अनन्य है
रात के आगोश में जब छिपा चला जाता है मन
तो धीरे से हवा का झोंका बन यूँ जगा जाना अनन्य है।
अश्कों के झरनों से जब लबालब हो जाती हैं आँखें तो
तृषित हिरनी की तरह तुम्हारा उनसे प्यास मिटाना अनन्य है।
कौतुहल से जब पूछ रहा होता हूँ प्रश्न कभी
तो तुम्हारा इशारों में समझाना अनन्य है।
जब नफरतों की पृष्टभूमि पर क्षणिक जीवन की भी आस न हो
तो तुम्हारा प्यार की हरियाली उपजाना अनन्य है।
दूर तक चल रही भीड़ में जब हाथ तुम्हारा पकड़
चलता हूँ तो दुनिया में वो खुशनसीबी अनन्य है।
दुखों के बोझे को जब अकेला उठा रहा होता हूँ
तो तुम्हारा हिम्मत बँधाना अनन्य है।
तुम्हारी आँखों में आँखें डालने से सकुचाता हूँ जरा भी
तो तुम्हारा पास आकर नजरें मिलाना अनन्य है।
तुम्हारी हर बात अनन्य है।
तुम्हारा हर साथ अनन्य है।।
नेमीचंद मावरी “निमय”
बूंदी, राजस्थान
Last Updated on November 2, 2020 by poetnimay.info