भाषा
जब से मानव तब से मैं
वन आदिवास में थी मैं
गुफाओं के चित्र की रेखा
हर देश विविध रुप मेरा
मन बुद्धि सिंचित करती
विचारों को मैं जन्म देती
मुल में शुद्ध प्रकृति में थी
स्वार्थि हाथ अशुद्ध बनी
मानवी प्रगति विज्ञान गति
सत्य वाणी की अनुगामी
झूठ के पिछे पड़े मतलबी
संबंध मेरा कथनी करनी
मुझ से सारे धर्म निर्मित
मेरे कारण विश्व शान्ति
क्यूं अस्त्र शस्त्र रणभूमि
मैं मानवी सभ्यता प्रगति
विनाश की क्यूं बनें भूमि
मैं व्यक्त अव्यक्त ध्वनि
मानव विचार के आंतरी
सभी शास्त्र की निर्मिती
मेरे राजा और रंक साथी
मेरा स्वर हैं समतावादी
सुमधूर गीत और नीति
मनुष्य से गाली अनीति
मैं कलम अखबार में बॅंधी
आज संप्रेषण में पाई गति
मेरे बगैर यह जीवन अधूरा
स्थापित आदर्शवत सभ्यता
मैं प्रगति की आधारभूमि
क्यूं करें अनीति अधोगति
मैं प्रश्न और उत्तर में भी
आधुनिक साधन निर्मिति
यंत्र तंत्र को आदेश करती
शून्य से अनगिनत गिनती
मानव की सोच बदल गई
विवेकवान कभी अविवेकी
मेरे बगैर मनुष्य आधार हीन
मनुष्य बगैर मैं भी अर्थ हीन
निर्गुण सगुण रूप मेरा ही
आकाश धरती में समा गई
विश्व कल्याण में उपयोगी
मैं मानवता की अनुगामी
मैं अज्ञान को मिटाती रही
मैं हीं ईश्वर और कोई नही
ज्ञान की किरण मेरी ध्वनि
मैं स्वर तुम्हारी वाणी बनी
मैं भाषा मानव हृदय बसी
विश्व परिवार को जोड़ती
प्र.प्राचार्य डॉ.प्रदीप शिंदे,
यशवंतराव चव्हाण महाविद्यालय,पाचवड
वाई, जिला- सातारा
7385635505
Last Updated on January 13, 2021 by pradeepmshinde28
- डॉ.प्रदीप शिंदे
- प्र.प्राचार्य
- यशवंतराव चव्हाण महाविद्यालय पाचवड
- [email protected]
- यशवंतराव चव्हाण महाविद्यालय,पाचवड,था.वाई,जिला -सातारा, महाराष्ट्र