शब्द
शब्द स्वर भरे कभी मुस्कुराहट में तो कभी आंसुओं में ढले
कुछ मन से टकराये और भिगो गए पर कुछ कानों की ओट में ही छिपकर रह गए.
कभी अधरों से फूटे तो गुनाह बन गए,
कभी अधरों पर आने से सकुचाये तो गले में ही अटक गये.
कह दिया तो सुना कि क्यों कह दिया,
नहीं कहा तो सुना कि क्यों नहीं कहा.
दोनों तरफ तुम ही खड़े, हम बस तुम्हारे शब्दों का खेल देखते रहे.
मेरी तकलीफों में लिपटे मेरे शब्द कभी आंसुओं के
साथ तकिये में छुप गए,
पर कभी कभी उगते हुए सूरज को देख कर पंख लगा कर उड़ गए.
तुम्हारी गलत दलीलों में शामिल शब्द बन गए तुम्हारे हथियार,
मेरे टूटते जुड़ते शब्द मेरे एहसासों की गवाही न बन सके.
हम दोनों की लड़ाई में सिर्फ तुम ही तुम दिखे,
हम तो खामोशी से बस तुम्हारे वार सहते रहे.
मेरे एहसास भी थे कभी शब्दों में ढले,
तुमने नही सुने तो उंगलियों से फिसलकर डायरी में
बंद हो गए.
तुम्हारी कैद से छूट कर मेरे शब्द रहे मेरे साथ,
अब तुम अपने शब्दों के साथ समेटो अपनी बिछाई शतरंज की बिसात.
मेरे शब्द मेरे लिए अनमोल थे पर तुम्हारे लिए सिर्फ
एक शोर थे.
हमारे अंदाज थे जुदा, शब्दों की आवाज थी जुदा,
तुम बनने चले मेरे खुदा तो हम भी इबादत करना भूल गए.
डा. संजना मिश्रा………
Last Updated on November 8, 2020 by sanjanamisra09