<span;>जिन्दगी की शाम पर: मुस्कुराना है हाथ में हाथ डालकर
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<span;>जब से जीवन की डोरी से,मैंने
<span;>तेरे साथ का गठबंधन जोडा है।
<span;>चलते इन राहों पे न जाने,कितने
<span;>इन सुनामियों ने हमें झिझोडा है।
<span;> न जाने तूने मेरे कितने गम पिए,
<span;> इस दर्दीली दुनियाँ के सितम सहे,
<span;> तेरी बगिया के खुद माली बनकर,
<span;> रक्त से यूॅ सींच फूलों को रंग दिए।
<span;>बहार आई, तो भौंरो ने गुनगुनाया,
<span;>खुशबू पलकों पर दे,जग महकाया,
<span;>मनभावन सावन देख,वे बहक गए,
<span;>परिंदे बनके वे घोसले में दुबक गए।
<span;> चल पडा ये जीवन उस मुकाम पर,
<span;> क्षितिज का सूर्य हो ज्यों मलान पर,
<span;> हमारी हथेलियों के पक्की पकड ही,
<span;> आसरा होगी इस जीवन के डगर की।
<span;>हाथ में हाथ डाल, हम वो मुसकान दें
<span;>भरोसे की रेख बना वो नई पहचान दें,
<span;>सम्बल रहेगा तभी जीवन की आस है,
<span;>सोच के गुंसुम हूँ कहाँ होगा परिहास है।
<span;>ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला
<span;>27:12:2020
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<span;>जिन्दगी की शाम पर: मुस्कुराना है हाथ में हाथ डालकर
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Last Updated on December 27, 2020 by opgupta.kdl
- ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला
- अवकाश प्राप्त प्रवक्ता गणित
- किरंदुल
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