मन महकने लगा, तन बहकने लगा
कर दिया कोई जादू तेरे नाम ने,
बंद सी आँख मेरी ये कहने लगी,
तु जरूर आ गई है मेरे सामने।
अब तलक कोई प्राणों में आई ना थी,
कोई खुशबू रगों में समायी ना थी,
मन की वीणा पर अंगुली चलाई ना थी,
प्यार की कोंपले सुगबुगाई न थी,
तूने पुलका दिया मन के चुप तार को,
किस यवनिका से आकर मेरे सामने। मन……..
तेरी पायल की छम- छम बसी प्राण में,
गर्म साँसों की सीं- सीं सटी कान में
तेरे अलकों की भीनी महक घ्राण में,
जैसे सद्भाव निखरे हों इंसान में,
खिल उठा मन- कमल प्राण- सर में विकल
पा तेरी पूर्ण आनन- विभा सामने। मन….
यों लगा सारा संसार सोने लगा,
तेरे पदचाप- तालों में खोने लगा,
फूल के गाल पर ओस सोने लगी,
चाँद जग को किरण से भिगोने लगा,
यह कोई स्वप्न था याकि तेरा असर,
मुझको उल्झा दिया इसी अंजाम में। मन….
–डॉ. अमरकांत कुमर
Last Updated on January 9, 2021 by amarkantkumar1959
- डॉ. अमरकांत कुमर
- एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग
- एम. एल.एस.एम कॉलेज, दरभंगा
- [email protected]
- मानस, न्यू प्रोफेसर कालोनी, दिग्घी पश्चिम, दरभंगा, बिहार
1 thought on “प्रेम -काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतु”
Yah geet sarvottam tareeke se prastut kiya gaya hai 🤩