कुछ जमी पर तन के टुकड़े
कुछ जमी पर मन के मुखड़े
कुछ जमी पर जन के दुखड़ो
को बटोर ले हम
वह किसी झरना का साहिल
उसको हम कर लेंगे हासिल
भावना सी वह धरा जो
आज हमको खोजती हे
क्लांत मन सी आह को सुनकर
माँ भी पथ पे रोती हे
साथ में रोता धरती-अम्बर
रोता है वह नीलगगन
वह निशाकर भी रोता है
रोता है अपना चमन
हंसता अर्णव भी चुप होकर
रोता है बस आहे भरकर
चिल्लाकर बोला दिवाकर
क्यों रोते हो तुम आहे भरकर
अभी बहा दू झर-झर-झरने
कोमलता के दीप जला दू
समर की ठंडी लहरे बहा दू
लहरो में होगा स्पंदन
कभी ना होगा कोई क्रन्दन
पूंछ लू मैं तप्त आंसू
आंसुओ की धार हे
जो गिरी थी बून्द कोमल
उसमे भी बस प्यार है
उसमे भी बस प्यार है।।
संपर्क : मुरली टेलर ‘मानस’, मोबाईल : 9594370341, ईमेल पता : [email protected]
Last Updated on January 4, 2021 by srijanaustralia