“एकान्त का प्रलाप”
विचार किया है मैंने
कई बार एकान्त में
कि हमें आसपास जो
लोग दिखते हैं शान्त से
हँसते हुए, मुस्कुराते हुए,
कुछ कहते हुए, गुनगुनाते हुए
सामने जो अपने से लगते हैं
क्यों अब छद्म से दिखते हैं!
सच क्या है, असत्य कितना है
कौन पराया है, कौन अपना है
तभी अंतर्मन चीख कर बोलता
जगत में अपना खोज पाना सपना है
सम्बंधों के नाम पर यहाँ
अभिनय किया जा रहा है
‘जय’ अधिकतर स्वार्थी हैं
स्वार्थवश जिया जा रहा है
मनुष्य का साथ छोड़ो
समय का हाथ पकड़ो
यदि जीवन जीना है तो
बस! समय के साथ चलो,
हाँ …. समय के साथ बढ़ो।
Last Updated on November 6, 2020 by jeesbee