी मुस्कान लिए हुए… लटों को बार बार चेहरे से हटाते हुये। जो नज़र पड़ी उनके चेहरे पर…तो फिर हटी ही नहीं। ” लव एट फर्स्ट साइट ” सुना था फिल्मों में उसने…लेकिन महसूस तब किया । टेस्ट मे तो फ़ेल हो गया ऋषभ…लेकिन पास हुआ था वो…खुद के खयालों में।
कर्तव्य मार्ग से विमुख ना होने का उसका जो प्रण था…टूट गया। फिर क्या…शुरू हुआ…फिल्मी सड़क छाप लफाड़ियों वाला काम। टेस्ट में बैठता था इस तरह कि…एक नज़र दें पाएं। इकतरफा इश्क़ में डूबे रहना और फिर जैसे ही बाबू साहब उठते…वो भी उठ लेता था और हो लेता था पीछे उनके…! समय वही था…बस जो ०६:३० से ०८ का टाइम किताबों में जाता था….वो उन्हें देखने और सोचते रहने में बीतने लगा। कैसे बात हो जाए…कैसे दोस्ती हो जाए…बस रोज़ नए नए ऐसे ही विचार आते थे। किताबों से इश्क छोड़…ऋषभ एक अनाम के इकतरफा इश्क में पड़ बैठा था।
कुछ तीन चार लड़कियों और तीन चार लड़कों का ग्रुप था बाबू साहब का। देखने में तो सब एक से एक पढ़ाकू ही लगते थे। बड़ी हिम्मत कर के एक दिन उस ग्रुप में अपनी जगह बनाने के उद्देश्य से ऋषभ जा बैठा बाबू साहब के करीब लेकिन उनकी नज़रों से बचते हुये। प्रतिक्रिया ऐसी आयी…कि फिर दुबारा हिम्मत ना पड़ी उसकी । कोई शाहिद कपूर तो था नहीं वो। एक सीधा साधा सा दुबला पतला इंसान था…ऋषभ।
दिन बीतते जा रहे थे। लखनऊ आने के प्रमुख कारण को तो वो पूरी तरह भूल चुका था। बस निगाहों में हर पल वहीं चेहरा… रातो दिन। रोज़ उनके स्वभाव का अंदाज़ा अपने तरीकों से लगाना, उनकी हर एक मुस्कुराहट के मायनों को समझने की कोशिश करना…बस यही चल रहा था।
एक लड़का और था…जिससे वो थोड़ा ज्यादा बात करती थी। किसी के करीब जाना हो तो…उसके करीबी के करीब हो जाओ…उसके अंतर्मन ने उसे आदेश दिया….यही रास्ता सही है।
” यार…कब से कोचिंग में हो भाई??” ऋषभ ने एक मुक्त प्रश्न छेड़ा।
” ज्यादा दिन नहीं हुआ…बस।” थोड़े अनमने मन से बोला था उसने।
लेकिन ऋषभ कहां छोड़ने वाला था। आज तो दोस्ती कर के रहेगा वो…जबर्दस्ती ही सही। सवाल पे सवाल…दागता रहा । पर एक जवाब ऐसा था…जो शायद यादगार बन गया। अपने ग्रुप की ओर से उसने बोला , “भाई…क्या है कि हम लोग २०० प्रश्नों में से करीब पौने दो सौ तक अटेम्प्ट करते हैं। बस उतने में टॉप १० में रैंक आती है। हो गया अपना काम। कई इंटरव्यू पेंडिंग हैं मेरे।”
दिमाग ठनक गया उसका। एक अलग राह मिली उसकी सोच को। यद्यपि राह के अंतिम छोर पर… बाबू साहब ही खड़े थे…अपनी अद्वितीय मुस्कान लिए हुए…। फिर भी इस जवाब ने उसे मजबूर कर दिया था…एक नयी दिशा मे सोचने के लिए।
सोचने लगा कि सबसे मुस्कुरा मुस्कुरा के बात करते हैं बाबू साहब …बस हम से नहीं। एक दो बार कोशिश भी की थी उसने…लेकिन नकार दिया गया था वो । क्या कारण हो सकता है?? स्वयं से स्वयं के प्रश्न और फिर जवाब भी स्वयं से ही। तभी अचानक उसके मन के अंतर्द्वंद ने जवाब दिया…” ऋषभ…तू पढ़ने में कमजोर है। कभी टॉप ५०० में आया है?? देख वो सब टॉप १० में आते हैं। तू पढ़ पहले…इस लायक बन…! कर सकता है ऐसा…??? बोल…??? “
इश्क़ छोड़ा नहीं था उसने…बस राह बदल दी…उसी पल…उसी क्षण..! कोचिंग में सबसे पहले प्रवेश…और सबसे आखिरी में बाहर। फिर से वही…. मैथ, रीजनिंग, इंग्लिश…. मैथ, रीजनिंग, इंग्लिश…बस। परिणाम ये हुआ… कि तीन महीने में ही एक बैंक में पीओ की लिखित परीक्षा पास हो गया वो।
प्रश्न – उत्तर का दौर फिर शुरू हुआ ऋषभ के अन्तर्मन में।
किसको श्रेय दिया जाए…??? ऋषभ खुद की मेहनत को दे…या फिर उसे, जो वास्तव में इसका हकदार था….??? जवाब स्पष्ट था।
स्टेज मिला महेंद्रा कोचिंग में…और सामने था वही ग्रुप…और फिर से वही मुस्कान…उसके ठीक सामने। ऋषभ के आंखों की चमक…जरूर देखी होगी बाबू साहब ने भी। पूर्ण आत्मविश्वास से ऋषभ अपना भाषण देता रहा। इसी कविता के साथ अपनी वाणी को विराम दिया था उसने,
” असफलता एक चुनौती है….स्वीकार करो…!
क्या कमी रह गई देखो और…सुधार करो…!
जब तक ना सफल हो…नींद चैन को त्यागो तुम…!
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम…!
कुछ किए बिना ही जै जै कार नहीं होती…
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती…!
कुछ किए बिना ही जै जै कार नहीं होती…
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती…!!”
तालियों की गड़गड़ाहट थी…उस हाल में। गज़ब का अनुभव था वो…और उससे भी गजब तब हुआ…जब बाबू साहब आ खड़े हूए ऋषभ के बिलकुल सामने।
” Congratulations Rishabh…!”
जवाब नहीं सूझ रहा था…बस ऐसे ही मुंह से निकल गया….
” Thanks…”!
नहीं…अभी बात खत्म नहीं हुई…यहां…!
“अपना नंबर दो…?” बाबू साहब बोले। शायद आशा नहीं थी ऋषभ को।
“930791…….….” तपाक से बिना किसी देरी के….दो सेकंड में जवाब दिया था उसने । नौकरी पाने की उतनी खुशी नहीं थी उसको…जितना कि…वो दो या तीन मिनट की मुलाक़ात।
स्वप्न पूरा हुआ…और अब दौर था बातों का..मुलाकातों का…! उस ग्रुप का सदस्य बन गया था ऋषभ, जिससे कभी नकार दिया गया था उसको…और जगह भी मिली उसको…तो बाबू साहब के ठीक बगल में।
लेकिन अब लफाड़ी नहीं था ऋषभ । एक स्थान था उसका…जो दिलाया था उसे बाबू साहब ने। एक सम्मान था उसके मन में बाबू साहब के लिए।
यहाँ बाबू साहब के व्यक्तित्व पर भी प्रकाश डालना आवश्यक है। एक प्रसन्नचित, उन्मुक्त विचारों वाली शख्सियत थी उनकी। स्वभाव अत्यंत सरल। प्रेम से तो कुछ भी करा लो…लेकिन उनकी नाराजगी को झेल पाना उतना ही कठिन। “अरे भैया…तुम्हारी तो चाँदी है….!!!” इतना कह कर जब वो ज़ोर से हसते थे…तो दुनिया का कोई भी व्यक्ति अनायास ही आसक्त हो जाए। हृदय से इतने कोमल कि किसी का दुख उनसे देखा नहीं जाता था। जानवरों से भी बहुत लगाव था उनको। कपड़ों का भी गज़ब का शौक। ड्रेस कोड तो पूछो मत…बेहतरीन।
ऋषभ की इस सफलता पर पार्टी का दिन था…! मस्ती चल रही थी। किसी ने अचानक ही पूछ लिया…”आप अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहते हैं…!!” ऋषभ खामोश हो गया…! कैसे नाम लेता उनका सबके सामने। कैसे कह देता कि ये सारी मेहनत जो उसने की…बाबू साहब ही हैं उसके पीछे। अभी तक तो शायद वो ऋषभ को सिर्फ अपना दोस्त ही मानते थे। इश्क़ मे जब तक इज़हार ना हो जाए…इश्क़ होता तो इकतरफा ही है। टाल गया उस सवाल को एक चतुराई से…लेकिन जवाब दिया था उसने…तब जब लखनऊ छोड़ना था उसको अंततः।
“एक बात बोलूं???” मैसेज किया ऋषभ ने।
“हां…बोलो ना..!”
“अपनी लाइफ का तीस मिनट दे सकती हो हमको??? बिना कोई सवाल किए??? “
“ok”… सीधा सा जवाब था।
मुलाकात हुई। बहुत सी बातें हुई। ऋषभ ही बोलता रहा। बाबू साहब सुनते रहे। अपनी सफलता का श्रेय अर्पित कर दिया उसने। दिल की सारी बातें केह डाली। जीवन का एक यादगार पल था वो। इकतरफा मोहब्बत का इकतरफा इजहार हुआ। और फिर ऋषभ निकल पड़ा अपने घर की ओर। एक निःस्वार्थ और निष्काम प्रेम के भाव थे उसके मन में। हृदय मे अप्रतिम सम्मान भाव था…बाबू साहब के लिए।
आटो में बैठ के चला ही था कि मोबाइल पर एसएमएस आया…
” I love u too”…!
मन में उमंगों की तरंगे उफान पर थी..! खुशी इतनी कि ऋषभ सातवें आसमान पर खड़ा हुआ…मानो चिल्ला रहा था। खुद में मुस्कुराने लगा वो…जोर जोर से हंसने लगा…पागलों की तरह…! ऐसा ही होता है…जब इष्ट की प्राप्ति हो जाती है।
उसका इकतरफा इश्क़ आज सफल हुआ था। उसकी सफलताओं में बाबू साहब के निःस्वार्थ प्रेम और विश्वास का भी एक अभूतपूर्व योगदान था। बाबू साहब का दिया उपनाम “मिट्टी के माधव” कम से कम इस जन्म में तो ऋषभ के मानस पटल से मिटना नामुमकिन सा है।
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Last Updated on January 22, 2021 by rtiwari02
- ऋषि देव तिवारी
- सहायक प्रबंधक
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