कविता क्रमांक 1
शीर्षक- भारत देश निराला है
यूं तो धरती पर देश कई ,पर भारत सबसे न्यारा है|
है ,मातृभूमि भारत मेरी मुझको प्राणों से प्यारी है|
है ,अलग-अलग भाषा के सब |
है अनेकता में एकता|
है ,किसी के दिल में राम बसे तो कोई शिवालय है जाता|
यहां भाती भाती के धर्म बड़े ,प्राचीन विरासत है अपनी|
यह भारत देश निराला है हमको प्राणों से प्यारा है|
जाने कितने कुर्बान हुए तब आजादी हमने पाई है|
कितने वीरों की यश गाथा बच्चों बूढ़ों ने गाई है|
है हममें वह सामर्थ सदा जो दुश्मन को सबक सिखाते हैं|
हो उरी का हमला तो फिर हम घर में घुसकर दुश्मन को सबक सिखाते हैं|
यूं तो है शांत चित् सभी, पर देखे कोई बुरी नजर तो पल भर में उसे मिटाते हैं|
गंगा जमुनी तहजीब हमारी हर नर में यहां पर राम बसे हर नारी में बसती सीता|
यह देश है मेरा बासंती हर दिल में तिरंगा है बसता|
वंदना जैन रचना स्वरचित मौलिक
कविता क्रमांक 2
शीर्षक -हिंद है प्यारा वतन
श्रीराम का महावीर का और बुद्ध का यह धाम है|
हिंदुस्तान है मेरी जमी और मेरी यह पहचान है|
हिंद के कण-कण से हमको प्यार है|
हिंद है ,प्यारा वतन हम सबको इस पर नाज है
दुश्मन अगर आगे बढ़े लड़ने को हर योद्धा यहां तैयार है|
कारगिल का युद्ध भी है, जीतना आता हमें|
उरी जैसा दर्द हो तो, सर्जिकल स्ट्राइक भी सबको याद है|
अनेकता में एकता भारत की पहचान है|
समृद्धता और स्वच्छता बढ़ाना हमारा काम है|
वीर सपूतों की माताओं को नमन हमारा बारंबार है|
जीरो दिया जिस भारत ने वह भारत सबसे खास है|
हम सबको इस पर नाज है|
हम सबका यह अभिमान है|
रचना स्वरचित मौलिक
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नाम – वंदना जैन
संगठन- ब्राह्मी सुंदरी संभाग ज्ञान इकाई महिला मंडल ललितपुर उत्तर प्रदेश
पता- श्री जितेंद्र कुमार जैन वंदना मार्बल डैम रोड ललितपुर उत्तर प्रदेश
ईमेल पता- [email protected]
मोबाइल नंबर- 9696690848,
व्हाट्सएप नंबर-
9616475366
Last Updated on January 4, 2021 by jainvandana492
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