न्यू मीडिया में हिन्दी भाषा, साहित्य एवं शोध को समर्पित अव्यावसायिक अकादमिक अभिक्रम

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित, विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित, बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका

A Multidisciplinary Peer Reviewed International E-Journal Published from, Victoria, Australia

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला

सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

बरसात की एक रात…!!!

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ये बात है १२ जुलाई २०१७ की। ऋषभ अभी अभी अपने ऑफिस से घर पहुंचा ही था। रात के करीब आठ बज रहे थे। बारिश की हल्की हल्की फुहारें पड़ रहीं थी। इतनी तेज़ भी नहीं थीं…लेकिन बारह किलोमीटर के सफर में ऋषभ थोड़ा भीग सा गया था।

” अरे आप तो बिल्कुल भीग गए। कहीं रुक जाते ना। तबीयत खराब हो जाएगी।” तौलिया देते हुए माधवी ने ऋषभ से बोला।

“अरे कुछ नहीं हो रहा हमको..!!” ऋषभ अपनी पत्नी की बात से किनारा कसते हुए…अपना सिर पोछने लगा। तभी अचानक से उसका फोन बजा…

“भाई…कहां हो अभी…” विजय का फोन था। बहुत समय के बाद फोन आया था उसका। थोड़ा परेशान लग रहा था।

“इलाहाबाद में हूं भाई…!! क्या हाल है???बड़े दिन बाद???”

ऋषभ की बात को बीच में ही काटते हुए…विजय बोला…
“यार…बहन का एक्सिडेंट हो गया है…स्वरूपरानी में भर्ती है वो। प्लीज़ देख सकते हो क्या…??? सरिता नाम है उसका..!!” विजय की आवाज़ में एक विश्वास था।

“हां…भाई टेंशन मत लो… मैं अभी जा रहा।” ऋषभ कपड़े पहनते पहनते बोला।

बारिश अब थोड़ी तेज़ हो चुकी थी। माधवी चाय लेकर रसोई से बाहर आयी ही थी कि ऋषभ तैयार था…जाने को।

“अरे अब कहां…इतनी बारिश में…???”
“आता हूं यार…थोड़ी देर से…विजय भाई की सिस्टर का एक्सिडेंट हो गया है…!! हॉस्पिटल में है वो..!” विजय अपनी बाइक निकालते हुए बोला।

“अरे…चाय तो पीते जाओ…!!”

“नहीं…आता हूं बस…” ऋषभ अपनी मोटरसाइकिल से निकल गया था।

“कैसे हो गया ऐक्सिडेंट…?? कितनी लगी होगी…?? अरे…उसका मोबाइल नंबर ले लेना चाहिए था। लेकिन हो सकता है…वो बात कर पाने की हालत में ही ना हो…??” हजारों सवाल ऋषभ के अंतर्मन में चल रहे थे। जैसे जैसे बारिश तेज होती थी…ऋषभ के बाइक की रफ्तार भी बढ़ती जा रही थी। ऋषभ इन्हीं सवालों में उलझा अस्पताल पहुंच गया। भागते हुए सीधे इमरजेंसी वार्ड में पहुंचा। कुछ लोग एक बेड को घेर के खड़े थे। हृदय धक्क सा हो गया ऋषभ का।

“भाई…ये सरिता……..!!!” ऋषभ ने एक जिज्ञासु की भांति पूछा।

“हां…भैया….आ गए आप। यही है सरिता।” एक लड़के ने बताया ऋषभ को।

बेहद मासूम सी थी…सरिता। कुछ बीस एक वर्ष उम्र रही होगी उसकी। बड़ी मुश्किल से धड़कन चलती हुई दिख रही थी उसकी। कृत्रिम श्वास देने में एक लड़का खासी मेहनत करता हुआ दिख रहा था। लेकिन सरिता…तनिक भी चैतन्य नहीं थी।

एक जिम्मेदार से दिख रहे लड़के से ऋषभ ने पूछा…”कैसे हुआ ये सब???”

” भैया…एक ऑटो वाले ने पेट पर ऑटो चढ़ा दी है। चार घंटे इलाहाबाद रेलवे स्टेशन के सामने पड़ी रही ये लड़की…कोई हॉस्पिटल तक ले नहीं गया। फिर हम लोग ले आए। कोई डॉक्टर भी गंभीरता से अटेंड नहीं करता। पैसे भी हम लोगो के पास नहीं हैं।” ऋषभ सुनता रहा।

“कोई बात नहीं… मैं आ गया हूं। ” ऋषभ ने सांत्वना भरे भाव से बोला और सरिता के पास खड़ा हो गया।

कृत्रिम श्वांस की मशीन अब ऋषभ के हांथ में थी। बेड के पास खड़ी सारी भीड़ कहीं जा चुकी थी। सिर्फ सरिता थी…और श्वांस देता ऋषभ। ऋषभ की आंखों में आसूं थे।

“हे भगवान…कुछ मेरी सांसें भी दे दो इस बच्ची को। कोई डॉक्टर भी नहीं आता। क्या करूं…???” ऋषभ कुछ भी सोच नहीं पा रहा था। तभी उसे लगा…अगर वो यहां बैठा रहा…तो इसे इलाज नहीं मिल पाएगा।

एक नर्स को बुला कर उसने कहा…”सिस्टर सिर्फ दस मिनट देख लो…इसको….मैं आता हूं…!!”

इतना कह कर ऋषभ डॉक्टर्स लॉबी की ओर भागा।

“कौन ड्यूटी पर है अभी…??” ऋषभ ने पूछा।
“अभी सीनियर डॉक्टर आए नहीं हैं…” एक स्टाफ नर्स ने बोला।
“अरे तो कब आएंगे…जब पेशेंट मर जाएगा तब…नाम बोलो डॉक्टर का…नंबर बोलो…???” ऋषभ मानों क्रोध के मारे आग बबूला हो चुका था।

“हैलो…डॉक्टर साहब… दस मिनट के अंदर अंदर हॉस्पिटल आ जाइए…निवेदन है आपसे…यूनिवर्सिटी से बोल रहा हूं मैं…” इतना कह कर ऋषभ ने अंधेरे में एक तीर सा चलाया था और फोन काट दिया।

डॉक्टर साहब शायद नौ मिनट में ही आ गए होंगे।

“कैसी व्यवस्था है। देश विकसित होना चाहता है। और एक मरीज़ को पहला इलाज मिलने में ६ घंटे लग गए।” ऋषभ का अंतर्मन स्वयं से बातें कर रहा था।

” कौन है पेशेंट के साथ…?? डॉक्टर साहब ने सरिता को देखने के बाद बोला।
“मैं हूं….!!” ऋषभ ने जवाब दिया।

“इधर आइए…!!” इतना कहते हुए डॉक्टर और ऋषभ सरिता से थोड़ी दूर चले गए।

“देखिए…वेंटिलेटर अवेलेबल नहीं है यहां पर। देर भी बहुत हो चुकी है। आप कहीं और चाहें तो ले जा सकते हैं।” डॉक्टर बोल के चला गया।

ऋषभ दो मिनट तक सरिता का चेहरा आंखों में लिए उसी ओर देखता रहा…जिस ओर डॉक्टर साहब चले जा रहे थे.. निः शब्द…स्तब्ध…!!!!

तब तक वो दो चार यूनिवर्सिटी के लड़के, जो सरिता को हॉस्पिटल तक ले कर आए थे वो भी आ गए।

” क्या हुआ भैया??? क्या बोला डॉक्टर ने??” एक ने पूछा।
“वेंटिलेटर चाहिए… अरेंज करना पड़ेगा..” ऋषभ के चेहरे पर चिंता के भाव थे।

रात के करीब साढ़े दस बज रहे थे। बरसात मानों की उफान पर थी। मूसलाधार बारिश। सब ने एक एक कर के सभी हॉस्पिटल में फोन लगाना शुरू किया। कोई भी पेशेंट लेने को तैयार नहीं।

अचानक ऋषभ ने बोला…
“भाई ऐसे काम नहीं चलेगा…चलना पड़ेगा हॉस्पिटल तक…पैसे फेंकने पड़ेंगे। मैं जाता हूं…तुम लोग यहां रुको।”

तीन लड़के और साथ हो लिए। और वो लोग पहुंच गए वहां से करीब दो किमी दूर स्थित एक बड़े ही संभ्रांत हॉस्पिटल में।

ऋषभ ने बोला…” मैडम… पेशेंट एडमिट करना है… इमरजेंसी है…वेंटिलेटर की जरूरत है अभी तुरंत।”

” हां ठीक है…पंद्रह हजार जमा करवा दीजिए… पेशेंट कहां है???” मैडम ने पूछा।

“ले आना पड़ेगा…स्वरूपरानी से… मैं पैसे जमा कर दे रहा…!” ऋषभ ने बोला।

“रुकिए… मैं डॉक्टर से पूछ लूं ज़रा…” मैडम ने फोन लगाया।
पांच मिनट के बाद रिसेप्शन पर बैठी वो मैडम बोली…
“अभी वेंटिलेटर अवेलेबल नहीं है।”

ऋषभ के सर पर मानो शैतान बैठ गया।
“कौन साला बोला रे…वेंटिलेटर नहीं है…कहां है डॉक्टर बुला उसको…???” ऋषभ चिल्लाया।

लड़ाई का माहौल हो गया! डॉक्टर आया। बोला मैं पुलिस को बुलाता हूं अभी।

“बुला साले पुलिस को…तुझे इस लायक नहीं छोडूंगा कि तू बुला पाए।” ऋषभ ने डॉक्टर का कॉलर पकड़ कर उसे वहीं कुर्सी पर बिठा दिया।

” बोल…है कि नहीं वेंटिलेटर…??? बोल???” ऋषभ पागल सा हो गया था।

डॉक्टर को अंदाजा नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है। तुरंत नर्स ने पंद्रह हजार रुपए जमा किए। और ऋषभ निकल पड़ा स्वरूपरानी हॉस्पिटल…सरिता को लिवाने।

हॉस्पिटल पहुंचते पहुंचते साढ़े ग्यारह बज चुके थे। ऋषभ ने देखा कि डॉक्टर सरिता की नब्ज़ देख रहे थे।

“शी इज नो मोर…” डॉक्टर ने ऋषभ को देखते ही बोला।

सरिता…ऋषभ की गोद में अपना सर रख कर लेटी हुई थी। ऋषभ मूक सा उसे ही निहार रहा था। उसकी आंखों से आंसू मानों रुक ही नहीं रहे थे।

सरिता बोल रही थी शायद ऋषभ से,
“भैया… देर कर दी आपने…मुझे बचा नहीं सके आप। इस देश में इलाज समय से मिल पाना आज भी बहुत मुश्किल है।”
ऋषभ रोता हुआ चल पड़ा था घर की ओर। बरसात की वो रात आज भी भारी है ऋषभ पर।

कहीं लिखा हुआ पढ़ा उसने….
Nöne could chase God’s decesion….
Life loose….
Death win…..
😥😥😥

Last Updated on January 22, 2021 by rtiwari02

  • ऋषि देव तिवारी
  • सहायक प्रबंधक
  • भारतीय स्टेट बैंक
  • [email protected]
  • L-4, NAI BASTI RAMAI PATTI MIRZAPUR UTTAR PRADESH BHARAT DESH PIN 231001
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