त्योहार परम्परा…
“अरे! यहाँ तो आज सुबह से बच्चे लोहड़ी मांगने ही नहीं आए| मैं तो बच्चों को पंजाब में लोहड़ी कैसे मनाते हैं, दिखाने लाई थी” सिमरन बोली| “इंग्लैंड में अपने बचपन के कईं किस्से इन बच्चों को सुनाए थे तो इन्होंने पंजाब में लोहड़ी मनाने की जिद्द की| मैं तो बच्चों के सामने झूठी पड़ जाऊँगी”, उसने अपनी भाभी से कहा|
भाभी ने कहा अब तो शहरों के ही नहीं, गाँव में भी बच्चे लोहड़ी मांगने को भीख मांगने जैसा समझ शर्म महसूस करते हैं| परंतु चिंता मत करो| हमारी सोसाइटी में लोहड़ी मनाने का कार्यक्रम रखा गया है, बच्चों को वही दिखा देना|
तभी दरवाजे पर सोसाइटी के गार्ड ने घंटी बजाई| उसने दरवाजा खोला गार्ड ने एक छपा हुआ निमंत्रण उसके हाथ में पकड़ा दिया साथ ही दो हज़ार रुपये लोहड़ी मनाने के लिए ले गया| बच्चों ने पूछा तो उस ने उन्हें बताया कि सोसाइटी में नये तरीके से लोहड़ी मनाते हैं इसलिए अभी तो यही देखो|
अगले दिन अपनी भाभी से कहा कि कल शाम को भांगड़ा , गाना -बजाना सब हुआ| पंजाबी भोजन भी स्वादिष्ट था, परंतु कहीं कुछ कमी थी तो पुराने विरसे की कमी थी| यहाँ तो न लोहड़ी में सुंदर- मुंदरिये गाती टोलियाँ दिखाई दी, न ही गली -गली बजते ढ़ोल और जलती होलिका दिखाई दी| लोग एक दूसरे को घर- घर बधाइयाँ देने जाते या लोहड़ी बांटते भी नहीं नज़र आए|
भाभी बोली सही कहती हो, यहाँ कुछ क्लब, सोसाइटी वाले अपने -अपने क्षेत्रों में मिल कर त्योहार मना लेते हैं, घरों में कुछ लोग ज़रूर अपनी परम्परा निभाते हैं, कुछ लोग तो मूंगफली -रेवड़ियाँ खरीद कर खाकर फेसबुक, इंस्टाग्राम और वाट्सऐप पर डाल कर लोहड़ी की शुभकामनाओं का आदान- प्रदान करके त्योहार मना लिया करते हैं|
सिमरन सोच में पड़ गई….”प्राचीन परम्पराओं को आधुनिकता का आवरण धीरे -धीरे एक नया रूप दे रहा है डर है कि हमारे बचपन की यादें भी इसमें कहीं खो न जाएं|”
… प्रेम लता कोहली
Last Updated on January 13, 2021 by premlatakohli
- प्रेम लता कोहली
- शिक्षिका
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