“महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता” हेतु कविता।
बेटियाँ घर मेरे मौसम की, बहार आयी, घर मेरे शबनम की, फुहार आयी, दे दिया तोहफ़ा, मुझे कुदरत
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
बेटियाँ घर मेरे मौसम की, बहार आयी, घर मेरे शबनम की, फुहार आयी, दे दिया तोहफ़ा, मुझे कुदरत
एहसास मन भावों को कैसे उकेरूं, शब्द नहीं हैं पास मेरे, कैसे गढ़ू मैं चित्र घनेरे, रंग नहीं
वीरों का वंदन होना चाहिए इस देश का अम्बर रोता है, इस देश की धरती रोती है, जब-जब