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कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी के गांव में

<span;>कल जहां बसती थी खुशियां आज है मातम वहां…। हिंदी फिल्म ‘वक्त’ का यह मशहूर गीत रामवृक्ष बेनीपुरी के गांव पर सटीक बैठता है। जिस बेनीपुर में कभी साहित्यिक गोष्ठियों में कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी के ठहाके गूंजते थे आज वहां सन्नाटे में अगर सुनाई देती है तो मात्र हवाओं की सनसनाहट। 2021 में पहले दिन हमसभी बेनीपुर के लिए निकले थे। एक बार फिर इस यात्रा के प्रेरक नूतन साहित्यकार परिषद के अध्यक्ष व अभिभावक चंद्रभूषण सिंह चंद्र थे। उनकी प्रिय मारुति आल्टो कार हमलोगों की हमसफर थी। साथ में थे दैनिक भास्कर के रोहित रंजन व दैनिक जागरण के पत्रकार ब्रजेन्द्र भाई।

<span;>         सीतामढ़ी रोड में जनार बांध से पूरब की ओर ईंट सोलिंग सड़क पर हमसभी बढ़ रहे थे। इसी बीच बेनीपुर हाल्ट के पास बाइक पर सवार हेलमेट लगाए एक व्यक्ति ने हमलोगों की कार को रोका। कार से निकलने के बाद देखा कि औराई के दैनिक जागरण रिपोर्टर शीतेश भाई थे। उन्हें देखकर हमसभी चौंक गए। साथ में खुशी भी हुई कि बेनीपुरी जी के गांव में अब हमसभी की यात्रा आसान हो जाएगी। चंद्रभूषण सर ने कहा कि सच्ची व अच्छी नीयत हो तो किसी भी काम के लिए रास्ता आसान हो जाता है। ऐसा हुआ भी। शीतेश भाई के नेतृत्व में हमलोगों की कार आगे बढ़ चली। बेनीपुरी के गांव में जाने के लिए बागमती की उपधारा नाव से पार करना होता है। ग्रामीणों ने बताया कि यह उपधारा बागमती तटबंध बनाने के दौरान मिट्टी काटने से बनी है। मुख्य धारा बेनीपुरी जी के घर से पूरब व उत्तर है। नाव खेवने के लिए पतवार शीतेश भाई ने थाम ली थी। नाव से उतरने के बाद दूर दूर तक खेतों में खेसारी की फसल दिख रही थी। यह देखकर मुझे व ब्रजेन्द्र भाई को अपने गांव के बूढ़ी गंडक नदी के किनारे के ढाब में उपजने वाले खेसारी के खेत याद आ गए। बचपन के दिनों में खेसारी के साग में हरी मिर्च व नमक डाल कर बनने वाले लहरा का स्वाद जेहन में ताजा हो गया। खेतों के बीच आड़े-टेढ़े लीक से होकर हमसभी बढ़ चले बेनीपुरी की के घर की ओर। प्यास लगी तो हमलोगों ने एक सज्जन के घर चापाकल का पानी पिया। सभी ने पानी के स्वाद की तारीफ की। गृहस्थ ने बताया कि 190 फीट का चापाकल है। आगे बढ़ने पर बागमती परियोजना की त्रासदी दिखने लगी। खंडहर बना स्कूल भवन हो या लोगों के मकान। सभी एक सभ्यता के मरने की गवाही दे रहे थे। बिना तार के बिजली के पोल इस बात के गवाह थे कि कभी गांव में रौशनी बरसती रही होगी। आज वीरानगी का आलम है। बेनीपुरी जी के घर के पहले मिले अनिल कुमार सिंह। लगभग पांच फीट की उंचाई पर बना है उनका मकान। 2007 में बागमती परियोजना लागू होने के बाद पूरा गांव विस्थापित हो गया है। गांव में रहने वाले दर्जनभर परिवार में उनका भी परिवार शामिल है। गांव में रहने का कारण कही न कही अपनी मिट्टी से गहरा जुड़ाव दर्शाता है। मिलने पर पूरी आत्मीयता से उन्होंने हमसभी की आगवानी की। उनके यहां बेनीपुरी जी के स्मारक से लौटकर लौटकर चाय पीने की इच्छा  शीतेश भाई ने जाहिर की। तब अनिल जी ने कहा कि ‘हमनी त लोग के इंतजार करईछी’। उनके इस वाक्य ने सभी को स्नेह से अभिभूत कर दिया। सचमुच इतनी आत्मीयता अब कहां मिलती है? आगे बढ़ने पर खंडहर मकानों से गुजरने हुए हमसभी बेनीपुरी जी के स्मारक के सामने थे। जिस स्मारक व मकान को सालों से अखबारों के पन्नों में देखते थे आज उससे रूबरू होकर धन्य महसूस कर रहे थे। चंद्र जी के साथ हमसभी ने बेनीपुरी जी की प्रतिमा को प्रणाम किया। प्रतिमा की हालत देखकर चंद्र जी ने इसे दुरुस्त करने की जरूरत बताई। गांव के ही देवकी मंडल ने बताया कि उटखाटी (बदमाश) चरवाहा सब मूर्ति के खराब कर देले हय। हमलोगों को देखकर पहुंचे ग्रामीण संजीव कुमार सिंह से सभीलोगों की एक साथ की तस्वीर मोबाइल में खींचने का आग्रह किया। तब संजीव ने कहा कि हमरा फोटो खींचे न आबाईअ। हमनी के मोबाइल न हंसुआ व खुरपी चाही। इस वाक्य ने आइना दिखाया कि भौतिकता के दौर में खेती-किसानी ही गांव की जड़ों को मजबूत रखेगा। बहरहाल,ब्रजेन्द्र भाई की ट्रेनिंग से संजीव ने हमसभी की ग्रुप फोटो बखूबी खींची। बेनीपुरी जी का  मकान जिसे उन्होंने स्मारक के रूप में रखने की अपनी जिंदगी में ही घोषणा कर रखी थी आज खस्ता हालत में है। अपनी डायरी के पन्ने में आठ दिसंबर 1952 को उन्होंने लिखा है कि यह मेरा मकान नही मेरा स्मारक है। इस बदनसीब देश मे जहां कालिदास व तुलसीदास के स्मारक नही बन सके तो बेनीपुरी के स्मारक की याद किसे रहेगी ? ऐसे में अपने मकान को ही ऐसा मजबूत बनाये जो कम से कम चार पांच सौ साल कायम रहे।  सचमुच उनकी आशंका सच साबित हो गई। विशाल व भव्य पोर्टिको व बरामदे,बड़े-बड़े कमरे व खिड़कियों वाला मकान बागमती नदी की लाई मिट्टी से कमर तक भर चुका है। हालांकि 23 दिसंबर 2020 को उनकी जयंती पर डीएम चंद्रशेखर सिंह ने स्मारक के संरक्षण के लिए तीन करोड़ से अधिक की लागत से डीपीआर तैयार किये जाने की घोषणा की है। जिससे ग्रामीणों को साहित्यप्रेमियों को उम्मीद है कि बेनीपुरी जी की इच्छा पूरी हो सकेगी। स्मारक से लौटते समय अनिल जी के दरवाजे पर चाय व बिस्कुट के साथ आतिथ्य स्वीकार किया। वहां से यादों को संजोए हमसभी वापस लौटने लगे। उपधारा को पार करने के बाद उपधारा की दूसरी ओर बांध किनारे बनने वाले बेनीपुरी स्मारक स्थल की जमीन को भी हमने देखा। लौटने के क्रम में जनार बांध पर दैनिक भास्कर के औराई के संवाददाता नवीन झा मिले। वहां विशेष आग्रह पर दो रसगुल्ला व दो बालूशाही यानि कुल चार-चार मिठाई का लुत्फ उठाया। हालांकि चंद्र सर ने मात्र दो रसगुल्ला खाया। फिर स्पेशल चाय पीने के बाद शीतेश भाई को विशेष धन्यवाद देते हुए हमलोग खादी भंडार कन्हौली के लिए निकल पड़े।




मन करता है

मन करता है

मन करता है चिड़िया  बनकर तेरे पास  चला  आऊँ

मन करता है तेरे कोमल हाथों में चुनकर दाने खाऊँ 

मन करता है तूँ कलम तूँ ही स्याही, मैं पन्ने बन जाऊँ 

मन करता है तूँ देवी शक्ति मेरी, मैं कंठाहार बन जाऊँ 

मन करता है तूँ तरु शिखर मेरा, मैं शाखाएं बन जाऊँ 

मन करता है तूँ धरती मैं नभ, तेरे आगोश में मिल जाऊँ 

मन करता है तूँ क्षीर पयोधि, मैं नदी बन तुझमें  समाऊँ

मन करता है तूँ स्वर्णमेखला मैं हिम, लिपट गले लगजाऊँ 

मन करता है तूँ हीर मेरी मैं रांझा, तेरे खेतों में गाएँ चराऊँ

मन करता है तेरी छोटी छोटी खुशियों में शामिल हो जाऊँ

 

मन करता है तूँ पुकारे   मुझे, मैं दौड़  लगाता  चला आऊँ 

मन डरता है अस्वीकार हो तेरा, तेरी तस्वीर देख प्राण लुटाऊँ 

मन करता है ले पुनर्जन्म, फिर से तेरा स्नेहिल बनकर आऊँ

 मन डरता है नियति में न हो ऐसा तो खुदा से तुझे मांग लाऊँ 

मन करता है   हे देवी कहीं  न  कहीं मैं तुझसे  निजता पाऊँ

मन करता है हे देवी  तेरे साये में, मैं अपने भाग्य को इठलाऊँ

 

हरिराम भार्गव “हिन्दी जुड़वाँ” 

शिक्षा – MA हिन्दी, B. ED., NET 8 बार JRF सहित 

सम्प्रति-हिन्दी शिक्षक, सर्वोदय बाल विद्यालय पूठकलां, शिक्षा निदेशालय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली 

9829960782 [email protected]

माता-पिता – श्रीमती गौरां देवी, श्री कालूराम भार्गव 

प्रकाशित रचनाएं – 

जलियांवाला बाग दीर्घ कविता-खण्डकाव्य (लेखक द्वय हिन्दी जुड़वाँ)

मैं हिन्दी हूँ – राष्ट्रभाषा को समर्पित महाकाव्य-महाकाव्य (लेखक द्वय हिन्दी जुड़वाँ)

आकाशवाणी वार्ता – सिटी कॉटन चेनल सूरतगढ राजस्थान भारत 

कविता संग्रह शीघ्र प्रकाश्य – 

वीर पंजाब की धरती (लेखक द्वय हिन्दी जुड़वाँ  – महाकाव्य )

उद्देश्य- हिंदी को प्रशासनिक कार्यालयों में लोकप्रिय व प्राथमिक संचार की भाषा बनाना।

साहित्य सम्मान – 

  • स्वास्तिक सम्मान 2019 – कायाकल्प साहित्य फाउंडेशन नोएडा, उत्तर प्रदेश l
  • साहित्य श्री सम्मान 2020- साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्थान, मुंबई महाराष्ट्र l
  • ज्ञानोदय प्रतिभा सम्मान 2020- ज्ञानोदय साहित्य संस्था कर्नाटक l
  • सृजन श्री सम्मान 2020 – सृजनांश प्रकाशन, दुमका झारखंड। 
  • कला शिरोमणी साहित्य सम्मान 2020- ब्रजलोक साहित्य शोध संस्थान, आगरा उत्तर प्रदेश l

 




निकलता सूरज छँटता अंधेरा

छँट जाएगा अँधेरा विश्वाश कीजिये सूरज निकलने का इंतज़ार कीजिये।।

छोड़िए मायूसी अब कदम बढाईये मुश्किलें बहुत लड़ते बढ़ते जाईये ।।
छँट जाएगा अँधेरा विश्वाश कीजिये सूरज निकलने का इंतज़ार कीजए।।
मंजिलो कि राह में दुश्मन हैं बहुत हौसलो हुनर के शास्त्र शत्र से पथ विजय बनाइये।।
छँट जाएगा अँधेरा विश्वाश कीजिये सूरज निकलने का इंतज़ार कीजए।।
रिश्तों के इस जहां में ना धोखा खाइये दोस्त दुश्मन में फर्क फासला बनाइये।।
छँट जाएगा अँधेरा विश्वाश कीजिये सूरज निकलने का इंतज़ार कीजए।।
जिंदगी के हर कदम पे वादे
मुश्किलों में एक हिम्मत हौसलों का चिराग जलाइए।।
छँट जाएगा अँधेरा विश्वाश कीजिये सूरज निकलने का इंतज़ार कीजए।।
चिरागों की रौशनी में वादों इरादों यादों संग साथ चलते जाइए।।
छँट जाएगा अँधेरा विश्वाश कीजिये सूरज निकलने का इंतज़ार कीजए।।
मतलब के इस जहॉ में दोस्त नहीं मिलते ईमान का इंसान एक दोस्त बनाइये।।
छँट जाएगा अँधेरा विश्वाश कीजिये सूरज निकलने का इंतज़ार कीजए।।
जिंदगी के सफ़र में दौर हैं तमाम
जिंदगी के हर दौर में मुस्कुराइए।।
छँट जाएगा अँधेरा विश्वाश कीजिये सूरज निकलने का इंतज़ार कीजए।।
रिश्तों से धोखा गैरों से मौका
जिंदगी के अजीब अंदाज़ को आजमाईये।।
छँट जाएगा अँधेरा विश्वाश कीजिये सूरज निकलने का इंतज़ार कीजए।।
ख़ुशी में भी आंसुओ का रिवाज़
गम आंसुओ का जहाँ गम और
ख़ुशी की जिंदगी
में सदा मुस्कुराइए।।
छंट जाता अँधेरा तो टूटता ग़ुरूर
उजाले के आईने में सच्चाई निभाइए।।
छँट जाएगा अँधेरा विश्वाश कीजिये सूरज निकलने का इंतज़ार कीजए।।
दिल भी आईना जरा सी हरकत
से टूटता बिखरता दिल
सच का साथ निभाइए।।
छँट जाएगा अँधेरा विश्वाश कीजिये सूरज निकलने का इंतज़ार कीजए।।
मोहब्बत है जिंदगी
जहर नफरत का नहीं
नफरतों के नस्तरो से फासला बनाइये।।
छँट जाएगा अँधेरा विश्वाश कीजिये सूरज निकलने का इंतज़ार कीजए।।
जिंदगी और जहाँ में दल दल
है बहुत जिंदगी के दलदल से निकल झील का कमल बन सूरज के संग इतराइये।।
छँट जाएगा अँधेरा विश्वाश कीजिये सूरज निकलने का इंतज़ार कीजए।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




लेखक लेखनी मत छोड़

लेखक, लेखनी मत छोड़,
सत्य बता झूठ को तोड़,
सच का मुँह ना फोड़,
मोह अगर कोई दे दे तो भी,
सच का साथ कभी ना छोड़,
लेखक, लेखनी मत छोड़।
सत्य का संगत संकट से है
पर,इसका साथ न छोड़,
बहकावे में तुम आओगे तो,
लेखनी की होगी तोड़ मरोड़,
सत्य की नींव लगाया,
सच्चाई कि स्याही में डुबोया
सच को डूबने न दो तुम,
मिथ्या का चाहे हो कितना भी शोर,
लेखक, लेखनी मत छोड़।
न हिंसा हो न रक्त बहे
तलवार को यह रोके रहे
अतः,लेखक तू लेखनी मत छोड़।
डॉ रजनी दुर्गेश
हरिद्वार




अभिसप्त जिंदगी

 

यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है भूत प्रेत पुनर्जन्म आदि तकिया नुकुसी बातो में आज का विज्ञान वैज्ञनिक युग का युवा वर्ग स्वीकार नहीं करता है।आज के इसी परिवेश में यह सत्य घटना सोचने को बिवस करती है की यदि मृत्यु के उपरांत भूत प्रेत पुनर्जन्म आदि कपोल कल्पना है
तो सत्य क्या है सनातन धर्म मतावलम्बियों का मत है की प्राणी अपने एक शारीर को त्यागने के बाद अपने कर्म गति का प्रारब्ध भोगने कर्मानुसार दूसरा शारीर धारण करता है तो स्लाम में कयामत में खुदा रूहो को उनकी नेकी वदी के अनुसार नया जिस्म तकसीम करेगा की मान्यता है।
यानी जीवन के बाद जीवन की मान्यता सभी धर्म सम्प्रदायों की मूल अवधारणा है ऐसे में विज्ञानं भी पैरा लाइफ के अस्तित्व को स्वीकार करता है वास्तव में प्रत्येक प्राणी निद्रा की स्तिति में पैरा लाइफ यानि चेतन मृत्युं अवस्था में रहता है ऐसे में यह घटना जो इस कहानी में का आधार है अनेको प्रश्न विज्ञान धर्म समाज के समक्ष प्रस्तुत करती है।
यह घटना बिहार के एक गाँव की है जो विकास की सम्भावना से दूर भोले भले भरितयो का गाँव है शंकर पुर पाठखौलि उसी गांव में लगभग साठ वर्ष पूर्व प्रभाकर पाठक प्रकांड विद्वान् गांव समाज में सम्मानित और क्षेत्र में एक मात्र उच्च शिक्षित व्यकि थे उनकी पत्नी प्रियंबदा पढ़ी लिखी तो नहीं थी मगर विद्वान के सानिध्य में पढ़ी लिखी से कम नहीं थी।पण्डित प्रभाकर पाठक का मूल व्यवसाय खेती और यजमानी था पंडित जी को किसी बात की कोई कमी नहीं थी ईश्वर की कृपा से धन यश कीर्ति सब उनको प्राप्त था।प्रभाकर पाठक और प्रियंबदा का लाडला आँख का तारा दुलारा एकमात्र संतान था प्रखर पंडित प्रभाकर पाठक प्रत्येक माँ बाप की तरह अपने बेटे प्रखर को भी प्रतापी और पराक्रमी पुत्र बनाना चाहते थे हर समय बेटे को धर्म, शात्र ,अनुशासन नियम ,साहस ,पुरुषार्थ का नियमित पाठ पढ़ाते बेटा प्रभाकर अपने पिता की हर सिख को अपना जीवन मूल्य मानकर स्वीकार कर आत्म साथ करता पूरा परिवार एक आदर्श परिवार की तरह पूरे गाँव में प्रेरक अनुकरणीय था गाँव के हर घर में पंडित प्रभाकर पाठक के आदर्श परिवार का जिक्र होता ।
पंडित प्रभाकर पाठक प्रति दिन शाम को लालटेन जलाते और प्रखर को साथ पढ़ने हेतु साथ बैठाते विद्यालय में जो पढाया जाता उसे पूछते और जो भी प्रखर की समझ नहीं आता वो समझाते पिता पुत्र में तमाम प्रश्न उत्तर का सिलसिला चलता और भोजन के उपरान्त दोनों सोने चले जाते पुनः ब्रह्मबेला में पंडित प्रभाकर उठते और बेटे प्रखर को जगाते और योगा प्राणायाम कराते स्वयं उसका मार्ग दर्शन करते नतीजा यह हुआ की दस वर्ष की उम्र आते आते प्रखर बहुत बुद्धिमान ओजश्वी लगने लगा पुरे गाँव को प्रखर के भविष्य के प्रति जागरूकता और अभिमान था सभी की यही मंशा थी की प्रखर उनके गांव का नाम रौशन करे और विश्वाश भी था की प्रखर अवश्य उनके गाँव का नाम रौशन करेगा।धीरे धीरे प्रखर दसवीं कक्षा में पहुँच गया जिसे आम भाषा में मेट्रिक कहते है प्रखर मेहनती लगनशील तो था ही उनसे अधिक एजाग्रता के साथ अध्ययन पर ध्यान के साथ जुट गया उसकी मेहनत रंग लाई और उसने मेट्रिक की परीक्षा पूरे जनपद गोपाल गंज में अव्वल स्थान प्राप्त किया पंडित प्रभाकर की खुशियों का ठिकाना न रहा उनकी बांछे खिल गयी।उनको अपने बेटे पर गर्व था बार बार ईश्वर का आभार व्यक्त करते एकाएक एक दिन पंडित प्रभाकर से प्रखर के शिक्षक सूर्य प्रकाश मिश्र से मुलाकात हो गयी मिश्र जी ने पंडित प्रभाकर को प्रखर जैसे पुत्र के पिता होने के गर्व को चार चाँद लगाते हुये बोले पाठक जी आप पर भगवान् की बड़ी कृपा है जो प्रखर जैसी संतान प्राप्त है जिसने पूरे क्षेत्र गाँव और आपके साथ साथ विद्यालय का नाम भी रौशन किया है हम विद्यालय की तरफ आपका आभार व्यक्त करते है की प्रखर जैसा होनहार के आप पिता है ।सूर्य प्रकाश मिश्र की बात सुनकर पंडित प्रभाकर पाठक ने बड़ी विनम्रता से कहा प्रखर की सफलता में मेरा योगदान कुछ भी नहीं असल में आप जैसे शिक्षक और विद्यालय का अनुशासन से ही प्रखर जैसे औलाद के हम अभिमानित आह्ल्लादित पिता है।
आप सभी आदरणीय शिक्षको एवम् विद्यालय के प्रति मैं कृतज्ञता और आभार व्यक्त करता हूँ ।
फिर पंडित प्रभाकर पाठक ने सूर्य प्रकाश मिश्र से पूछा मैट्रिक स्तर पर कोई ऐसी प्रतिस्पर्धा है जिसमे प्रखर को सहभागी बनाकर यह परखा जा सके की अखिल भारतीय स्तर पर प्रखर किस प्रकार अपने को प्रमाणित करता है सूर्य प्रकाश मिश्र ने तुरन्त कहा पाठक जी मेट्रिक स्तर पर राष्ट्रीय रक्षा अकादमी की परीक्षा अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित की जाती है जिसके माध्यम से देश सेवा के लिये सेना के अधिकारी तैयार किये जाते है मगर आपका तो एक ही बेटा है क्या आप इसे इस चुनौतीपूर्ण प्रतियोगिता में सम्मिलित होने की अनुमति देंगे
पंडित प्रभाकर पाठक ने कहा यह तो बड़े गौरव की बात है भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है की धर्म युद्ध में लड़ता हुआ कोई भी विजयी होता है तो भौतिक सुखो को भोगता है और यदि वीर गति को प्राप्त होता है तो सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होती है दोनों ही स्थिति में प्रखर का ही भला है ।जो भी जन्मा है उसे मरना अवश्य है एक सम्मानित मृत्यु एक जलालत की जिंदगी दोनों में बहुत अंतर है मिश्र जी आप निश्चिन्त होकर प्रखर को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी की प्रतिष्ठा पूर्ण एवं चुनौतीपूर्ण परीक्षा में आवेदन की औपचारिकता बताये पूर्ण कराएं।।
सूर्यप्रकाश मिश्र जी और प्रभाकर प्रभाकर पाठक अपने अपने घर आये प्रभाकर पाठक ने बेटे प्रखर से अपनी सूर्य प्रकाश मिश्र जी से हुई पूरी वार्ता का ब्यौरा सिलसिले वार सुनाया और राष्ट्रिय रक्षा अकादमी की चुनौती पूर्ण परीक्षा में सम्मिल्लित होने की प्रक्रिया बताकर आदेशात्मक लहजे में कहा प्रखर तुम इस परीक्षा में अवश्य सम्मिलित होंगे प्रखर ने आज्ञा कारी पुत्र की तरह आदेश पालन का पिता को आश्वत करते सोने को चला गया।
सुबह सुबह प्रखर उठा और राष्ट्रिय रक्षा अकादमी का आवेदन मांगने हेतु सारी औपचारिकतायें पूर्ण की एक माह में आवेदन फार्म आ गया जिसे भर कर निश्चित समय पर परीक्षा हेतु प्रेषित कर दिया।आवेदन करने के छ माह बाद परीक्षा हेतु प्रवेश पत्र आ गया प्रखर ने परीक्षा की तैयारी पूरी ईमानदारी से की थी और पूरे विश्वाश से परीक्षा दिया और पूरे भारत में प्रथम स्थान के साथ चयनित हुआ पिता प्रभाकर पाठक के साथ साथ पूरे गाँव क्षेत्र के लोंगो ने खुशियों इज़हार किया और गर्व की अनुभूति से आह्ल्लादित हुये।
प्रखर चार वर्ष के कठिन प्रशिक्षण पर सेना के प्रशिक्षण संस्थान चला गया और चार साल की कड़ी मेहनत लगन निष्ठां और समर्पण के बाद वहां भी प्रथम स्थान पाकर भारतीय सेना में अधिकारी नियुक्त हुआ ।
लगभग दो वर्ष के उपरांत इलाके के प्रतिष्टित संपन्न जमींदार पंडित दिन दयाल शुक्ल ने अपनी एकलौती पुत्री रम्या का विवाह प्रखर से बड़ी धूम धाम से किया रम्या भी बहुत खुश थी की उसने अपना सपनों का सहज़ादा पा लिया रम्या विदा होकर अपने गाँव मथौली से शंकरपुर पाठकौली आयी पंडित जी की खुशियों में पूरा क्षेत्र समल्लित था पूरा क्षेत्र पंडित प्रभाकर पाठक का आभारी कृतज्ञ था की उनके बेटे प्रखर ने पुरे क्षेत्र की प्रतिष्ठा को चार चाँद लगाया और गाँव क्षेत्र जवार जिला का मान बढ़ाया।।
विवाह के बाद प्रथम मिलन यानि सुहागरात प्रखर बड़े अरमानों को सजोये सज धज कर नयी नवेली दुल्हन के पास गया जहाँ रम्या सुहाग के सेज पर उसका इंतज़ार कर रही थी प्रखर अपनी नई नवेली दुल्हन के कक्ष में दाखिल हुआ और कमरे का दरवाजा बंद कर अपनी इंतज़ार करती दुल्हन की सेज पर पहुंचा और अरमानों के दिल उमंग के हाथ राम्या की तरफ बढ़ाते हुए प्रथम मिलान की निशानी के तौर पर हिरे का बेशकीमती हार गले में पहनकर
विस्तर पर बैठ कर बातें करते करते राम्या को अपनी वाहो के आगोश में समेटना चाहा तभी बड़ी भयंकर डरावनी आवाजे कमरे में गूंजने लगी जो प्रखर को तो सुनाई दे रही थी मगर राम्या निश्चिन्त थी उसे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था एकाएक।कमरे में भयानक आवाज़ गूंजी खबरदार
राम्या मेरी धरोहर है उसे हाथ मत
लगाना नहीं तो अच्छा नहीं होगा प्रखर आधुनिक वैग्यानिक भारतीय सेना का महत्व्पूर्ण अधिकारी था उसे भुत प्रेत आदि तकिया नुकुसी बातों पर बिल्कुल भरोसा नहीं था अतः उसने बिना किसी खौफ के राम्या को पुनः अपने आगोश में भरना शुरू किया राम्या ना तो चेतन अवस्था में थी ना ही अचेतन पुनः कमरे में भयानक आवाजो का दौर शुरू हो गया प्रखर ने सोचा हो सकता है बाहर कोई बात हो उसने कमरा खोल कर बाहर का जायजा लिया बाहर सभी लोग निश्चिन्त सो रहे थे और किसी प्रकार का कोई शोर शराबा नहीं था उसे लगा की शादी व्याह में बाजे गाजे की आवाजें शोर शराबा थकान के कारण उसके कानो में भयंकर बन गूंज रहे है तो इस कारण अपने जीवन का खूबसूरत लम्हा क्यों गवाएं उसने पुनः दरवाजा बंद किया और राम्या से आलिंगन बद्ध हो गया इस बार दैत्य कार परछाई कमरे में आयी और बड़ी वीभत्स ठहाके लगाता बोला दुष्ट इंसान मैंने तुझको कितनी बार आगाह किया मगर तू है की मानता ही नहीं अब देख उसके इतना कहते ही राम्या विस्तर से हवा में उड़ती उस विकट विकराल परछाई के हाथों में चली गयी और पूरे कमरे में खून को वारिस होने लगी हट्टी के मानवीय अंगो की वारिस होने लगी और प्रखर को समझ नहीं आ रहा था की यह क्या माजरा है वह् अब भी निर्भय और निर्भीक
हो उस परछाई से रम्या को मुक्त कराने का प्रयास करता रहा एकाएक उसे महसूस हुआ की उसे उस परछाई ने उसे कमरे से बाहर फेंक दिया जहाँ वह् अचेत होकर पड़ा रहा जब सुबह हुआ और घर वाले जगे और देखा की प्रखर अचेत अवस्था में बाहर पड़ा है तो उनकी भी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था की आखिर माजरा क्या है? घर वालों की बड़ी मसक्कत के बाद प्रखर को होश आया होश में आने के बाद जब घर वालों ने पूछा की बहू कहाँ है मगर प्रखर को क़ोई घटना याद ही नहीं थी फिर पंडित प्रभाकर पाठक ने पत्मी प्रियंबदा से कहा की बहु का कमरा खोलवाकर बहु रम्या से ही वास्तविकता की जानकारी करो प्रियंबद ने बहु का कमरा खुलवाने की बहुत कोशिश की मगर दरवाजा नहीं खुला फिर प्रियंबदा ने पति प्रभाकर पाठक से कहा उन्होंने भी दरवाजा खुलवाने की बहुत कोशिश की मगर दरवाज़ा नहीं खुला घर के इज़्ज़त की बात थी अतः गाँव में यह बात किसी को बता न चले इसकी सबको फ़िक्र थी पंडित प्रभाकर पाठक ने सबसे पहले अपने समधी पंडित दिनडायल शुक्ल को बुलाकर इस घटना सत्यता की जानकारी देने का निश्चय किया वे स्वयं जाकर वास्तु स्थिति से समधी पंडित दीनदयाल शुक्ल जी को अवगत कराया शुक्ल जी को यह जानकार बड़ा आश्चर्य हुआ क्योकि बचपन से पच्चीस वर्ष तक रम्या बेटी घर रही है मगर कभी कोइ घटना नहीं हुई शुक्ल जी स्वयं समधी पंडित प्रभाकर पाठक के साथ चल पड़े पंडित प्रभाकर पाठक के गाँव शंकर पुर पाठकौली पहुंचकर जो नज़ारा देखा उनके तो होश ही उड़ गए रम्या के कमरे का दरवाजा बंद था और कमरे से अजीब सी डरावनी आवाजे आ रही थी पंडित दीन दयाल शुक्ल जी बड़ी चिंता में पड़ गए उन्होंने अपने समधी प्रभाकर पाठक से परामर्श करके समस्या के निवारण के लिये दोनों समाधियों ने किसी विद्वान् तांत्रिक से परामर्श लेने और समस्य के निवारण हेतुन प्रयास करने का निवेदन करने पर दोनों समधी एकमत हुयेव साथ विद्वान एवम् तंत्र विद्या के जानकार पंडित प्रद्युम्न दुबे के पास गए और उनसे घर चल कर समस्या के निवारण हेतु निवेदन किया पंडित प्रद्युम्न दुबे ने कहा जाने से कोइ फायदा नहीं है क्योकि मैंने आप लोंगो के आते ही समस्या का अंदाज़ा लगा लिया है रम्या के जीवन में जो आश्चर्य जनक घटना घट रही है उसके विषय में वह् अनजान है इस घटना का सम्बन्ध रम्या के पिछले जन्म से है जब तक रम्या अपने पिछले जन्म के वातावरण और परिस्थिति में नहीं जाती तब तक इस समस्या का समाधान सर्वथा असंभव है पिछले जन्म की किस परिवेश परिस्थिति से वर्तमान की घटना का सम्बन्ध है यह बाता पाना असंभव है। अतः आप दोनों जाए और ईश्वर से रम्या बिटिया की कुशलता के लिये प्रार्थना करें वहीँ रास्ता दिखा सकते है पंडित प्रभाकर पाठक एवं पंडित दीनदयाल शुक्ल जी निराश होकर लौट आए।कोई बिकल्प या समस्या सामाधान का रास्ता निकलता न देख दोनों निराश होकर ईश्वर की अद्भुत लीला को ईश्वर के हवाले छोड़ दिया कर भी क्या सकते थे ?दोनों ने नियति का निर्धारित खेल मानकर नियति और नियंता के फैसले का इंतज़ार कारने लगे धीरे धोरे यह बात शंकर पुर पटखौली में घर घर पूरे क्षेत्र जनपद प्रदेश में यह विषय कौतुहल और चर्चा का विषय बन गया हज़ारो लोग शंकतपुर पटखौली आते और रम्या के बंद कमरे तक जाते और कमरे से आती अज़ीब सी आवाजो को सुनते तरह की चर्चा करते और चले जाते पंडित प्रभाकर पाठक के परिवार का जीवन नर्क बन गया आये दिन हज़ारों लोंगो का ताँता सिर्फ रम्या के बंद कमरे तक जाती कमरे से आती भयंकर अजीब सी आवाजों को सुनाती चर्चा करते चले जाते इस बीच प्रखर भी बदहवास सा रहने लगा उसको यह समझ में नहीं आ रहा था की वह् क्या करे क्या ना करे इस बीच अजीब घटना शंकर पुर पाठखौलि में घटने लगी लोगों के जानवर गाय भैंस दस बारह साल के बच्चे गायब होने लगे गाँव और आस पास के इलाको में कोहराम मच गया निकट थाने की पुलिस के लिए नया सर दर्द आये दिन गायब होते जानवर और बच्चों के विषय में पता करना एक दिन में सिर्फ कोई एक जानवर या बच्चा गायब होता था इससे ज्यादा चिंता लोंगो की यह थी की जब से जानवर बच्चों का गायब होने का सिलसिला शुरू हुआ रम्या के कमरे से ताजे खून की धार निकलती जैसे किसी को निर्मायता पूर्वक काटा जाता हो इस सम्बन्ध में निकटवर्ती थाने को सुचना दी गयी थाने की पुलिस गायब हो रहे जानवरो बच्चों और रम्या के कमरे से निकल रहे खूंन की धार को एक साथ जोड़ते हुए रम्या का कमरा खुलवाने दरवाजा तोड़वाने के सभी वैज्ञानिक आधुनिक उप्लब्ध प्रयास किया मगर सफल नहीं हुई उलटेजो भी व्यक्ति दरवाजे को खोलने की प्रक्रिया में सम्मिल्लित होता उसके पूरे बदन पर घाव बन जाते जिनसे खून का रिसाव होता और उनके शारीर से सड़े मांस की बदबू आने लगाती अब पुलिस रम्या के कमरे तक जाने में हिचकिचाने क्या लगी उसने गाँव वालों को भी हिदायत दे दी की वे भी कदाचित भूल कर रम्या के कमरे तक न जाए पंडित प्रभाकर पाठक के परिवार वालों को पुलिस के इस फरमान से काफी राहत हुई अब पंडित जी के घर तमाशबीनों का जाना बंद हो गया लेकिन जानवर बच्चों का गायब होना और रम्या के कमरे से खून का आना नियमित की घटना थी
जिला प्रसाशन काफी गंभीरता बरत रहा था लेकिन बेबस लाचार किसी भी नतीज़े पर नहीं पहुच पा रहा था धीरे धीरे रम्या का कमरा बंद हुए
पंद्रह दिन हो चुके थे ।सोलहवे दिन अचानक चमत्कार की तरह रम्या के कमरे का दरवाज़ा खुला पंडित प्रभाकर पाठक और पत्नी प्रियंबदा और प्रखर एक साथ कमरे में दाखिल हुए देखा रम्या वैसी ही सुहाग पर बैठी थी जैसे वह् सज धज कर पंद्रह दिन पहले गयी थी जैसे ही उसने अपने कमरे में ससुर सास और पति प्रखर को देखा झट पलंग से उठ।कर सबका पैर छू कर आशिर्बाद लिया और सासु माँ की तरफ मुखातिब हो बोली अम्मा जी देखिये ना मैं कितने दिन से इनका पति की और इशारा करते हुये कहा इंतज़ार कर रही हूँ ये आये ही नहीं सासु ससुर भौचक्का रह गए समझ में नहीं आ रहा था माज़रा क्या है?
प्रखर को भी कुछ समझ में नही आ रहा था की क्या और क्यों बेवजह विचित्र अद्भुत घटनाएं उसके जीवन का हिस्सा बन रही है उसका इस जन्म और पूर्व जन्म का पाप क्या है वह नास्तिक तो नहीं था मगर किसी भूत प्रेत आदि में विश्वाश नहीं था उसका मानना था की आत्मा ईश्वर का ही स्वरुप ही है ईश्वर का स्वरुप किसी स्वरुप में विनाशकारी वीभत्स कैसे हो सकती है मगर सच्चाई का सामना वह स्वयं कर रहा था जिससे आत्मा परमात्मा के जीवन दर्शन से उसका विश्वाश डगमगाने लगा
देखने से नही लग रहा था की रम्या के कमरे में कोई असामान्य घटना घटी हो उसका कमरा ठीक जैसा था वैसा ही आज भी लग रहा था पंडित प्रभाकर पाठक प्रियंबदा प्रखर आश्चर्य और असमंजस से खिन्न और परेशान थे। उनकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था क्या करे क्या न करे बहु बार बार प्रखर से एक ही बात कह रही थी की मैं आपका इंतज़ार करती रही आप आये क्यों नहीं मुझमे क्या कमी है ? प्रखर प्रियंबदा ने बहु राम्या की हर तरह से मेडिकल चेक अप करने का निश्चय किया दानापुर मिलिट्री हॉस्पिटल और पटना मेडिकल कालेज में हर स्तर पर गहन मेडिकल जांच कराई गयी उसकी जांच रिपोर्ट पर डॉक्टर्स का एक पैनल गठित किया गया जिसने सभी संदेह का निवारण करते निर्णय दिया की रम्या को किसी प्रकार की कोई बीमारी ना तो मानसिक ना ही शारीरिक किसी प्रकार की कोईं बिमारी नहीं है।रम्या विल्कुल सामान्य व्यवहार और रहन सहन में थी उसे याद भी नहीं था की उसके आने के बाद पंद्रह दिनों तक क्या हंगामा बरपा ।धीरे धीरे पंद्रह दिन की अवधि बीत गयी सबने पूर्व की घटना को एक बुरा सपना हादसा मानकर भुलाना ही उचित समझ।सभी लोग रम्या से समान्य व्यवहार ही कर रहे थे जैसे कोई बात ही नहीं मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था धीरे धीरे रम्या के मासिक धर्म की तिथि आ गयी और जिस दिन वहः रजस्वला हुई उसी दिन से उसका कमरा पूर्व की भाँती बंद हो गया और पहले की भाँती रम्या के कमरे से डरावनी आवाजे ताजे खून की बहती धार गाँव और पुरे क्षेत्र से जानवरों इंसानो का गायब होने का सिलसिला बादस्तूर जारी रहा पुलिस रम्या के कमरे से खून की धार का नियमित आना और लोंगो जानवरों का निरंतर गायब होने की कड़ी को साथ अवश्य जोड़ रही थी मगर किसी सबूत के अभाव में बेवस लाचार थी कुछ करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी धीरे धीरे गांव और क्षेत्र के लोंगो के सब्र का बाँध टूट गया और पंडित प्रभाकर पाठक के परिवार के प्रति आस्था निष्ठा का सब्र जबाब दे गया सभी एक पंडित प्रभाकर के दरवाजे पर एकत्र होकर उनसे राम्या को घर से बाहर हटाने के लिये दबाव डालना शुरू कर दिया पंडित जी निरुत्तर कुछ भी कहने में असमर्थ थे प्रखर पिता की लाचारी पुत्र मोह देखकर अपने सेना के शीर्ष अधिकारियों को वस्तु स्थिति से अवगत कराया सेना के अधिकारियों द्वारा प्रखर को सलाह दी गयी की वह रम्या को साथ लेकर सीधे पूना के सैनिक अस्पताल आये प्रखर अब रम्या के कमरे का दरवाजा खुलने का इंतज़ार करने लगा रम्या के रजस्वला के ठीक पंद्रह दिन बाद कमरे का दरवाजा खुला और वह् विल्कुल सामान्य या यूं कहा जाय जैसे कोई बात हुई नहीं एक बात और परेशान करने वाली यह थी की पंद्रह दिनों में उसे भूख या जीवन की अन्य आवश्यकता महसूस नहीं होती यदि बहोती है तो उसकी संसाधन कहाँ से उपलब्ध होते होंगे ?क्योकि कमरे में कही से भी बाहर आने जाने का रास्ता नहीं है वैसे भी गाँव में नई नवेली दुल्हनों का कमरा घर का सबसे सुरक्षित कमरा होता है।प्रखर बिना बिलम्ब किये पूना सैनिक अस्पताल ले जाने की तयारी पूरी करके एक दिन बाद ही वह् पून के लिये माँ प्रियमब्दा और पिता प्रभाकर के साथ गाँव के घर में ताला बंद करके निकल गया दो दिन बाद वहः पूना पहुँच गया चूँकि यह प्रकरण कमांड स्तर तक मालूम था अतः अस्पताल प्रशासन ने पहले से ही व्यवस्था कर राखी थी पहुंचते ही रम्या को अस्पताल में दाखिल कराया गया उसे विशिष्ठ वार्ड में निगरानी हेतु रखा गया छोटी से छोटी बड़ी से बड़ी जाँच कराई गई मगर रम्या को किसी प्रकार की क़ोई बीमारी नहीं निकली डॉक्टर्स का एक राष्ट्रिय स्तर का पैनल पूरे प्रकरण पर माथा पच्ची कर ही रहा था की लगभग बारह तेरह दिन बाद रम्या के मासिक धर्म की तिथि आई और राजश्वला होते ही पूना का सैनिक कमांड हॉस्पिटल जिसमे रम्या भर्ती थी कौतुहल का स्थान और लोंगो के भीड़ का केंद्र बन गया एकाएक रम्या का वह कमरा जिसमे रम्या को अस्पताल प्रशासन ने भर्ती कर रखा था अपने आप बंद हो गया कमरे के अंदर से अजीब सी आवाजे आने लगी और कमरे से खून की धार बहने लगी चुकी मामला सेना का था जहां लोंगो। को मौत से भी निर्भीक रहने की ट्रेनिंग दी जाती है घराहट चिंता अवश्य थी। मगर भय नहीं था यहाँ भी शहर से पशुओ और मनुष्यो का एकाएक गायब होने का सिलसिला शुरू हो गया मगर यहाँ ख़ास बात यह थी की कंटोमेन्ट इलाके में ऐसी वारदात नहीं होती थी।अस्पताल प्रशासन ने चौबीसो घंटे निगरानी की व्यवस्था मगर कोई फायदा नहीं हुआ।सभी डॉक्टर्स इस अति विशिष्ठ केस पर अपनी योग्यता अनुभव का प्रयोग कर रहे थे मगर सब बेकार अब प्रखर के पास भी कोई विकल्प नहीं बचा था की रम्या को उसके पिता के पास भेज दे उसने रम्या के पिता श्री शुक्ल जी को बुलाने के लिये टेलीग्राम भेजा इधर मिलिट्री के कमांड हॉस्पिटल में ही नहीं लगभग सारे देश में इस विशेष घटना के चर्चे थे चूँकि उस वक्त मिडिया इतना तेज नहीं था कानो कान पूरा प्रकरण पुरे देश में चर्चा का विषय बन गया धीरे धीरे पंद्रह दिन। समाप्त हुए रम्या एकदम सामान्य व्यवहार से अपने बेड पर सुरक्षित थी रम्या के पिता सीधे सेना के अस्पताल पहुंचे वहाँ पहुँचते ही पंडित प्रभाकर पाठक आग बबूला होकर बोले आपको मेरा ही बेटा मिला था जीते जी फांसी पर लटकाने के लिये शुक्ल जी बेटी के बाप थे अतः कुछ भी बोलना उचित नहीं समझा हलाकि पाठक जी और शुक्ला जी के रसूख मे जमीन आसमान का अंतर था पाठक जी ने कहा जब से रम्या मेरे घर आयी है हम लोंगो की जिंदगी जीते जी नर्क हो गयी है आच्छी खासी प्रतिष्ठा समाप्त हो गयी है गांव घर छुटने के कागार पर है हम पर दया कीजिये आप अपनी बेटी अपने घर ले जाइए दोनों परिवारों के बीच वातावरण कटुता की पराकाष्ठा को पार कर चुका था दोनों परिवारों ने सेना अस्पताल को ही कुरुक्षेत्र का मैदान बना लिया था ।प्रखर रम्या कुछ भी बोल सकने की स्थिति में ही नहीं थे दोनों परिवारों में तकरार की खबर अस्पताल में फ़ैल गयी अस्पताल के प्रमुक डॉ रहेजा वहां पहुंचे और उन्होंने पाठक जी से कहा महोदय मैंने इस अजीबोगरीब केस के विषय में बात अपने मित्र जो सिलटे अमेरिका में डॉक्टर है से बात की उन्होंने हमसे इस अजीब केस को स्वयं देखने को कहा है और वे आ रहे है अतः आप लोग उनके आने तक एवम् रम्या के जीवन में घटती घटनाओ को एक बार और होने दो केवल प्रयोगात्मक तौर पर यह मेरा निवेदन है।शुक्ला जी के पास तो कोई विकल्प नहीं था पाठक जी ने भी दबे मन से चुप्पी साध ली सिलटे से डॉक्टर मॉरिशन एक विशेषज्ञ दल के साथ भारत पहुँचे आते ही उन्होंने सेना हॉस्पिटल के उस पैनल से बात की जिसकी निगरानी में पंद्रह दिनों तक रम्या वार्ड में वंद थी। फिर उन्होंने सभी जांच एवम् चिकित्सा जो दी जा चुकी थी का स्वयं बड़ी गंभीरता से अपने पूरे दल के साथ अध्य्यन किया मगर कोई क्लू नहीं मिल रहा था।अतः डा मॉरिशन के नेतृत्व में पूरा जांच दल इस बात से सहमत हुआ की अब प्रत्यक्ष घटित होने वाली घटना को देखा जाय।वह समय भी नजदीक आ गया जो वक्त रम्या के साथ घटित होने वाली अजीबो गरीब घटनाओं का दौर शुरू होता रम्या पुनः कमरे में बंद हो गयी और उसके कमरे से अजीबो गरीब आवाजे आने लगी एवम् खून की धार कमरे से बहने लगी डॉ मोरिसन ने कमरे से आती आवाजो को रिकार्ड करने की कोशिश करते रहे मगर कोई आवाज़ रिकार्ड नहीं हुआ कमरे से बहते खून का लैबोरेट्री टेस्ट कराया परन्तु टेस्ट में खून के कोई लक्षण नहीं मिलते डॉ मोरिसन की पूरी टीम ने पूरी योग्यता सिद्दत से सभी संभव प्रयास किया मगर नतीजा शून्य निकाला पंद्रह दिन बीत गए मगर डॉ मोरिसन की पूरी टीम को कोई बात समझ में नहीं आयी साथ ही साथ और भी कन्फ्यूज होकर् उलझ कर परेशान हो गयी अतंत हार मानकर लौट गयी ।अब रम्या के पिता शुक्ल जी हताश निराश प्रभाकर पाठक से बोले पाठक जी मैं अपनी पुत्री को अपने साथ ले जा रहा हूँ सिर्फ यह निवेदन करता हूँ की आप आपकी पत्नी और प्रखर मेरे साथ मेरे गाँव तक चले ताकि मेरे गाँव वालों को सच्चाई आप लोग बता सकें और मेरी बेटी चैन से मर सके पाठक जी उनकी पत्नी को इस बात में कोई आपत्ति नहीं हुई जल्दी जल्दी सेना अस्पताल की औचरिकता पूर्ण करके शुक्ल जी समधी प्रभाकर पाठक और दामाद प्रखर समधिनि प्रियंबदा के साथ घर चलने को निकल पड़े ज्यो ही शहर से बाहर निकले भगवान कृष्ण एक बहुत प्राचीन मंदिर पर भगवान् का दर्शन करने के लिये रुके उसी समय मंदिर के पुजारी ने रम्या को देखा और शुक्ल जी से बोले आप बेटी रम्या को लेकर गाँव क्यों जा रहे है इसकी मुक्ति तो बस्तर के जंगल के वनदेवी के यहाँ होनी है आप सभी इसे लेकर तुरंत जाए कही देर ना हो जाए शुक्ल जी ने स्वामी ब्रह्मदत्त का आशिर्बाद लिया और पूर्व निधारित टिकट को बिना वापस किये बस्तर की यात्रा को निकल पड़े सभी लोग साथ थे दो दिन की यात्रा के बाद बस्तर पहुंचे चूँकि सभी लोग रिजर्व टैक्सी से बस्तर पहुंचे वहां एक दिन विश्राम करने के उपरान्त दूसरे दिन उसी टैक्सी से वस्तर् के भीषण जंगलो की तरफ चल पड़े उस समय बस्तर पिछड़ा आदि वासी क्षेत्र था लगभग चार घंटे की यात्रा के बाद सभी बस्तर जंगल के मध्य स्थित वन देवी के मंदिर पहुंचे मंदिर से कुछ दुरी पर केंद्रीय रिजर्ब बल की एक बटालियन तैनात थी और मध्य प्रदेश पुलिस का पोलिस स्टेशन भी था पंडित प्रभाकर पाठक और प्रियम्बदा प्रखर शुक्ला जी ने मंदिर में पूजा अर्चना की लगभग एक घंटे मंदिर में पूजा अर्चना करके ज्यो ही शुक्ल जी पाठक जी प्रियंबदा प्रखर और रम्या मंदिर से बाहर निकले ठीक उसी वक्त मंदिर से कूछ दूर स्थित पुलिस थाने के सामने दो शेर एक दूसरे को दौड़ते हुये आ धमके पुलिस दल और केंद्रीय रिजर्व बल जवानो में अफरा तफरी मच गयी चुकी वह् इलाका अक्सर सुन सानं रहता किसी को जाने की इज़ाज़त नहीं रहती बेहद ख़ास परिस्थिति में उस रस्ते पर जाने की अनुमति मिलती चूँकि प्रखर भारतीय सेना का अधिकारी था अतः उसे जाने की अनुमति पूजा पाठ के लिये मिल गयी थी शोर शराबा होने पर प्रखर सबको एक साथ एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चलने के लिये एक दूसरे का हाथ खुद पकड़ लिया बाकी सदस्यों ने भी मानव श्रंखला की तरह आपस में एक
दूसरे से जुड़ गए और बचाव की मुद्रा अख्तियार कर ली लगभग सौ मीटर आगे स्थित थाने के जवानो और केंद्रीय रिजर्व पुलिस के जवानों ने आपस में लड़ते और खुद की और बढ़ते शेरो से बचाव के लिये अपनी अपनी बंदूके उठा ली क्योंकि जंगल में भागना शेर से भी कठिन चुनौती थी फिर फायर करना शुरू किया शेर कभी जंगल में पेड़ की ओट में चले जाते और कभी दिखने लगते बंदूको की फायर की आवाज़ से प्रखर तो नहीं मगर प्रखर के पिता रम्या प्रियंबदा और शुक्ल जी दहसत में किसी अनहोनी की आशंका में भयाक्रांत थे उधर रुक रुक कर फायर होता जा रहा था इसी बीच बहुत जोर का अंधड़ तेज रफ़्तार से आया सब एक दूसरे से हाथ छुड़ाते भागने की कोशिश करने लगे बाकि सब तो बन देवी के मंदिर में पहुंच गए मगर रम्या पता नहीं कैसे घनघोर जंगल में लगभग डेढ से दो किलोमीटर अंदर चली गयी वह् भाग ही रही थी की थी उसके कानो में तेज आवाज़ आई कहाँ भाग रही हो मैं तुम्हारा वर्षो से इंतज़ार कर रहा हूँ रम्या एकाएक रुकी और उसे लगा की शायद उसके पीछे भाग रहे उसके पिता सास या पति या ससुर की आवाज़ हो मगर खड़ा होकर देखा तो चारो तरफ निर्जन सुन सान प्रखर उसके पिता जी माता जी और उसके पिता जी का दूर दूर तक कही कोई नामोनिशान नहीं था फिर वही कड़कती आवाज़ बिराने को तोड़ती गूंजी घबड़ाओ नहीं राजकुमारी पूषा यहाँ तुम विल्कुल सुरक्षित हो मै पिछले तीन सौ वर्षो से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ जब से तुमने मेरे सीने में मेरी ही तीर से वार किया उस दिन से आज तक मेरे शारीर से खून का रिसाव हो रहा है वह् शारीर तो तुम्हारे मारे तीर से छुट गया मैं जन्म दर जन्म लेता गया लेकिन दो चीजे नहीं भूली एक तो तुम्हारी मारी तीर का घाव और तुमसे मेरा प्यार राजकुमारी पुषा कुछ याद आया तुमको ?राम्या ने चिल्लाते हुए कहा क्यों परेशान कर रहे हो मुझे कुछ भी याद नहीं आया फिर वही आवाज़ गुर्राई जब तक तुम मेरे प्यार को स्वीकार नहीं करती तब तक तुम्हे कभी चैन नहीं मिल सकता है ।रम्या ने कहा कौन हो तुम क्यों मेरे पीछे पड़े हो सामने क्यों नहीं आते ?पूषा मैं सामने तब तक नहीं आ सकता जब तक तुम मेरे प्यार को स्वीकार नहीं कर लेती पूषा तुम ओरछा राजा की पुत्री थीं तुम अपने पिता के साथ शिकार खेलने और सीखने की जिद्द की और पुत्री हठ में पिता ने तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार कर तुम्हे शिकार पर साथ लेकर आये उनके साथ सेना की टुकड़ी भी थी तुम शिकार सिखने और प्रवीणता हासिल करने की जिद्द पिता से करती और पिता पुत्री प्रेम में शिकार की अवधि एक एक दिन बढ़ाते जाते इसी प्रकार एक एक दिन के चक्कर में महीनो बीत गए इस दौरान तुम्हारे राजसी गुरुर ने ना जाने कितने ही निरीह जानवरों का वध कर डाला जिस दिन तुम शिकार के प्रशिक्षण से लौट रही थी तभी एक मादा शीरनी का शिकार करने हेतु उसका पिछा करते करते इन्ही जंगलो में इतनी दूर चली आई जिसका तुम्हे अंदाजा ही नहीं था तुम्हारे पिता ओरछा नरेश को यक़ीन था की तुम निपुण शिकारी हो एवँम अस्त्र शत्र की पारंगत हो अतः डरने की कोई बात नहीं वह् तुम्हारा जंगल के बाहर इंतज़ार करते रहे इसी बीच हमारे कुमरा जन जाती के लोग वहा पहुँच गए और तुम्हे वध कर तुम्हारा मांस खाने की नियत से बंधक बनाकर ले आये पीछे पीछे तुम्हारा स्वामी भक्त घोडा भी आ गया जब मेरे साथी तुम्हे लेकर आये और वध करने ही वाले थे
लेकिन जब मैंने तुम्हे देखा तो मुझे तुम पर दया आ गयी और मैने अपने साथियो को समझाया मनाया और तुम्हे गोद में उठाकर इसी पेड़ पर बने अपने झोपड़ी में लाया चूँकि हम लोग कोई वस्त्र नहीं पहनते अतः राजकुमारी भय और लाज से आपका चेहरा लाल हो गया था और आप मुझ जैसे बेरहम आदि मानव को भी प्रेम के आमन्त्रण को विवश कर दिया मैंने राज कुमारी तुम्हारे वस्त्र फाड़ डाले देखा की तुम उस वक्त रजस्वला थी मगर हमारे समुदाय का सिर्फ एक ही नियम है सिर्फ जीना मैंने तुम्हारे साथ जबरजस्ती वासना तृप्त करनी चाही तभी तूने मेरी पीठ पर लगे तरकस से एक जगरीली तीर मुझे प्यार का धोखा देकर निकाला मेरे सीने में भोंक दिया और तुम पेड़ से नीचे अपने घोड़े पर कूद कर भाग गयी राजकुमारी पूषा याद आया कुछ? तभी राजकारी पूषा को सारी घटना याद आ गयी और वह पेड़ से लिपट कर अपना प्यार इज़हार करने लगी तभी लगभग बाइस तेईस फुट का लम्बा नौजवान पेड़ से निकला जिसकी छाती में पूषा ने तीर घोप दिया था पूषा डील डौल में उस बिशालकाय नौजवान के सामने बच्ची लग रही थी पुनः उसने पूषा को गोद में उठाया और अपने उसी अंदाज़ में पेड़ की उसी डाली पर ले गया जहाँ से पूषा उसके सीने में तीर भोंक कर भागी थी और उसने अपना तरकस तीर पूषा को दे दिया कहा पूषा अबकी बार धोखे से नहीं मैं तुम्हे खुद को एक तीर और मारने के लिये अनुरोध करता हूँ पूषा ने तीर और तरकश फेक दिया और फूंट फूंट कर रोने लगी और लिपट कर बोली मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ ।इधर आपस में लड़ते शेर भी जाने कहाँ चले गए पता नहीं चला केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल एवम् मध्य प्रदेश पुलिश ने फायरिंग बंद कर दिया अंधड़ की तेज हवा भी बंद हो गयी तब पंडित प्रभाकर पाठक प्रियंबदा
शुक्ला जी रम्या को खोजने लगे शुक्ला जी ने खीज कर् कहा क्यों आप लोग उसे खोज रहे है चली गयी ठीक ही हुआ आप सभी सकट से मुक्त हुये अब किसी को जलालत नहीं झेलनी होगी मुँह नही छुपाना पड़ेगा अच्छा ही हुआ हमे भी अब चैन से मरना नसीब होगा तभी पंडित प्रभाकर ने कहा शुक्ल जी आप कैसी बात कर रहे है बेटा प्रखर कोई जुगत लगा जिससे रम्या को हम लोग खोज सके तभी प्रखर ने कहा हम लोग पोलिस स्टेशन चलते है उनको जंगल के बारे में पता है सभी पोलिस स्टेशन पहुंचे उन लोंगों ने पोलिस और केंद्रीय रिजर्व बल से रम्या के एकाएक गायब होने की व्यथा बताई तुरंत ही पोलिस और केंद्रीय रिजर्व बल के जवान और पंडित प्रभाकर के साथ रम्या को खोजने चल दिये करीब तीन घण्टे की मसक्कत के बाद सभी वहाँ पहुंचे जहां रम्या पेड़ से लिपटी हुई थी और उसके आँखों से अश्रु धार बह रही थी प्रखर सबसे पहले रम्या के पास गया बोला तुम इस भयंकर जंगल मे जीवित सुरक्षित हो ईश्वर का बड़ी कृपा है रम्या ने प्रखर का हाथ झटकते हुए कहा मैं रम्या नही पूषा हूँ मै ओरछा के राजा की बेटी हूँ मेरा पति यह कुमरा है तुम लोग कौन हो तभी आकाश में बिजली कड़कने जैसी आवाज आई और रम्या बेहोश होकर गिर पड़ी। जोर जोर से आवाज आने लगी पुषा तुमने मेरे प्यार को मान दिया सम्मान दिया अब मेरी आत्मा तुम्हारे प्यार की आत्मा से मिल गयी है अब तुम सदा निडर बेखौफ रहो वहां उपस्तित सबने आवाज़ सुनी पर कौन कहाँ से बोल रहा है पता नही चला सब लोग पुनः पुलिस बल और केंद्रीय सुरक्षा बल का धन्यबाद करके अपने घर को प्रस्थान कर दिया दो दिन की यात्र के बाद लोग अपने गांव पहुंचे वहां जश्न का माहौल था क्योंकि जो लोग या पशु बच्चे गायब थे सब यथावत मौजूद थे पंडित प्रभाकर और प्रखर को देख गांव के साथ सारे क्षेत्र के लोग माफी मांगी और पुनः परिवार की गरिमा रम्या बहु के साथ लौट आयी।।

कहानीकार
नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर




जन्मों के प्यार का इंतज़ार

जन्म दिन मुबारख हो बेटा रिया आज तुम्हारा दसवीं का परिणाम भी आने वाला है आज का दिन तुम्हारे जीवन के लिये बहुत महत्व्पूर्ण है आज का दिन तुम्हारी ढेर सारी खुशियो और जीवन कि दिशा दृष्टि के लिये बहुत महत्व पूर्ण है। तो बेटा जल्दी से तैयार हो जाओ सबसे पहले हम लोग मंदिर जाएंगे उसके बाद महेश सिंह ने पत्नी मनोरमा से कहा आज रिया का जन्म दिन है और हर साल इस साल से कुछ ख़ास हम सभी मंदिर जाएंगे आप और मिलिंद जल्दी से तैयार हो जाओ मैंने रिया से तैयार होने के लिये बोल दिया है।महेश सिंह मनोरमा मिलिंद रिया हम दो हमारे दो कुल चार सदस्यों का परिवार था महेश मनोरमा दोनों बहुत खुश थे एक तो रिया के पेपर बहुत अच्छे हुए थे दूसरे कुल पुरोहित ने भी बताया था कि रिया बिटिया कि जन्म में बृहस्पति प्रवल है अतः शिक्षा के क्षेत्र में सदैव नाम और ख्याति अर्जित करेगी महेश, मनोरमा बेटे मिलिंद बेटी रिया को लेकर शहर के सारे मंदिरों पर गए आशिर्बाद लिया लगभग दिन के एक बजे घर लौटे देखा कि रिया कि स्कूल टीचर मैडम लियोनी पहले से ही पड़ोसीकृपा शंकर मिश्र के घर बैठी थी ।महेश मनोरमा को बहुत आश्चर्य हुआ कि पड़ोसी कृपा जी कि कोइ संतान तो रिया के साथ पढ़ती नहीं फिर रिया कि स्कूल टीचर वहाँ क्यों क्या ख़ास बात हो सकती है। इसी उधेड़ बन में महेश और मनोरमा अपने घर का दरवाज़ा खोल ही रहे थे कि अचानक कृपा शंकर मिश्र और मैडम लियोनी आते ही एक साथ बोल उठे बधाई हो रिया बिटिया ने दसवीं कि परीक्षा में पूरे जनपद में प्रधम स्थान प्राप्त किया है ।कृपा शंकर जी ने बड़े आत्म अभिमान से कहा कि हमे आपका पड़ोसी होने पर गर्व है रिया बिटिया ने सारे मोहल्ले और ख़ास कर सभी पड़ोसियों का सर गर्व से ऊँचा कर दिया ।मनोरमा और रिया ने बड़े बिनम्र भाव से कहा कि रिया कि मेहनत आप सभी लोगो कि शुभकामना और आशिर्बाद से बिटिया ने सफलता हासिल किया है। घर का दरवाजा खोलते हुए मनोरमा ने मैडम लियोनी और कृपा शंकर जी से अंदर आने का आग्रह किया सभी लोग महेश सिंह जी के ड्राइंग रूम में दाखिल हुए और बैठे तब रिया ने सबका पैर छूकर आशिर्बाद लिया तब तक मिलिंद सबके लिये मिठाई लेकर आया सबने रिया कि शानदार सफलता कि मिठाई खाई तब मैडम लियोनी ने बोलना शुरू किया महेश जी चुकी रिया ने इतनी शानदार सफलता मेरे विद्यालय से प्राप्त कि है अतःमै चाहती हूँ कि रिया आगे भी हमारे स्कूल की छात्रा बनी रहे महेश और मनोरमा को क़ोई आपत्ति नहीं हुई वहां बैठे कृपा शंकर जी ने भी सहमति जताई मैडम लियोनी ने फिर बोलना शुरू किया कि जिन स्टूडेंट ने स्कूल प्रतिष्ठा बड़ाई है उनके पेरेंट्स को हम लोग सम्मानित करना चाहते है अतः आप मेरा अनुरोध निमंत्रण स्वीकार करे फिर मैडम लियोनी ने रिया को अपने पास बुलाकर कहा वेल डन माय स्वीट बेबी गॉड ब्लेस् यू और जाने कि इज़ाज़त मागने लगी लियोनी के जाने के बाद घर में जश्न का माहौल हो गया मोहल्ले में सभी को मालूम हो चूका था कि महेश सिंह की बेटी रिया ने दसवी क्लास में जिले में सबसे अब्बल आयी है ।धीरे धीरे मोहल्ले वालों के आने और बधाईयों का सिलसिला शुरू हुआ ।सभी ने रिया कि शानदार सफलता के लिये बधाई और शुभकामनाये दी महेश और मनोरमा को बेटी रिया पर गर्व महसूस हो रहा था ।छुट्टियां समाप्त होने वाली थी और नए सत्र का शुभारम्भ होने वाला था रिया नए सत्र नए क्लास में पढ़ने गयी तो बहुत से पुराने सहपाठीयो कि जगह नए स्टूडेंट्स ने ले रखी थी।पहले दिन स्कूल के हर क्लास में रिया को ले जाया गया और उसकी शानदार सफलता से नए पुराने सभी को प्रेरणा के रूप में अवगत कराया गया। स्कूल के सभी शिक्षकों ने बड़ी गर्मजोशी से रिया का स्वागत किया स्कूल में विल्कुल नया स्टूडेंट जिसने दसवी कि परीक्षा दूसरे जनपद से पास की थी यहाँ आगे कि पढ़ाई के लिए आया था बड़ी तन्मयता से स्कूल कि पहले दिन की गतिविधियों को देख रहा था नाम भी तन्मय पाण्डेय । वह बार बार रिया कि खूबसूरती मासूमियत को निहारता पता नहीं क्यों तन्मय कि कोमल भावनाये रिया कि तरफ पहले दिन ही आकर्षित हो गयी उसके मन में यह बात बार आती कि रिया ही उसकी सबसे अच्छी दोस्त हो सकती है। तन्मय प्यार जैसी किसी भी जज्बे से वाकिफ नहीं था शाम के चार बजे स्कूल कि छुट्टी हुई तन्मय अपने आप को रोक न सका वह रिया के पास जाकर बोला मै तन्मय पाण्डेय तुम्हारी क्लास में पड़ता हूँ हम दोनों को अगर पढ़ाई के दौरान किसी हेल्प कि जरुरत पड़ी तो आपस में साझा एवं सहयोग कर सकते है ।रिया ने उस वक्त तो क़ोई ध्यान नहीं दिया और धन्यवाद कहकर चली गयी दोनों अपने अपने घर चले गए रिया कि माँ और महेश सिंह ने पूछा बेटा स्कूल में नए क्लास के सत्र का पहला दिन कैसा रहा रिया ने सारा वाकिया बताया सुनकर माँ बाप का सीन गर्व से चौड़ा हो गया ।रात को जब रिया सोने के लिये अपने कमरे में गयी तब यकायक उसके सामने तन्मय का चेहरा घुमाने लगा बार बार तन्मय के कहे शब्द हाय मै तन्मय पाण्डेय रिया के कानो में गुजने लगे रिया को भी इसका क़ोई मतलब समझ नहीं आ रहा था छत कि दीवार देखते देखते कब सो गयी पता नही चला। समझ में नहीं आ रहा था उधर तन्मय भी सोच रहा था कि रिया ने उसको नोटिस क्यों नहीं किया दूसरे दिन दोनों ही क्लास में अपनी अपनी सीट पर बैठकर क्लास करने लगे।जुलाई से सितम्बर तक रिया और तन्मय एक दूसरे पर क़ोई ख़ास ध्यान नहीं दिया।सितम्बर में टीचर पेरेंट्स मीटिंग में उमेश सिंह और मनोरमा को रिया के बेस्ट परफोर्नेन्स के लिये सम्मानित किया जाना था।तन्मय के पिता धीरेन्द्र पाण्डेय एक साधारण किसान थे वे धोती कुर्ता में आये थे समारोह प्रारम्भ हुआ प्राचार्य अल्वर्ट के साथ लियोनी मैडम समारोह में उपस्थित थी उन्होंने बोलना शुरू किया रेस्पेक्टेड पेरेंट्स आज हम रिया के मदर फादर को सम्मानित करने के लिए गेदर हुए है रिया ने डिस्टिक में नबर वन रैंक हासिल कर स्कूल का नाम रौशन किया हैं रिया के इस अचीवमेंट में उसके मदर फादर के कंट्रीब्यूसन को नेग्लेक्ट नहीं किया जा सकता है अब हम प्रिंसिपल साहब से रिक़ुएस्ट करते है कि रिया के मदर फादर को ऑनर करे पूरा हाल तालियों के गडग़ड़ाहट से गूँज उठा। फिर प्राचार्य अल्बर्ट ने मनोरमा और महेश सिंह का सम्मान करने के बाद बोलना शुरू किया उन्ही गार्जियन का बच्चा कुछ अच्छा करता है जिनके गार्जियन जिम्मेदार और बच्चों को अच्छा कल्चर देते है आज हमे मनोरमाऔर महेश सिंह जैसे गार्जियन बनने कि जरुरत है हाल एकबार फिर तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। प्रिंसिपल अल्वर्ट ने आगे बोलना शुरू किया मैं इस अवसार पर धीरेन्द्र पाण्डेय जी को इग्नोर नहीं कर् सकता जिनका सन् तन्मय पाण्डेय पुरे प्रदेश में ट्वेंटी फिफ्थ रेन्क पाकर हमारे स्कूल में डॉटर रिया के क्लास में ही स्टडी कर रहा है एकाएक हाल में तालियों कि गड़गड़ाहट गूंजने लगी रिया ने बड़े गौर से तन्मय कि तरफ मुस्कुराते हुये देखा। प्रिंसिपल अल्वर्ट बोलते रहे उन्होंने बताया कि धीरेन्द्र पाण्डेय जी एक साधारण किसान है और उन्होंने अपने सन् को हाई कल्चर दिया है यह आल गार्जियन के लिए इंस्पिरेशन है ।
प्रिंसिपल अल्वेर्ट के सम्बोधन के बाद समारोह सम्पन्न हुआ सभी अभिभावक अपने अपने घर को चले गए रिया घर पहुंचकर तन्मय से पहले दिन कि मुलाक़ात के ख्यालो में खो गयी अगले तीन दिनों तक विद्यालय बंद था।तीन दिन की छुट्टिया रिया के लिये मुश्किल से बीती वह जल्दी से जल्दी खुद को तन्मय का बेस्ट फ्रेंड बनना चाहती थी इसके लिये आवश्यक था कि वह तन्मय से शीघ्र मिले छुट्टी बीताने के बाद स्कूल खुला रिया सबसे पहले स्कूल के मेन गेट पर तन्मय का इंतज़ार करने लगी तन्मय जब स्कूल मैन गेट पर ज्यों ही पहुंचा रिया फ़ौरन उसके पास पहुंची और बड़े भोले अंदाज़ में बोली तन्मय आई ऍम सॉरी मैं आपको तब समझ नहीं पाई जब आप पहले दिन हमारे पास आये थे क्या हम अब वेस्ट फ्रेंड हो सकते है तन्मय अपने अंदाज़ में मुस्कराते हुये बोला साँरी भी क्या वर्ड है जिसने भी इस वर्ड कि खोज कि होगी बहुत बुद्धिमान होगा यह एक शब्द सारे तकलीफ को भुला देता है। फिर बोला हाँ बाबा मुझे तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड बनना है ।मेरे लिये प्राउड है रिया ने तुरंत सवाल किया रोज तो तुम स्कूल सबसे पहले पहुचते हो आज देर क्यों हो गयी तन्मय ने मुस्कुराते हुये कहा कभी कभी भगवान् भी अच्छाई कि परख करते छोटी मोटी परीक्षाये लेता रहता है आज मेरी सायकिल पंचर हो गयी थी ।दोनों अपने वार्तालाप में मसगुल थे कि उधर से गुजरती मैडम लियोनी ने दोनों को वार्तालाप करते देखा कहा गूड तुम दोनों एक दूसरे के साथ हेल्दी कॉम्पेटिसन के साथ दोस्ती करो और स्कूल का नाम रौशन करो।अब लगभग प्रतिदिन रिया और तन्मय आपस में बात करते दोनों ही विज्ञानं और गणित के छात्र थे अतः किसी भी बिषयागत प्रॉब्लम पर बात करते और मिलकर समाधान खोजते रिया के माँ बाप महेश और मनोरमा को भी रिया कि इस दोस्ती पर क़ोई एताराज नहीं था ।धीरे धीरे पूरे स्कूल में फ्रेंडशिप ऑफ़ टू एक्ससिलेन्ट ऑफ़ स्कूल के नाम से तन्मय और रिया की जोड़ी मशहूर हो गयी ।इसी तरह फर्स्ट इयर के होम एग्जाम में दोनों ने अपने कठिन परिश्रम से सयुक्त रूप से फर्स्ट रैंक हासिल कर् सेकंडियर यानि बारहवी कक्षा की तैयारी में जुट गए दोनों ने अपनी एक्ससलेंट फ्रेंड शिप ऑफ़ स्कूल को कायम रखते अपने अपने मकसद पर आगे बढ़ रहे थे सेकेंडियर के एग्जाम हुये रिजल्ट आया तो फिर दोनों के मार्क्स बराबर थे और दोनों ने ही जिले नहीं वल्कि पूरे प्रदेश में पांचवा स्थान हासिल कर अपने स्कूल का मान बढ़ाया ।अब रिया और मयंक का स्कूल से विदा हो कॉलेज या यूनिवर्सिटी जाने का वक्त आ गया स्कूल द्वारा फिर से दोनों के विदाई समारोह सम्मान के लिये रखा गया सम्मान समारोह में प्राचार्य ने फिर कहा रिया के मेरे स्कूल में पढने के बाद और तन्मय के आने के बाद शहर का हर गार्जियन कि चाहत है कि उनका वार्ड इस स्कूल में पढे यह अचीवमेंट हमारे और हमारे स्कूल के लिये बहुत प्राउड का सब्जेक्ट है। फ्यूचर में हम कोशिश करेंगे कि हमारे यहाँ पड़ने वाला हर स्टूडेंट रिया और तन्मय को फॉलो करे।अब रिया और तन्मय दोनों ही उच्च शिक्षा के अध्य्यन के लिये कॉलेज या विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने हेतु निर्णय अपने अपने अभिभावको पर छोड दिया। तन्मय अपने गांव चला गया रिया को लगता कि उसकी सफलता तन्मय के बिना अधूरी है और वह तन्मय कि यादो और स्कूल में बीते दिनों कि याद में खोई रहती ।पंडित धीरेन्द्र पाण्डेय ने अपने बेटे को जे एन यू पढ़ाई के लिये भेजा तन्मय को आसानी से दाखिला मिल गया और वह अपने अध्ययन कार्य में जुट गया उसे अपने किसान पिता के सपनो को सच साबित करने का जूनून था। मगर नियत कुछ और खेल खेलना चाहती थी अचानक एक दिन तन्मय लेक्चर रूम में बैठा अपने खयालो में खोया था तभी प्रोफेसर वाजिद लेक्चर रूम में दाखिल हुए और क्लास शुरू किया जब प्रोफेसर वाजिद कि नज़र क्लास में बैठी एक नई लड़की पर पड़ी तभी उन्होंने इशारे से उस लड़की को खड़े होने के लिये कहा वह ज्यो ही खड़ी हुई प्रोफेसर वाजिद ने पूछा आपका नाम रिया सर तब भी तन्मय ने क़ोई ध्यान नहीं दिया फिर प्रोफ़ेसर वाजिद ने पूछा कि इस क्लास में तुम्हारा क़ोई मित्र है रिया ने तुरंत जबाब दिया यस सर प्रोफेसर वाजिद ने पूछा कौन रिया ने जबाब दिया तन्मय पाण्डेय अब तन्मय ने अपना सर घुमा कर देखा तो वास्तव में रिया ही थी। उसको अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था प्रोफेसर वाजिद ने तन्मय पाण्डेय से पूछा कि क्या रिया को जानते हो तन्मय ने कहा यस सर हम दोनों ही एक ही स्कूल में पड़ते थे और एक ही रैंक से टॉप किया था। प्रोफेसर वाजिद ने कहा गुड तुम दोनों एक दूसरे का ख्याल रखना दिल्ली में अक्सर नए स्टूडेंट के साथ कुछ न कुछ गलत हो जाता है तुम दोनों बाहर से आये हो और एक दूसरे को अच्छी तरह जानते और समझते हो तन्मय और रिया ने स्वीकारोक्ति से सर हिलाया इसके बाद क्लास शुरू हुआ क्लास ख़त्म होते ही तन्मय रिया बाहर निकले तो तन्मय ने पूछा यहाँ कैसे आ गयी? रिया ने कहा कि तुम जे एन यू जाकर पड़ो और प्रशासनिक सेवाओं कि तयारी करों तोऔर मैं भी यहाँ आ गयी वही उद्देश्य लिये जो तुम लेकर आये हो।चलो अच्छा ही हुआ अब हम दोनों मिलकर दिल्ली में जे एन यू में टॉप करेंगे और हां मैं गर्ल्स होस्टल में रहती हूँ और आप जनाब तन्मय ने कहा मैं अपने दूर के रिश्तेदार के घर पर रहता हूँ रिया और तन्मय दोनों को अनजान महानगर में जरुरत थी दोनों एक दूसरे के पूरक थे दोनों कि मुलाकाते रोज होती और अध्य्यन के विषयो पर दोनों एक दूसरे कि जानकारी साझा करते। लेकिन अब दोनों में इन मुलाकातो का अर्थ बदला हुआ था दोनों को प्यार के आकर्षण कि हद अधिक अनुभूति होने लगी और दोनों कि पहली मुलाकात अब सहपाठी कि सीमा से पार कर प्रेम कि पराकाष्ठा तक पहुँच गयी दोनों एक दिन भी एक दूसरे से मिले बिना नहीं रह सकते थे ।लेकिन दोनों के शैक्षिक स्तर पर उनके प्यार का कोईं प्रभाव नहीं पड़ा दोनों ने स्नातक कि परीक्षा में अपना लोहा पुनः जे एन यू में मनवाया तीन वर्ष कैसे बीत गए पता ही नहीं चला एका एक दिन रिया के घर से उसके मामा रमेश सिंह जी दिल्ली आये और रिया से गोरखपुर घर चलने को कहा और बताया कि माँ मनोरमा को लकवा मार गया है अतः उनकी देख रेख के लिये चलना होगा ।चूंकि भाई मिलिंद डॉक्टर होकर अमेरिका में शिफ्ट हो अमेरिकन लड़की से शादी कर चुका था अतः उसका माँ कि सेवा के लिये आना संभव नहीं था रिया ने मामा जी से तन्मय से मिलने कि अनुमति मांगी और वह तन्मय से मिलते ही फुट फुट कर रोने लगी तन्मय ने उसे चुप कराते हुये कहा मेरा प्यार इतना कमजोर नहीं कि उसकी आँखों से मोती से भी कीमती आंसुओ का शैलाभ आ जाए। बताओ क्या बात है रिया ने माँ मनोरमा के बीमार होने कि बात बताई और कहा हमे अभी गोरखपुर जाना है तन्मय ने कहा कि घबराओ नहीं यह तुम्हारे लिए सौभाग्य कि बात है कि तुम्हे माँ कि सेवा का अवसर मिल रहा है ये मत भूलो कि तुम्हारे अस्तित्व और संस्कार कि स्तम्भ है आज उस माँ को अपनी बेटी कि जरुरत है। जिसने अपनी बेटी के लिये ना जाने कितनी रातें इसलिये जाग कर बिताई होंगी कि बेटी सो सके बहुत सी अपनी इच्छाओं का दमन किया होगा जिससे कि तुम्हारी इच्छाये पूरी हो सके यह मेरे लिये आत्म अभिमान कि बात है कि मेरा प्यार मेरी रिया जीवन मूल्यों कि परीक्षा में जा रही है वहाँ भी एक नया कीर्तिमान स्थापित करेगी। रही बात मेरे मिलने कि तो मैंने आज तक तुम्हारे अलावा किसी दूसरी लड़की का चेहरा नहीं देखा प्यार कि नज़र से अतः मै वचन देता हूँ कि जीवन के अंतिम पल में भी तुम ही मेरे साथ होगी हर जन्म में तुम ही मेरा प्यार रहोगी तुम्हे मुझमे मिलना ही होगा मैं जन्म पे जन्म लेते हुये तुम्हारा इंतज़ार करता रहूँगा या जन्म जन्म तुम्हारे साथ रहूँगा दोनों ने एक दूसरे को प्यार कि दुहाई की बिदाई दी ।रिया मामा जी के पास लौटी और सामान पैक करना शुरू कर दिया और मामा जी के साथ गोरखपुर चलने कि तैयारी करने लगी उसके मन में अपने प्यार के प्रति आत्म संतोष और विश्वास का भाव था सफर कि सारी तैयारी होने के बाद रिया मामा जी के साथ गोरखपुर चलने के लिये तैयार हो स्टेशन रवाना हुई नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उसकी ट्रेन भी तैयार थी रिया मामा रमेश के साथ ट्रेन में बैठी थोड़ी देर बाद ट्रेन भी चल दी पूरी रात सफ़र करने के बाद रिया मामा जी के साथ दूसरे दिन बारह बजे दिन में गोरखपुर पहुँच गयी और लगभग आधे घंटे बाद वह अपने घर माँ मनोरमा और पिता महेश के सामने खड़ी थी ।माँ को जब रिया ने देखा माँ मनोरमा बिस्तर पर लेटी घर के छत को एक टक निहारते ही जा रही थी रिया ने माँ के पास जाकर उसके सर पर हाथ फेरती बोली माँ मैं आ गई हूँ अब आप चिंता ना करो मनोरम ने जब बेटी रिया को देखा तो उसे गले लगाने कि कोशिश में उठने का अथक प्रयास करती रही मगर उनके शारीर में ना तो शक्ति थी ना ही चेतना सिर्फ उनकी आँख में विवसता कि अश्रु धरा का प्रवाह फुट रहा था रिया माँ कि इस दशा को देखकर फुट फुट कर् रोने लगी पिता महेश और मामा रमेश ने रिया को सात्वना दिलाशा दे कर चुप कराया ।अब माँ कि सेवा ही रिया के जीवन का वर्तमान ध्येय बन गया था वह बेटी होने के फ़र्ज़ को जिए जा रही थी हर तीसरे दिन डॉक्टर चेक करने आता मगर माँ मनोरम कि हालत सुधरने कि बजाय और गंभीर होती जा रही थी भाई मिलिंद भी पिजड़े में फड़फड़ाते किसी पंक्षी की भांति डॉक्टरों से प्रतिदिन बात करता और चुकी वह खुद भी एक डॉक्टर था तो उचित सलाह भी देता ।धीरे धीरे एक साल माँ मनोरमा को बिस्तर पर बीमार पड़े हो चुके थे ।तन्मय प्रतिदिन रिया को उसकी माँ के स्वास्थ कि जानकारी बाबत एक पत्र लिखता मगर रिया जबाब नहीं दे पाती प्रतिदिन के पत्रो को पढ़ती और सभाल कर रख लेती काल अपनी निरंतर गति से चल रहा था लगभग दो साल बीत गए। माँ मनोरमा कि हालत जैसी कि तैसी ही थी अंततः महेश सिंह ने बेटी रिया से कहा बेटा तेरी माँ की नसीब में बीमार रहना ही लिखा है अतः तुम माँ कि देख रेख के साथ कुछ अध्ययन भी शुरू करो ग्रेजुएसन हो ही गया है बी एड कर लो रिया को बात समझ में आयी और उसने बी एड का फार्म भरा उसे तुरंत दाखिला मिल गया उसने कालेज जाना भी शुरू कर् दिया लेकिन माँ कि देख भाल में क़ोई कमी नहीं रखी इधर प्रतिदिन तन्मय के पत्रों का शिलशिला जारी रहा ।रिया ने बी एड किया एम एड किया माँ कि सेवा भी पूरी निष्ठां से करती रही माँ को बीमार बिस्तर पर पड़े पड़े पांच साल गुजर चुके थे मगर उसकी हालत में सुधार कि बात तो दूर नहीं बिस्तर पर पड़े रहने से कई और बीमारियों ने जकड़ लिया डॉक्टरों ने उसके बचने कि रही सही उम्मीद भी छोड़ दी मिलिंद डॉक्टरो से निरंतर बात करता अपनी जानकारी के अनुसार माँ कि हालत को भगवान पर छोड़ दिया मिलिंद ने पिता महेश सिंह से बहन रिया के बिवाह के लिये कहा पिता महेश को भी महसूस हुआ कि बेटा ठीक कह रहा है महेश सिंह ने भी हाँ करते हुये बताया कि गोरख पुर के बड़हल गंज निवासी उनके बचपन के मित्र सतमन्यु सिंह जो उत्तर प्रदेश पुलिश में इंस्पेक्टर थे और भिंड में डांकुओ से मुठभेंड में शहीद हुये थे का पुत्र समरेंद्र सिंह उनकी जगह पर अनुकम्पा पर इन्स्पेटर नियुक्त हुआ है उसी से रिया का विवाह करना है क्योकि मैंने और सतमन्यु ने समरेंद्र और रिया का रिश्ता बहुत पहले ही पक्का कर दिया था मिलिंद भी इस सच्चाई को जनता था अतः उसने तुरंत हामी भर दी महेश सिंह ने रिया को बुलाया और समझाने के लहजे में बोले कि बेटी परया धन होती है उसे एक ना एक दिन बाबुल का घर छोड़ना ही होता है और तेरी माँ कि हालत सुधरने का नाम नहीं ले रही इसकी भी इच्छा यही है कि तुम्हारी शादी धूम धाम से होते हुए देखे मैंने अपने बचपन के मित्र स्वर्गीय सतमन्यु सिंह ने बचपन में तेरा और समरेंद्र का रिश्ता निश्चित कर दिया था। मैं जानता हूँ बेटी तुम्हे यह रिश्ता रास नहीं आएगा मै यह भी जानता हूँ कि तुम तन्मय को चाहती हो मगर तन्मय से तुम्हारा विबाह इस जन्म में सम्भव नहीं है तन्मय का पिछले पांच वर्षो से निरंतर पत्रो का आना तुम्हारे और तन्मय के प्यार का प्रमाण है मैं जनता हूँ तन्मय बहुत अच्छा लड़का है मगर मैं और मेरा समाज बिजातीय बिबाह कि अनुमति नहीं देता ।हमारा परिवार राजपूतो का है और तन्मय भूमिहार इसके अलावा भी बहुत कारण है जो तुम्हे बताना आवश्यक नहीं समझाता।
रिया पापा को बहुत समझाने कि कोशिश करते उसने कहा पापा तन्मय को भी आप उतना ही जानते है जितना मुझे तन्मय बहुत अच्छा लड़का है शाकाहारी है अच्छे परिवार खानदान का उसके पिता किसान होते हुये भी अपने बेटे को अच्छे संस्कार दिये है तन्मय मुझे ज्यादा खुश रख सकेगा और देखिये माँ कि बीमारी में उतना दूर रहते हुये भी एक दिन भी ऐसा नहीं गया जिस दिन उसने माँ के स्वास्थ् के विषय में जानकारी के लिये पत्र न लिखा हो वह माँ और आपको भी उतना ही सम्मान करता है जितना मै और मिलिंद भैया जितना खुद अपने माँ बाप को इज़्ज़त देता है रही बात जाती कि तो जाती में भी वह हमसे उच्च ही है मेरी पसंद है मिलिंद भैया भी इस रिश्ते को पसंद करेंगे। पिता महेश सिंह ने कहा मिलिंद को समरेंद्र का रिश्ता पसंद है रिया ने कहा की भैया को तन्मय के बारे में आपने बताया ही नहीं होगा मैं भैया से बात करती हूँ महेश सिंह ने आदेशात्मक लहजे से कहा खबरदार जो तुमने मिलिंद से इस सम्बन्ध में और कुछ बात किया तो तुम्हारे लिये रिश्तों के सभी दरवाजे बंद हो जाएंगे रिया ने फिर पापा को समझने के लहजे में कहा कि भैया ने तोअन्तर्धर्मीय विवाह कर मानवीय मूल्यों को तरजीह दी है हम तो तन्मय जो उच्च कुल का भारतीय है इतना सुनते ही महेश सिंह आग बबूला हो गए जैसे उनकी दुखती रग पर रिया ने हाथ रख दिया हो बड़े ही क्रोध में कहा तेरी माँ तो मरणासन्न है ही यदि तुमने और बहस इस सम्बन्ध में किया तो मेरा मरा हुआ मुँह देखेगी ।अब रिया के पास कोइ जबाब नहीं था वह रोती हुई माँ के पास गयी माँ ने जब रिया को देखा तो बोलने कि कोशिश करती अपनी सबसे प्यारी औलाद से कुछ कहना चाहती मगर बेबस लाचार अपनी बेटी कि आँखों का आंसू देखती उसके आँखों में उसी तरह अश्रु धारा बहने लगे जैसा रिया के दिल्ली से वापस आने के बाद बहे थे ।माँ बेटी कि विवसता के आंसू देख कर विधाता भी अपनी विधान पर सोचने को विवस हो गया लेकिन रिया कि तकदीर भी उसीने लिखी थी अतः अपने निर्धारित भविष्य का खेल वह देखता रहा।रिया किसी तरह हिम्मत करके उठी और उसने तन्मय को एक पत्र लिखा पत्र में उसने तन्मय को सम्बोधन में लिखा प्रियतम हमारे प्यार का इस जन्म में परवान चढ़ना संभव नहीं है मेरे पापा ने मेरी शादी कहीं और बचपन में तय कर राखी थी और वहीं मेरी शादी करना चाहते है मै विवस नहीं हूँ मगर मम्मी पापा कि परिवरिश के संस्कारिक संसार के रीती रिवाज को निभाना मेरा नैतिक तायित्व है वह मैं निभाने जा रही हूँ। लेकिन तुम मेरा इंतज़ार करना क्योकि मैं जब तक तुम्हारा प्यार नहीं पा लेती हूँ तब तक जन्म दर जन्म लेती रहूंगी तुम्हारी रिया पत्र पोस्ट करने के बाद उसने अपने आंसू पोछे और अब वह एक निर्जीव निरुत्साह जीवन्त शारीर या यूँ कहे कि कठपुतली या रोबोट कि तरह रह गयी थी जिसमे भाव और आत्मा नाम की कोइ जागृति नहीं थी सिर्फ कठपुतली या रोबोट जिसका संचालन उसके पिता के हाथ में था ।तन्मय ने रिया का पत्र प्राप्त किया पढ़के बाद उसे अपने प्यार रिया पर भरोसा और बढ़ गया उसे यकीन हो गया कि रिया का निर्णय उसके आत्मीय बोध का सच्चा प्यार है। प्यार शारीरिक वासनाओं और भौतिक बंधनो से ऊपर है वह रिया का इंतज़ार करता रहेगा चाहे जितने बार जन्म लेना पड़े ।
वह पूर्व कि भाँती रिया के माँ के स्वस्थ के जानकारी के लिये पत्र लिखता रहा और रिया उसे उसके प्यार की अमानत समझ सहेज कर रखती गयी और वह भी समय आ गया जब रिया को अपना प्यार अपना घर बार छोड़कर ससुराल जाना था महेश सिंह ने रिया कि शादी में रिया का पिता बनकर रिया का कन्या दान किया तो अपने स्वर्गीय मित्र सतमन्यु कि तरफ से उसे उसके सुखी जीवन कि गारन्टी दी रिया का पति समरेंद्र और सास शांति देवी रिया को पाकर बहुत खुश थे उनको उनकी कल्पनाओ से अधिक खुबसूरत बहु और रिश्ता मिला था ।रिया कि शादी में अमेरिका से मिलिंद भी आया था उसने अपनी लाड़ली बहन कि बिदाई बड़े भाई के फ़र्ज़ का क़र्ज़ निभाते हुये किया रिया ससुराल जाने से पूर्व माँ के पास गयी और बंद जुबा और आँखों में बहती अश्रुधारा से माँ से अंतिम विदाई ली पता नहीं क्यों उसे आभास हो गया था कि उसके जाते ही माँ भी दुनियां छोड देगी माँ से भवनात्मक विदा लेकर वह ससुराल जाने के लिये बाबुल के घर से रुखसत हुई ।रिया के जाने के बाद घर वीरान हो गया तीन दिन बाद मिलिंद कि अमेरिका कि फ्लाइट थी विवाह कि भीड़ भाड़ से घर खाली हो चुका था अब मनोरमा कि देख भाल करने को रिया नहीं थी मनोरमा कि नजरे बार बार रिया को ढूंढ रही थी और बेबस लाचार आँखों से आंसू बहा रही थी मगर रिया तो सदा के लिये जा चुकी थी अन्ततः मनोरमा ने रिया के ससुराल जाने के तीसरे दिन जिस दिन मिलिंद की अमेरिका कि फ्लाइट थी दुनियां छोड़ दी महेश सिंह पर जैसे आफत का पहाड़ टूट पड़ा ।रिया के हाथों कि मेहंदी भी हल्कि नही पड़ी थी किसी तरह से मनोरमा का अंतिम संस्कार हुआ रिया भी आयी मगर अब घर वीरान हो चुका था अब सिर्फ घर में मिलिंद और उसके पापा महेश सिंह जी ही रह गए थे चुकी मिलिंद अमेरिका से अकेले ही बहन रिया के बिवाह में आया था उसकी अमरिकन पत्नी कुछ आवश्यक कारणो से नहीं आ पायी थी मिलिंद ने पापा महेश सिंह से कहा कि क्यों न इस मकान और अन्य प्रापर्टी जैसे गाव कि खेती बाड़ी कि देख भाल का जिम्मा मामा रमेश जी को सौंप दे और प्रापर्टी का एटॉर्नी रिया को नियुक्त कर आप मेरे साथ अमेरिका ही चले महेश सिंह को यह बात जच गयी उन्होंने एडवोकेट जयंती लाल जी से पवार ऑफ़ एटॉर्नी और कस्टोडियन रमेश सिंह के पक्ष में बनवा कर एक एक प्रति रिया और रमेश को देने के बाद निश्चिन्त हो गए पत्नी मनोरमा के तेरही के तीसरे दिन मिलिंद महेश सिंह रिया और समरेंद्र साथ साथ एयर पोर्ट गए और भाई मिलिंद और पिता को रिया ने अमेरिका के लिये विदा किया रिया और समरेंद्र बड़हल गंज लौट आये हवाई जहाज हवा से बाते करता आकाश में उड़ता जा रहा था महेश सिंह के दिमाग में एक बात बार बार आ रही थी कि यदि अमेरिका में उनकी अमेरिकन बहु ने उन्हें मन से नाही स्वीकार किया तो क्या होगा जिसकी संभावना थी लेकिन उन्हें इस बात का संतोष था कि यदि ऎसा हुआ तो उन्हें अच्छी खासी पेंशन मिलती है वे भारत वापस आकर ईश्वर को जैसा मंजूर होगा वैसी जिंदगी जिएंगे।
मिलिंद पापा के साथ अमेरिका पहुँच गया और माहेश् सिंह को फौरी तौर पर वैसा कुछ महसूस नहीं हुआ जैसा कि उन्हें भारत से आते समय डर सता रहा था।अब रिया अपनी सास शांति देवी के साथ रह रही थी समरेंद्र कि पोस्टिंग दूसरे जनपद में चौकी प्रभारी के रूप में हो गयी वह वहां कार्य भार ग्रहण कर चुका था उसे पुलिस कि नौकरी में घर आने का मौका नहीं मिलता रिया अकेले में हमेशा तन्मय कि यादों में खोई रहती थी इसे सौभाग्य कहे या दुर्भाग्य समरेंद्र कि पोस्टिंग उसी जगह थी जहाँ तन्मय का घर था । तन्मय भी प्रसासनिक सेवा कि तैयारी के लिये दिल्ली ही रहता था वह तीन चार महीने कि छुट्टी में घर आया था जब उसे पता लगा कि उसके मोहल्ले में स्थित पुलिस चौकी पर कोई नैजवान् प्रभारी आया है तो वह मिलने चला गया पहली मुलाक़ात दो नौजवानो कि धीरे धीरे दोस्ती में बदल गयी ।अब दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे दोनों का मिलना जुलना रोज कि आदतो में सम्मिलित रोज मर्रा की जीवन शैली बन गयी ।समरेंद्र ने अपने दोस्त तन्मय से कहा कि मेरी नई शादी है सोचता हूँ कि परिवार ले आऊँ कुछ दिन परिवार को भी साथ रखु पता नहीं पुलिस कि नौकरी में कब ऐसी जगह पोस्टिंग हो जाए कि परिवार रखना सम्भव ही न हो तो दोस्त एक अच्छा सा पारिवारिक किराये के मकान कि ब्यवस्था कर दो पुलिस वालों को जल्दी क़ोई मकान किराये पर नहीं देता ।तुम लोकल हो तुम्हारे माध्यम से मकान किराये पर आसानी से उपलब्ध हो जाएगा तन्मय ने कहा दोस्त यह बहुत छोटी सी बात है आप समय निकालो मैं कुछ मकान दिखा देता हूँ तुम्हे जो पसंद हो किराए पर ले लेना ।दूसरे दिन तन्मय समरेंद्र को मकान दिखाने ले गया दो तीन मकान देखने के बाद उसे एक मकान पसंद आया जिसका अग्रिम किराया देकर समरेंद्र बोला कि अगले सप्ताह मैं परिवार लेने जाऊँगा ।अगले सप्ताह समरेंद्र घर गाया तो माँ शांति देवी ने कहा तू तो बिलकुल अपने बाप कि तरह पुलिस वाला बन गया है उन्होंने पुलिस कि नौकरी कि निष्ठा में जान दे दी और मुझे अकेला छोड गए तुम्हे तो अपनी नई नवेली दुल्हन के लिये फुरसत नहीं समरेंद्र ने कहा माँ तुम तो जानती हो कि पुलिस कि नौकरी में दिन रात कोल्हू के बैल कि तरह खटना पड़ता है और हर समय खतरे भी रहते है लेकिन मैं अब सोचता हूँ कि रिया को जितने दिन भी मौका मिले साथ रखूं माँ शांति देवी को लगा की समरेंद्र ने उसके मन कि बात कह दी शांति देवी ने तुरंत सहमति दे दी एक दिन घर रहने का बाद समरेंद्र रिया को लेकर अपने साथ चला गया रिया किराये के मकान को एकदम सजा सवारकर एक खूबसूरत आशियाने कि शक्ल दे दी ।परिवार लाने के बाद पहले दिन अपनी पोलिस चौकी जब समरेंद्र गया सबसे पहले उसने तन्मय को बुलवाया और कहा दोस्त मैं अपना परिवार ले आया हूँ और रोज मर्रा कि जरुरत जैसे गैस कनेक्सन अखबार दूध आदि कि व्यवस्था करवा दो चूकी दोनों हम उम्र थे अतः दोस्ती में औपचारिकता नहीं थी तन्मय ने समरेंद्र के कहे अनुसार उसी दिन सारी व्यवस्थाये कर दी ।रिया को कोई तकलीफ नहीं थी तन्मय अक्सर समरेंद्र से चौकी पर ही मिल लेता इस तरह लगभग एक माह बीत गए ।एक दिन जब तन्मय समरेंद्र से मिलने चौकी पर गया तब समरेंद्र ने कहा तन्मय तुमने हमारी गृहस्ती बसाने में इतनी मदद कि है हमारे घर पर तुम्हारा एक कप चाय का हक तो बनाता ही है ऐसा करो तुम आज शाम को हमारे घर आओ ।तन्मय चला गया और समरेंद्र भी डियूटी पर गस्त पर निकल पड़ा जब शाम समरेंद्र घर पहुंचा उसके आधे घंटे बाद तन्मय भी पहुच गाया तन्मय के पहुचते ही समरेंद्र ने कहा भाई तन्मय आपके शहर और आपके घर में आपका स्वागत है तन्मय सहम सा गया अपने पुलिस वाले दोस्त कि बात सुनकर और बोला समरेंद्र क्या बात करते हो समरेंद्र ने कहा ठीक ही तो कह रहा हूँ शहर तुम्हारा है और मकान तुम्हारी वजह से मुझे मिला है ।अब बेवजह का सवाल छोड़ो और बैठो तन्मय ड्राईंग रूम के शोफे पर बैठा समरेंद्र अंदर गया और पत्नी रिया को चाय लेकर आने को बोला और आकर ड्राईंग रूम में बैठ गया दोनों दोस्त आपस में गप्पे लड़ाने में मशगूल थे तभी रिया चाय लेकर ड्राईंग रूम दाखिल हुई रिया ने ज्यो ही तन्मय को देखा उसके होश उड़ गए उसके हाथ में चाय का ट्रे गिरने ही वाला था कि समरेंद्र ने सभल लिया और ट्रे मेज पर रखते बोला अरे दोस्त मेरी बीबी तो तुम्हे देख कर चकरा गयी क्या ख़ास बात है तुमसे तो हम तो रोज ही मिलते है तन्मय कि स्थिति और भी गभ्भिर थी उसे तो पूरी दुनियां घूमती नज़र आ रही थी पल भर के लिये रिया
तन्मय कि नजरे मिली और सदियों कि बाते कर गयी । तन्मय कुछ बेचैन होने लगा वो बैठा तो समरेंद्र के ड्राईंग रूम में जरूर था मगर उसका मन अतीत में रिया के साथ गुजरे वक्त कि यादों में खो गया तन्मय सोचने लगा नियति कौन सा अजीब खेल उसके साथ खेल रही है उसने जल्दी जल्दी चाय ख़त्म की और तन्मय से जाने कि इज़ाज़त लेकर बहार निकल गया जल्दी जल्दी घर पहुंचा और रिया के खयालो में खो गया उसे ना तो भूख थी ना ही प्यास थी सिर्फ रिया के प्यार कि चाह की राह उसे यक़ीन नहीं था कि रिया कि उसकी मुलाक़ात ऐसे मुश्किल दो राहे पर होगी वह बड़ी दुविधा कि स्थिति में था। किसी तरह रिया कि यादों में जागता रात बीती सुबह वह सामान्य दिखने की और खुद की भावनाओं पर नियंत्रण करने कि कोशिश करता रहा शाम होते ही वह समरेंद्र से मिलने गया और समरेंद्र उसे अपनी बुलेट पर बैठा घर लेता चला गया फिर साथ बैठकर चाय पीना और गप्पे लडाना दो तीन बार समरेंद्र तन्मय को साथ अपने साथ घर ले गया अब तन्मय के मन से झिझक कम हो गयी वह अक्सर समरेंद्र से मिलने जाता कभी समरेंद्र के साथ उसके घर चला जाता कभी समरेंद्र गश्त में हल्के में चला जाता तो तन्मय अकेले ही समरेंद्र के घर पहुच जाता और रिया के साथ घंटो बात करता रहता यह सिलशिला चलता रहा एकाएक एक दिन शाम को समरेंद्र से तन्मय मिलने गया और वहाँ से समरेंद्र अपने चौकी क्षेत्र के ग्रामीण इलाके में गस्त पर निकल गया इस बात को समरेंद्र को जरा भी इल्म नहीं था कि तन्मय उसकी अनुपस्थिति में भी उसके घर जाता है उस दिन समरेंद्र को गस्त करते रात के तीन बज गए तन्मय और रिया में आपस में बात करने में मशगूल थे तभी समरेंद्र ने दरवाजा खटखटाया दरवाजा तन्मय ने ही खोला समरेंद्र के होश् उड़ गए उसने आश्चर्य से पूछा तुम इतनी रात यहाँ क्या कर रहे हो तन्मय ने कहा रिया ने कहा बैठो जब तक वो नहीं आ जाते मै बैठ गया बातो ही बातो में पता ही नहीं चला कब इतना टाइम हो गया समरेंद्र ने तन्मय से कहा मित्र शरीफ व्यक्ति इतनी रात को किसी के घर उसकी अकेली बीबी से बात नहीं करते । तन्मय अपने घर चला गया समरेंद्र बिना कुछ कहे सो गया कहते है कि पुलिस शक के बिना पर असली मुजरिम तक पहुँच जाते है समरेंद्र सुबह उठा और अपने चौकी पहुँच कर् उसने अपने सबसे विश्वाश पात्र सिपाही को तन्मय के विषय में जानकारी हासिल करने के लिये गोपनीयता कि हिदायत के साथ लगा दिया और खुद अपने पड़ोसियों से तन्मय के अपनी अनुपस्तिति में आने के बाबत सूचना इकठ्ठा किया तो पता चला कि तन्मय लगभग रोज रात्रि के दी तीन बजे तक समरेंद्र के घर से बहुत दिनों आता जाता देखा जा रहा है कोई बोलता इसलिये नहीं है कि एक तो पुलिस से सम्बंधित और दूसरे दोस्ती का मामला ।समरेंद्र के दिमाग में क्या चल रहा था किसी को नहीं पता समरेंद्र अंतर्मुखी व्यक्तित्व था जिसका अंदाज़ा लगा पना बहुत कठिन था एक सप्ताह बाद समरेंद्र द्वारा नियुक्त विश्वसनीय सिपाही ने तन्मय के बचपन से वर्तमान तक का पता लगा कर बता दिया उसने बताया कि रिया और तन्मय इंटरमीडिएट से साथ साथ पढ़ते थे दोनों में बहुत प्यार था रिया ने तन्मय से शादी के लिये बगावत कर दी थी मगर दोनों का विवाह रिया के पिता महेश सिंह जी के जिद्द के कारण नहीं हो पाया समरेंद्र ने जानकारी हासिल करने के बाद अब स्वयं भी ख़ुफ़िया तरीके से तन्मय के अपने घर आने जाने के सिलसिले कि तस्दीक करने लगा वह जान बुझ कर चौकी से निकल जाता और अपने घर के आस पास अपने ही घर कि निगरानी करता।समरेंद्र ने प्रतिदिन देखा कि तन्मय उसके घर आता है और रिया से रोज रात एक दो बजे तक बात करता है समरेंद्र चाहता था कि तन्मय और रिया जब भी आपत्ति जनक स्थिती में हो तो उनको वह रंगे हाथों पकड़े मगर रिया और तन्मय का प्यार ईश्वर का विधान था जिसमे वासना का क़ोई स्थान नहीं था फिर भी समरेंद्र को तन्मय और रिया का मिलना नागवार लगता था एक तो पुलिस में कार्य करने से शक सुबहा उसके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया था मन ही मन उसने दृढ़ निश्चय कर् लिया तन्मय को रिया कि जिंदगी से हटा कर दम लेगा अंतिम दिन जब तन्मय रिया से मिलकर जाने लगा उसने कहा अब हम मिलने नहीं आएंगे जन्म जन्मान्तर तुम्हारे आने कि प्रतीक्षा में रहेंगे ख़ुफ़िया निगरानी कर रहे समरेंद्र ने तन्मय कि बात सूनी ।तन्मय के जाने के आधे घंटे बाद वह घर में गया और सो गया सुबह उठा तो वह काफी गंभीर और प्रतिशोधात्मक लग रहा था रिया ने माहौल को हल्का करने के लिये मज़ाकिया अंदाज़ में कहा क्या किसी खतरनाक मुजरिम से पाला पड़ा था जो आप इतने गंभीर गुमसुम है समरेंद्र कुछ बिना बोले तैयार होकर चला गया रिया का मन किसी अनहोनी के डर से घबराने लगा शाम हुई रोज कि भाँती तन्मय समरेंद्र से मिलने पुलिस चौकी आया उस वक्त चौकी में सिर्फ समरेंद्र था उसने अपनी योजना के अनुसार सभी मातहतों को बाहर डियूटी पर भेज दिया था तन्मय दोस्त कि दोस्ती के गुरुर में था उसे जरा भी इल्म नहीं था कि उसका पुलिस दोस्त उसके लिये साक्षात् काल का रूप धारण कर चुका है तन्मय के पहुचते ही समरेंद्र ने सवाल किया तुम देर रात मेरे घर मेरी पत्नी से बात करने क्यों जाते हो क्या कोइ दोस्त अपने दोस्त कि गैरहाजिरी में उसके घर रात दो तीन बजे तक उसकी पत्नी से अकेले में बात करता है यह तुम्हारे साथ मैं करूँ तो कैसा लगेगा तन्मय ने समरेंद्र को समझने कि बहुत कोशिश कि उसने बताया कि रिया उसके साथ पढ़ी है मगर समरेंद्र ने कहा दोस्त पुलिस वाले कि दोस्ती कि धार तुमने देखी है अब उसके दुश्मनी कि मार झेलो इतना कहते उसने कहते उसने अपने सर्विस रिवाल्वर निकली और सारी गोलियां तन्मय के कनपटी सीने पेट में इस विश्वाश से उतार दी कि वह किसी हाल में जीवित ना बचे तन्मय जमीन पर गिरा तड़फड़ा रहा था समरेंद्र ने तुरंत ऑटो वाले को जिसे उसने पहले से बोल रखा था को बुलाया और तन्मय को उसमे अर्ध मृत्य अवस्था में लादते हुये कहा इसे सरकारी अस्पताल ले जाओ पुलिस चौकी के पास रहने वालों ने इस घटना को देखा उनमे से एक नौजवान चौकी के सामने तन्मय कि नृशंस हत्या पुलिस द्वारा किये जाने पर जनपद निवासियो को जोरदार ललकारा अब जनता का हुजूम ईकठ्ठा हो चुका था मौके कि नज़ाकत देख समरेंद्र फरार हो गया जनता के हुजूम ने जनपद के थाने पुलिस चौकियों को फूक डाला जनता कि मांग थी खून का बदला खून मगर समरेंद्र का कही पता नहीं था।जब घटना कि जानकारी रिया को मिली तो वह स्वयं मृत सामान हो गयी उसे सूझ ही नहीं रहा था कि वह क्या करे ।जनपद की जनता उद्वेलित आंदोलित थी करोड़ो रुपये कि सरकारी सम्पति जनता के आक्रोश के भेट चढ़ गए सरकार द्वारा जनपद में अनिश्चित कालीन कर्फ्यू लगा दिया प्रशासनिक अमले का स्थानातरण कर दिया और नयी प्रशासनिक प्रणाली स्थापित की गयी चुकी इस पूरे घटना में रिया का दोष नहीं था अतः उसे प्रशासन ने चोरी छिपे जनता के आक्रोश से बचते बचाते उसके घर भेज दिया घटना के लगभग पंद्रह दिनों बाद समरेंद्र ने न्ययालय में आत्म समर्पण कर दिया ।शहर का माहौल समरेंद्र के आत्म समर्पण के बाद शांत होने लगा ।यह सुचना जब महेश सिंह और मिलिंद को मिली तो महेश सिंह आनन फानन भारत लौट आये और अपनी बेटी रिया को अपने घर वापस ले आये रिया का सब कुछ लुट चूका था पति अपराधी जेल में था और प्रेमी जन्म जन्म के इंतज़ार के लिये मर चुका था रिया एक स्कूल टीचर हो अपने इस जीवन का निर्वहन करती अगले जीवन में तन्मय के प्यार के इंतज़ार में जिए जा रही थी पिता महेश सिंह उसकी बेदना को मूक बनकर देखते पश्चाताप के आंसू बहाते सोचते काश वे रिया कि बात मान उसकी शादी तन्मय से किये होते मगर पश्चाताप का ना तो कोई फायदा था ना ही प्राश्चित ।

कहानीकार–नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




जंगल में चुनाव

जंगल में चुनाव

 

 

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

6 मैपलटन वे, टारनेट, विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित, विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित, बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका

A Multidisciplinary Peer Reviewed International E-Journal Published from 6 Mapleton Way, Tarneit, Victoria, Australia

 

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला

सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

 

जंगल में चुनाव

जंगल में चुनाव

शहर की भीड़-भाड़ से दूर जंगल में एक शेर रहता था।जिसका नाम शेर ख़ान था।अब वह बहुत बूढ़ा हो चुका था । अपने खाने के लिए शिकार करने में भी उसे बहुत परिश्रम करना पड़ता था,परन्तु शेरख़ान के जवानी के दिनों में सारे जंगल पर उसी का राज चलता था। जंगल के सभी जानवर उससे भयभीत रहते थे। लेकिन अब उससे कोई नहीं डरता था। बढ़ती उम्र और भूख के कारण उसका शरीर भी कमज़ोर होता जा रहा था।

फ़िर एक दिन उसका पुराना साथी मोती भेड़िया उससे मिलने आया।उसकी हालत भी कुछ ज़्यादा अच्छी नहीं थी। शेर ने अपने मित्र भेड़िए का हाल-चाल पूछने के बाद कहा-“अरे मोती !
अब मैं बहुत बूढ़ा हो गया हूँ । मुझसे शिकार भी नहीं होता । बस अब तो दूसरे जानवरों की जूठन खाकर ही गुज़ारा करना पड़ता है।”

मोती भेडिए ने गंभीर स्वर में कहा-“जब से मैं शहर से आया हूँ ।मुझे भी शिकार पकड़ने में बहुत दिक्कत आती है।शहर वालों के बीच रहकर मैं भी बहुत आलसी हो गया हूँ ।
ढलती उम्र की वजह से मेरे भी हाथ-पाँव जवाब देने लगे हैं।”

शेर ख़ान ने उत्साह से कहा – “तुम तो शहर में पढ़े-लिखे, समझदार लोगों के बीच रहकर आए हो । इसलिए कोई युक्ति लगाओ।जिससे हम दोनों का खाने-पीने का कोई जुकाड़ हो सके और हमारा बुढ़ापा भी बिना किसी श्रम के आराम से कट सके। ”

भेड़िए ने कुछ देर सोचकर कहा- “क्यों ना उस्ताद जंगल में चुनाव कराएँ जाएँ ?…”

“चुनाव !…” शेरख़ान ने आश्चर्य से मोती भेड़िए की ओर देखा- “पर मुझ जैसे अपराधी प्रवृत्ति के बदनाम व्यक्ति को वोट कौन देगा ?… और जंगलवासियों के बीच मेरा पुराना रिकॉर्ड भी कुछ अच्छा नहीं है !…”

भेड़िए ने उत्तर दिया- “उसकी चिंता आप मत कीजिए।

हम चुनावों के समय जंगल में दंगें भडका देंगे।
जंगल के जानवरों को जात-धर्म के नाम पर लड़ा देंगे।

फिर हम सब जानवरों के अलग-अलग मोर्चे बनाकर उनके छुटभैया नेताओं और सरदारों को अपनी पार्टी में कर लेंगे ।

सभी जंगली जानवरों से बड़े-2 वायदे करेंगे ।…

इस तरह हम आसानी से चुनाव जीत जाएँगे ।

फिर बाद में हम संवैधानिक पद पर रहकर खुद भी खाएँगे और अपने समर्थकों को भी खिलाएँगे । तब किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी ।”

“वो तो ठीक है परन्तु हमारे जंगल राज को लेकर, यदि जंगल के मीडिया वालों या यहाँ के बुद्धिजीवियों ने विरोध शुरु कर दिया ।”शेर खान ने थोड़े चिंता भरे स्वर में कहा ।

“उसकी कोई दिक्कत नहीं है-मेरे भावी महाराज ! मीडिया प्रमुखों को तो हम राज्य-सभा या लोकसभा की सीट दें देंगे । और वैसे भी हमारा सारा चुनाव-प्रचार ये मीडिया वाले ही तो करेंगे।

और रही बात बुद्धिजीवी और समाजसेवियों की उन्हें भी कोई लाभ का पद दें देंगे या फिर जंगल के सारे कामों के ठेके उनकों और उनके रिशतेदारों को ही दें देंगे ।”मोती भेड़िए की बात सुनकर शेर खान थोड़ा खुश हुआ ।

“यदि फिर भी किसी ने ज़्यादा ही देशभक्त या समाजसेवी बनने की कौशिश की तो हम उसे देशद्रोही, आतंकवादी या नक्सली साबित कर देंगे या फिर झूठे मुकदमों में फँसा देंगे।”- भेडिए ने और अधिक उत्साह से कहा।

“तुम्हें लगता है ये तरीका काम करेगा ?…”शेर खान ने गंभीरतापूर्वक पूछा ।

“महाराज ! ये तरीका मैंने खुद थोड़ी बनाया है।ये तो बड़े-बड़े नेताओं और अपराधियों का सैकड़ों बार अपनाया गया नुस्खा है। कई गुंडों, चोर-उचक्कों और भ्रष्ट नेताओं ने इसी तरह कई देशों और राज्यों पर बरसों-बरस राज किया है ।और कुछ महारथी तो अब भी शासन कर रहे है”-मोती भेड़िए ने शेर खान के सभी संशयों को दूर करते हुए कहा ।

फ़िर कुछ दिनों के बाद महंगे प्रचार और बड़ी-2 चुनावी घोषणाओं के बाद जंगल में चुनाव हुए ।
और उस बुढ़े शेर को जंगल का राजा चुन लिया गया ।अब शेर ख़ान और उसके साथी जंगल में अपनी मर्ज़ी से शिकार करते हैं। कोई उनका विरोध नहीं करता क्योंकि राजा का हरेक काम संवैधानिक होता है ।

संदीप कटारिया
(करनाल, हरियाणा)

 




खोपड़ी

 

ठाकुर सतपाल सिंह का स्मारक बन चुका था अब लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त के पास गांव वालों में किसी नए विचार की फसाद का कोई अवसर नही था फिर भी दोनों को चैन इसलिये नही था कि गांव में कोई समस्या नही थी ।शोमारू प्रधान ने ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक से कुछ ही दूरी पर प्राइमरी स्कूल के लिए जमीन दे दी थी जिस पर स्कूल बन चुका था और बच्चों के पठन पाठन का कार्य चल रहा था।गांव वालों को भी चैन था कि ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक के लिये गांव के दो लोंगो की बलि चढ़ गई एक तो चौधरी सुरेमन प्रधान बेवजह बेगुनाह सजा काट रहे थे और मुसई बेमौत मरा गया गांव वालों को इतनी कुर्बानी के बाद भी शांति मंजूर थी।समय अपनी गति से चल रहा था पंडित महिमा दत्त जिस मानव खोपड़ी को गांव की नदी के रेता से उठाकर लाये थे उसे उन्होंने छुपा कर अपने व्यक्तिगत कमरे में रख दिया था और प्रतिदिन एक बार कमरा खोल कर उस मानव खोपड़ी को सुरक्षित है कि नही देख लिया करते समय बीत रहा था।सोमारू प्रधान पंडित महिमा दत्त और लाला ग़ज़पति की हर बात को अपना नैतिक कर्तव्य मानकर मानता जा रहा था गांव वालों को भी निश्चिंतता थी कि अब कोई ऐसा कारण नही है जिससे कि पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति को नागवार लगे और नया बखेड़ा शुरू हो अमूमन गांव वालों ने दोनों पर ध्यान देना बंद कर दिया ।लाला ग़ज़पति और पंडित महिमा लाला शोमारू प्रधान तक सीमित रह गए जिससे गांव वालों का कोई लेना देना नही था।गांव में नौजवानों की नई पौध नए विचारों के साथ नए समय परिवेश में चल आ चुकी थी ।एकाएक लाला ग़ज़पति ने पंडित महिमा दत्त से कहा पंडित आज कल एक बात गौर किया पंडित सब समझते जानते हुए भी मित्र से अनजान बनते पूछा क्या ?लाला ग़ज़पति ने माथे पर बल देते हुये कहा पंडित आज कल गांव वाले हम लोगो को तवज्वो नही देते अब हम लोग गुजरे जमाने के जीते जागते लोग रह गए है जिनकी कोई अहमियत नही है।पंडित महिमा दत्त ने भी सहमती से सर हिलाते हुए कहा सही कह रहे हो लाला अब हम लोग गुजरे वक्त के शेर रह गए है जो आज के समय मे ढेर हो चुके है ।लाला ग़ज़पति ने कहा मगर ये कैसे हो सकता है कि लाला गजपति अभी गांव में जिंदा है और गांव वाले उसकी शान में गुस्ताखी करे भाई पंडित महिमा तू ठहरा पंडित आदमी तोहे स्वर्ग नर्क वेद पुराण देवी देवता पाप पुण्य के भय सतावत बा लेकिन हम कायस्त मनई जिनगी के मौज में विश्वास करीत मरे पे का होई नही मतलब पंडित महिमा ने कहा लाला कौनो जुगत लगा जिससे हम दोनों की पूछ गांव में पहले जैसे हो जाय और फिर से हम लोगन के गांव में सल्तनत
कायम हो जाय लाला ग़ज़पति बोले पंडित धीरज रखो एक बात जानत हो पंडित बोले का लाला गजपति बोले जब भारत आजाद भवा ऊ समय दुई महत्वपूर्ण घटना हुई एक देशवा धरम की नाम पर दुई भाग में बंट गया और आजादी के साथ देशवा को दुई विरासत मिली एक देशवा का नाम बदल गवा भारत से हिंदुस्तान होई गावा दूसरा बटवारा सिद्धान्त मिल गया अब आजद मुल्क भारत के गांव गांव में आज नाही त कल इहे दुई आचरण घर घर गांव गांव में दिखे आज नाही त कल भले केतनो नया पौध नौजवान के आ जावे।हम मुल्क की आजादी की विरासत का इस्तेमाल समझो अपने गांव से शुरू करीत है ताकि आपन गांव देश के भविष्य के आदर्श गांव के नाम से जाना जाई पंडित महिमा बड़े आश्चर्य से बोले मान गए मित्र झूठे थोड़े कहा जात है कि लाला लहर से नोट छाप दे अब बताओ मित्र तोहरे दिमाग मे का चलत बा लाला ग़ज़पति बोले बुरबक पंडित अब तक नाही समझे आज़ादी के विरासत के प्रयोग गांव में होई मतलब गांव में जेतने जाती के टोला है उनके नाम वोही जाती के टोला के नाम से जाना जाय जैसे चम टोली बिन टोली
लाला टोला पंडित टोला ठाकूरान मिया टोली पंडित महिमा बोले ऐसे का होई ?लाला ग़ज़पति थोड़ा गुस्से में बोले पंडित जिनगी भर बकलोल रहिगे अरे पंडित यही तो भारत से आजाद हिंदुस्तान की विरासत है एक त वैल्लोर गांव न रहिजाय टोलन में बंटी जाय जैसे वोकर पहिचान जाति के टोलन से जुड़ी जाई पंडित आतुर होई के सवाल कियेन एके बाद का होइ लाला ग़ज़पति बोले पंडित हर टोला जाती में नेता पैदा होइयन और आपस मे हमेशा लडीहन कटिहन तबे त हमारे जईसन लोगन के राजनीति हनक कायम रही सकत पंडित महिमा बड़े गर्व से बोले मान गए मित्र कायस्त की खोपड़ी लाला ग़ज़पति बोले देखते जाओ मित्र मैं भारत से हन्दुस्तान की आजादी के विरासत की विसात पर क्या क्या करते है।पंडित महिमा दत्त को जो कांकल मानव खोपड़ी गाँव नदी में स्नान करके लौटते समय रेत में मिली थी उसको उन्होंने बढे जतन से सम्भाल कर अपने व्यक्तिगत कमरे में छुपा कर रख दिया था प्रतिदिन एक बार अवश्य कमरा खोल कर आस्वस्त होते की खोपड़ी सुरक्षित है कि नही ।एका एक दिन पंडित महिमा के सपने में ठाकुर सतपाल सिंह आये और बोले पंडित हमार मित्र ते हमरे खोपड़ी को काहे एतना जतन से रखे है पंडित जी बोले हमे का मालूम कि जो खोपड़ी हम नदी की रेता से उठा कर लाये है वो तुमरी खोपड़ी है ठाकुर सतपाल खीज कर बोले ससुर के नाती पण्डित जियत जी हमारे खोपड़ी के दम पर गांव में इतना उधम मचाये मरे के बाद उहि खोपड़ी को पहचानत तक नाही है पण्डित बोले बताओ मित्र हम तुम्हरी खोपड़ी को एतना जतन से रखे है अब का करि ठाकुर सतपाल बोले पंडित जियत जी तोके हम मित्रता के नाम पर ढोवत रहेन मरलो के बाद चैन नाही लेबे देत हौ पंडित बोले का करि मित्र तोहरे मित्रता खातिर ठाकुर सतपाल बोले सुन पंडित जब हम मरेंन हमारी आत्मा जमराज के दरबार मे पहुंची त ऊ कहिन ठाकुर तूने जिंदगी भर लोंगो को दुख पीड़ा क्लेश कलह जैसी व्यधि से परेशान किया है तो तुम्हे भयंकर सजा और नर्क मिलेगा चुकी धोखा मक्कारी और फरेब से लोगो को तबाह परेशान किया इसलिये तुम पहले सांप के रूप में जन्म लोगे और मैं तुरंत साँप के रूप में जन्म लेकर जब रेंगना शुरू किया तभी मेरी माँ मुझे निगलने के लिये झपटी मैं भाग कर अपनी पिछले जन्म की मानव खोपड़ी छिप गया जब तुम खोपड़ी के साथ मुझे उठा कर ले जा रहे थे तब तुम्हे डसने का मौका मिला मगर मैने तुम्हे पहचान लिया और तुमको छोड़ दिया मगर गांव के पंचायत सदस्यों की बैठक में पीपल के पेड़ पर बैठा पंचायत की कार्यवाही देख रहा था और मालूम हुआ कि यह मीटिंग मेरे ही स्मारक के लिए है और पंचायत सदस्य मेरा स्मारक सदबुद्धि यज्ञ की हवन कुंड के स्थान पर नही बनने देना चाह रहे है तो मैं जान बूझ कर मैं मुसई पर गिरा और डस लिया और गांव वालों ने मुझे मार डाला मरने के बाद मैं पुनः जमराज के दरबार पहुंचा तो जमराज ने कहा अब तुम्हे चूहे बनकर जन्म लेना होगा हमे लगा कि ई जमराज तो हमे जनम दर जनम परेशान करेगा तब मैंने जमराज के खिलाफ अकेले मोर्चा खोला और जमराज के सारे तंत्र को जमराज का ही शत्रु बना दिया अब जमराज को ही यमपूरी में शासन करना दुरूह हो चुका है हमने जमराज को फरमान दे रखा है सुन जमराज जब तक हमारे दो मित्र पंडित महिमा दत्त एव लाला ग़ज़पति यहां नही आ जाते तब तक तुम केयर टेकर यमपुरी के शासक बन व्यवस्था की देख रेख करो मेरे दोनों मित्रो के आने के बाद तुम पृथ्वी पर जाकर बिभिन्न शरीरों में भृमण करोगे और यम पूरी की शासन व्यवस्था हम तीनो मित्र संभालेंगे जम पूरी की संसद सांसद विधायक पार्षद मेरे प्रस्तव को दो तिहाई से सहमति प्रदान कर चुके है अब हम यहाँ यमपुरी में भावी शासक के तौर पर विशिष्ट अतिथी का शुख भोग रहे है और तुम्हारा और लाला ग़ज़पति के आने का इंतजार कर रहे है मगर इसमें एक पेंच फंस गया है पंडित महिमा दत्त बोले क्या मित्र ठाकुर सतपाल ने बताया कि जब तक मेरे किसी जन्म का अवशेष पृथ्वी लोक में है मुझे यम पूरी का पूर्ण स्वामित्व नही मिल सकता है अतः मेरी खोपड़ी के छोटे छोटे टुकड़े कर गांव की नदी में प्रवाहित कर दो इतना कह कर ठाकुर सतपाल अंतर्ध्यान हो गए पंडित महिमा की निद्रा की तंद्रा टूटी और उन्होंने निश्चय किया कि ठाकुर सतपाल की खोपडी अभी नदी में विसर्जित कर देंगे पंडित तुरंत ही अपने खुफिया व्यक्तित्व कमरे को खोला और खोपडी खोजने लगे मगर उनको ठाकुर सतपाल की खोपड़ी कही नही मिली ।पंडित महिमा दत्त को जब ठाकुर सतपाल सिंह की खोपड़ी सारे प्रयत्न के नही मिली तो खीज कर अपनी पत्नी पंडिताइन विमला पूछा कि मैंने अपने कमरे में एक मानव खोपडी रखी थी क्या तुमने देखा पंडिताइन बोली हाँ मैँ आज घर की सफाई कर रही थी मुझे ख्याल आया कि महीनों से तुमरे कमरे की सफाई नही की है उसकी साफ सफाई करनी चाहिये जब मैं सफाई कर रही थी तभी मैन देखा कि वहाँ एक मानव खोपड़ी रखी है पहले तो मुझे यही नही समझ मे आ रहा था कि तुमरे कमरे में ये मानव खोपड़ी आई तो कैसे क्योकि ई कमरा तो तुमरे अलावा कोई खोलत नाही फिर सोचा कि तुम तो सठियाई गए हो अनाप सनाप हरकत करत रहत हो ये तुमरी ही कारस्तानी है तुम्हें नही मालूम कि घर मे मुर्दा या हड्डी रखना अपशगुन होत है।तुम तो शेष नाग की फुंकार की तरह फुंकार मारीक़े सोई रहे थे हमने डाँगी डोम को पूरे बीस रुपये दिया तब जाकर उसने खोपड़ी के छोटे छोटे टुकड़े करके गांव की नदी में विसर्जित कर दिया पता नही किसकी खोपड़ी थी बेचारे की आत्मा भटक रही होय अब कम से कम स्वर्ग चाहे नरक में वोका कौनो जगह तो मील जाई पंडित महिमा दत्त प्रफुल्लित हो बोले शाबाश पंडिताइन आज जिनगी में नीक काम किये हऊ पंडताईंन बोली ऊ सब त ठीक है मगर ई खुराफात तोहरे दिमाग मे कहाँ से आई गइल की जाने केकर खोपड़ी उठाई लाये और इहो ना समझे कि घर मे मुर्दा क हड्डी रखे अशुभ होत है पंडित तू पगला त पहिले गई रहे अब सठियाई गइल हवो
पंडित जी ने पंडताईंन का कोई जबाब ना देकर पंडिताइन को चुप रहने को विवस कर दिया।पंडित महिमा दत्त के पेट मे खलबली मची हुई थी वे जल्द से जल्द ठाकुर सतपाल सिंह से सपने की मुलाकात और खोपडी के साथ सांप के रहस्य को लाला ग़ज़पति से साझा करना चाहते थे फटाफट पंडित तैयार होकर लाला ग़ज़पति से मिलने के लिये चलने को हुए पंडताईंन ने उन्हें जल जलपान के लिये रोकना चाहा मगर पंडित ने पंडताईंन की एक भी बात नही सुनी और घर से निकल पड़े तुरंत ही वह लाला ग़ज़पति के घर पहुंच गए लाला ग़ज़पति उनको देखकर आश्चर्य से सवाल दाग दिया बोले का पंडित तू रात भर सोए नाही पंडित बोले लाला झट से कुछ जल जलपान कराव स्थिर होई जात हई त तबशील से सारा किस्सा बतावत हई लाला जी स्वयं घर के अंदर गए और जोरदार जलपान की व्यवस्था साथ लेकर आये लाला जी खाने पीने के शौकीन थे पंडित जी ने जलपान शुरू करने से पहले कहा लाला आज लगत ह की हमहू मनई हई एतना बढ़िया जलपान त हम छठे छ मासे करीत है लाला अभिमान से अहल्लादित होकर बोले पंडित जी तोहरे यहाँ त दही चुड़ा और पूड़ी सब्जी वियाह भोज यज्ञ पारोज में चलत ह तू का जान खाय पिये के शौक चल जलपान पाव और बताव की का बाती रही कि तू भागे भागे सुबहे फाटि परे पंडित जी जलपान का निवाला घोटते हुए रात अपने सपने में
ठाकुर सतपाल से मुलाकात की बात बताई और नदी से नहा के लौटते समय खोपडी और सांप का पूरा किस्सा बताया लाला पंडित की सारी बात सुनने के बाद बोले पंडित लागत है तोहरी दिमागी हालत ठीक नाही है आरे ठाकुर जियत जी कबो कही जात रहा सारा खुराफात हम लोगन के बुलाई के शामिल बाज़ा की तरह बजावत रहा मरे के बाद पड़ा होई कही सपनो में आवे खातिर कुछ मेहनत करे क पड़ी उ त खुराफात क पकापकया माल बैठे खाय का आदि रहा तू नाही जनत हमने के साथी रहा
पंडित बोले लाला विश्वाश करो हम सही बोल रहे है लाला बोले अब पंडित सही बोल या गलत हमे विश्वाश नाही है पंडित बोले भाई गजपति एक दिन तुहु ई सच्चाई के मान जॉब और सुन लाला ठाकुर सतपाल यमराज की सत्ता के चुनौती दिए हन उहा के सारे कारिंदा सांसद विधायक पार्षद के आपने पक्ष में करिके जमराज के अकेला औकात बताई दिए हैं लाला पंडित की बात गौर से सुनने के बाद झट से पंडित की नाड़ी पकड़े बोले पंडित वैसे त तोहार तबियत खराब नाही दिखत बा फिर भी तोहे इलाज की जरूरत बा चाहे तू सठियाई गए हो अनाप सनाप बक़े जाई रहा हौ पंडित बोले लाला तू जौन चाहे बक मगर सच्चाई ईए है लाला ग़ज़पति ने कहा माना ठाकुर सतपाल की खुराफाती खोपडी के लोहा गांव भर मानत रहा और ऊके सिक्का हम लोग चलावत रहे मगर जमपुरी में उनकर औकात कौनो नरक के कीड़ा मकोड़ा के होई
पंडित महिमा दत्त बोले लाला मान चाहे ना मान एक दिन सच्चाई समझ जाब। लाला गजपति बोले छोड़ पंडित ई सब बवाल अब गाँव मे कईसे हम दुनो मनई राज करि ए पर विचार करो पंडित ने मशवरा झट लाला ग़ज़पति को दिया बोले पूरे गांव के टोलो को जो पहले से जाति के आधार पर बांट दिया है उनको सिर्फ एहसास करके उनमें एक एक नौजवान नेता रूरल बैरिस्टर पैदा कर देते है फिर क्या हम लोग गांव के बादशाह और बादशाहत कायम।।लाला को पंडित का यह सुझाव सटीक लगा और उस पर अमल की कार्य योजना बनाकर रण नीति कार्य योजना पर विचार विमर्श के बाद पंडित अपने घर चले गए और लाला अपने खुराफात की रणनीति में मशगूल हो गए।दिन बीतने के बाद लाला ग़ज़पति रात्री को खाना खा कर सोने लगे जब लाला ग़ज़पति गहरी नींद में सोए हुए थे कि नीद में एकाएक ठाकुर सतपाल अवतरित होकर बोले लाला ग़ज़पति पंडित महिमा तोहरे पास सपने में हमारी मुलाकात की बात कहेन तू भरोसा काहे नाही किये वैसे तो जिंदा रहित जितना झूठ फरेब कहत करत बोलित तीनो मित्र केहू केहू पर सवाल खड़ा नाही करत मगर आज काहे ना विश्वास कीहै लाला ग़ज़पति बोले हम भूत प्रेत में विश्वास नाही करीत ठाकुर सतपाल बोले सुनो लाला हम भूत उत नाही है हम त भूत बनावे वाला यमराज के भूत बनावे वाला हई तू और पंडित जब उहा से शरीर छोड़ कर आईब तब यमपुरी की शासन व्यवस्था हम तीनों के हाथ मे रही और यमराज जएहन जमीन पर जमराज के भूत बनके त लाला ग़ज़पति जल्दी से मिशन वैल्लोर पूरा करके यहां आओ यमपुरी की सत्ता संभालनी है और सुनो लाला तू चित्र गुप्त और जमराज पंडित यमपुरी की न्याय व्यवस्था सम्भालेंगे न्याय के मुख्य दंडा अधिकरी होंगे और मैं स्वय यमराज की भूमिका निभाउंगा देखो भाई लाला गज़पति हमने यमपुरी की सत्ता हथियाने के लिये यमपुरी में यमराज से अकेले लोहा लिया और सल्तनत कायम की है तुमको पोर्टफोलियो और पद को लेकर कोई संसय हो तो बताओ लाला गजपति बोले नही ठाकुर सतपाल यहाँ भी जीते जी तुमने हमे और पंडित के लिये सत्ता सुख सोमारू को माध्यम बनाकर सौंपी थी और मरने के बाद भी तुमने दोस्ती का ख़याल रखा हमे ठाकुर सतपाल का हर फैसला स्वीकार है ।तब ठाकुर सतपाल बोले लाला अब जल्दी से तुम और पंडित मिलकर गाँव बिल्लोर में हमेशा के लिये हम लोंगो की विचार धरा की स्थाई सत्ता की मुस्तकिल बुनियाद बनाकर यहाँ आओ और हम यहॉ की सत्ता से सम्पूर्ण संसार पर शासन की बागडोर संभाले इतना कह कर ठाकुर सतपाल अंतर्ध्यान हो गए लाला गजपति की नीद खुली सुबह हो चुकी थी लाला गजपति को सुबह नई उर्जा दे रही थी उठकर वे पंडित महिमा का इंतज़ार करने लगे कुछ ही देर सूरज चढ़ने पर पंडित महिमा लाला गजपति के सामने हाज़िर थे उनको देखते ही लाला बोल उठे पंडित तू सही कहत रहे राती के ठाकुर सतपाल हमरे सपने में भी आयन और सारी बात बताएंन उनकर इच्छा है की हम दुइनो मिलके विल्लोर में अपनी सिद्धान्त की सत्ता जल्दी से मुस्तकिल कर देई अब समय कम है हमे तोहे साथ चलीके जमपुरी में उहोके सत्ता ठाकुर सतपाल के साथ सभालेके बा अब जेतना जल्दी हो सके ईहां के काम पूरा किया जाय पंडित महिमा दत्त ने कहा देखा मित्रता ठाकुर सतपाल दोस्ती के मिशाल कायम किहेन ठाकुर सतपाल की जय जय जय ।।

नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर




चुनाव आया

*चुनाव आया*

लगता चुनाव आया है ..
जे हर बार मुँह लटकाये फिरता ,
उसके पटिया पे चमकाव आया है,
आगे-पीछे घूमी जो करे बड़बड़ ,
नरेगा राशन कार्डकी चाव आया है ।
लगता…..
वाणी मे पालिस के भाव आया है
नेता जी में अचानक बदलाव आया है
लगता….
दो -चार मिल किया चापलूसी
पुरा कार्यकाल जिया खुशी-खुशी
चाय-समोसा दरी लगाई आमसभा में
गमछा में अचके स्वभाव आया हैं।
लगता…
कोई वार्ड मुखिया कोई सरपंच बने
भार मे जाएँ पहले हम टंच बने
बड़ी- बड़ी लग्जरी चैन ले हम
शौक पुरा करने की दाव आया है ।
लगता ….
जाड़ेमें सगरी कंबल-चादर फेकाए
बारबार दौड़ सबके हाल चाल पुछाए
बिन बुलाए सबके घर समा गुन्जाए
आज चौक सगरी अलाव आया हैं।
लगता …
कोई चरित्रहीन अपनेको न्यायप्रिय बताएँ
कही कफनचोर कोई हरिश्चन्द्र बन जाएं
देखा नही स्वयं को लंबा डीन्ग हकाए
सबका अलगे-अलगे भाव आया है ।
लगता …
कही चौक साफ तो कही बगिया चमके
हर गलती मे चमचन पे मालिक भौके
सही शुद्ध विचारी सगरी बैनर चमके
देख साधु के सगरी बदलाव आया है ।
लगता पंचायती चुनाव आया हैं
लगता चुनाव आया हैं ।

शैलेन्द्र कुमार साधु
जलालपुर सारण बिहार
9504971524




स्मारक

गांव में अमूमन शान्ति का माहौल था
क्योकि गांव के खुराफातियों ठाकुर सतपाल की मृत्यु हो चुकी थी और लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त का मन पसंद शोमारू गांव का प्रधान हो चुका था ।शोमारू कम पढ़ा नही था सिर्फ साक्षर और सीधा साधा गंवार किस्म का अतिसाधारण ग्रामवासी था उसे किसी खुराफात से कोई मतलब नही था एव ना ही प्रधान होने का गुरुर या लालच।जो भी लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त कहते करता जाता उसके लिये लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त के आदेश का पालन ही अपना धर्म कर्म था इसके अतिरिक्त वह अपना कुछ भी दिमाग नही लगाता कुल मिलाकर लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त की चाकरी ही करता।धीरे धीरे समय बीत रहा था गांव वाले भी सुकून में थे किसी को गांव के विकास की कोई फिक्र नही थी खुशी इस बात पर थीं कि गांव में कोई नया फसाद नही खड़ा हो रहा था गांव वालों को लग रहा था गांव का विकास हो या ना हों अमन चैन बना रहे उनको यह भी चिंता नही थी कि पंडित महिमा दत्त एव लाला गजपति शोमारू से अनाप सनाप कार्य एव निर्णय कराते रहते ।चौधरी सुरेमन के प्रधान रहते गांव में विकास की एक धारा बह रही थी और उनकी लोकप्रियता से गांव की खुराफाती तिगड़ी पंडित महिमा दत्त ठाकुर सतपाल एव लाला गजपति उसे परेशान करने की खुराफ़त करते जिसमे वे सफल भी हो गए थे मगर गांव वालों को विकास से अधिक शांति प्रिय लगी और मात्र तीन साल बाद पुनः प्रधानी का चुनाव होना निश्चित था अतः गांव वालों ने पंडित महिमा दत्त और लाला गजपत की कारगुजारियों की तरफ ध्यान देना बंद कर दिया।इधर पण्डित महिमा दत्त एव लाला गजपति की मनमानी को शोमारू अपना कतर्व्य मान उनके आदेश का पालन करता जा रहा था।
उधर गांव का चुना प्रधान चौधरी सुरेमन अपनी सजा काट रहा सजा समाप्त होने की प्रतीक्षा कर रहा था।
पंडित महिमा दत्त एव लाला गजपति इस बात पर आनंदितआत्मआल्लादित
थे कि मित्र ठाकुर सतपाल ने जाते जाते भी दोस्ती निभाई और हम दोनों मित्रो को अपनी कुर्बानियों से गांव की सत्ता दिलाई बेचारे सतपाल ने दोस्ती की ऐसी मिशाल कायम की जो दूँनिया में कम ही मिलती है दोस्त सतपाल ने
अपनी चिता भी मांगी तो मोक्ष या मुक्ति के लिये नही वरन हम दोनों मित्रो के लिये दोस्त हो तो ऐसा पंडित महिमा एव लाला गजपति ने आपस मे विचार किया कि क्यो न हम लोग गांव में ठाकुर सतपाल सिंह के नाम का स्मारक बनवाये इस कार्य के लिये इस वक्त से मुफीद वक्त नही मिलने वाला क्योकि शोमारू प्रधान है तो मित्र सतपाल सिंह के स्मारक के लिये जगह भी मिल जाएगी और पैसा भी पंडित महिमा दत्त एव लाला गजपति ने आपस मे सलाह मशविरा करके गांव में जहाँ सदबुद्धि यज्ञ की पूर्णाहुति हुई थी वही जगह ठाकुर सतपाल के स्मारक के लिये सबसे उचित लगी दोनों स्वयं प्रधान शोमारू के पास गए और ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक के वावत बात की जब ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक की बात चल रही थी ठीक उसी समय शोमारू की पंद्रह साल की बेटी चबेना और गुड़ लेकर वहाँ आयी पंडित महिमा और लाला गजपति की निगाह शोमारू की बेटी सुगनी पर पड़ी दोनों ने एक टक देखने के बाद शोमारू से पूछा शोमारू यह तुम्हारी बेटी है सीधा साधा शोमारू निश्चल निर्विकार बोला हाँ हुज़ूर यह मेरी बेटी सुगनी है दसवीं जमात में पढ़ती है अब तक गांव की कउनो लड़की इतना नाही पढ़े है। पंडित महिमा और लाला गजपति ने कहा तोर भाग शोमारू देख आज तक तोरे बिरादरी में केहू प्रधान होखे खातिर सोच सकत रहे देख ते प्रधान है और एमा हमरे मित्र ठाकुर सतपाल केतनी बड़ी कुर्बानी दिए है ।सुगनी वहां से जा चुकी थी पुनः पंडित महिमा और लाला गजपति ठाकुर सतपाल के स्मारक के लिये विचार विमर्श करने लगे शोमारू प्रधान बोले हुज़ूर आप तो जनते हो हम ठहरे नीरा गवार जहां कहेंगे वहां हम ठाकुर साहब का स्मारक की जमीन की जगह के लिये अंगूठा लगाई देब तब पंडित महिमा एव लाला गजपति ने बड़ी होशियारी से शोमारू को समझाना शुरू किया पंडित महिमा दत्त बोले देखो शोमारू जहाँ सदबुद्धि यज्ञ की पूर्णाहुति हुई थी वह जगह मरहूम ठाकुर सतपाल सिंह जी के लिये वाजिब होगी क्योंकि सदबुद्धि यज्ञ की आग से ही मुखाग्नि की ठाकुर साहब की अंतिम इच्छा थी और वे उसी अग्नि में समहित भी हुए शोमारू ने पूछा हुज़ूर जब ठाकुर साहब गांव में आग लागे से पहले मर चुके थे तब का उनका मुर्दा आग में कूदा रहा तब लाला गजपति एव पंडित महिमा ने अभियान में एक साथ बोला बक बुरबक कही मुर्दा आग में कूद सकत है और बात को बादलते हुए बोले ई वखत एकर समय नाही है कि मरहूम ठाकुर सतपाल सिंह जिंदा आग में कूदे या जिंदा मणनसन्न अवस्था मे उनका कोउ फेंक दिहेस ई समय उनके स्मारक की बात हुई रही है शोमारू बोला मालिक सदबुद्धि यज्ञ की जमीन त गांव में प्राइमरी पाठशाला खातिर हौ हाकिम लोग जांच पड़ताल करके गवाँ है पुनः लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त ने शोमारू को समझाना शुरू किया बोले देख शोमारू गांव में प्राइमरी पाठशाला खुले ना खुले वोसे ना ते गांव प्रधान बने है और खुलिओ जाय त फिर ना बनपैबे सोमारू बोला हुज़ूर हम प्रधान रही चाहे ना रही मगर गांव में प्राइमरी पाठशाला खुले से गांव के लड़िका पढ़िये लिखिए त गांव के तरक्की होई तब दबाव और भय की राजनीति का दांव खेलते पंडित महिमा और लाला गजपति ने कहा कि देख शोमारू गांव में पाठशाला खुले ना खुले सदबुद्धि यज्ञ के पुर्णाहुति कुंड की जमीन पर ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक जरूर बनी चाहे उनकर बने चाहे तोहरे साथ बने शोमारू को अंदाजा लग गया कि अगर अब उसने आना कानी की तो निश्चित ही दोनों मिलकर उसे सांसत में डाल सकते है शोमारू ने तुरंत कहा हुज़ूर गांव आपोके है आप लोग होशियार मनई ह कुछ गलत थोड़े करब ठीक है ठाकुर साहब के स्मारक जहाँ कहत ह वही बने तब पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति एक साथ बोले कल गांव पंचायत सदस्यन से प्रस्ताव पारित कराके सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड की जमीन ठाकुर सतपाल सिंह जी के स्मारक के लिये निश्चित कराइलेव भईया प्रधान जी शोमारू बाबू इतना कह कर पंडित महिमा और लाला गजपति शोमारू के घर से निकले रास्ते मे पंडित महिमा दत्त बोले कि देखा लाला गजपति सोमारुआ के बिटिया कैसी जवान लाज़बाब गुदड़ी क लाल लागी रही थी लाला गजपति बोले पंडित जी बात त ठिके कहत हौव् मगर समय के इन्तज़ार कर रस और मीठा होई पंडित महिमा दत्त बोले लाला जी सुगनी के हाथे क गुड़ चबेना खाईके हम मताई गइल हई अब त लगता कि गुड़ चबेना खाये रोजे जाएके परी लाला गजपति बोले पंडित तू पगलाई गइल हव सबर कर सबर क फल मीठ होत है जैसे पंडित जी कलेजे पर जैसे पत्थर रख दिया गया हो बोले ठिके ह लाला जी काल हम जात हई नदी नहाए ससुरा गाँवई के पंजरे नदी लरिकाई में सांझा सुबह दुपहरिया हर दम नहात रहेन अब दस वरस होई गइल होली संक्रांति पुर्नवासीओ ना नहाइत काल भोरे जाब पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति दोनों अपने घर चले गए।
सुबह चार बजे ब्रह्म मुहूर्त में पंडित महिमा दत्त उठे और पंडिताइन से बताया कि आज गांव के पास नदी स्नान के लिये जा रहे हैं गांव के पंचायत सदस्यों की बैठक सतपाल सिंह के स्मारक के जमीन पर प्रस्ताव हेतु सहमति पर बैठक से पहले लौट आएंगे । लोटा धोती लेकर स्नान के लिये घर से निकल पड़े नदी गांव से लगभग आधे मिल दूरी पर थी अतः कुछ ही देर में पंडित महिमा दत्त नदी तट पहुंचे तुरंत नित्य कर्म से निबृत्त होकर नदी में स्नान किया और फिर गांव की ओर चलने लगे। ज्यो ही दस कदम आगे बढ़े उनके दाहिने पैर का अंगूठा नदी की रेत में किसी खोखले बस्तु में फंस गया पंडित जी ने गौर से देखा तो वह किसी मानव की खोपड़ी की अस्ति पंजर थी जिसमे उनके पैर का अंगूठा फंस गया था पंडित जी ने विचार किया कि अभी नदी स्नान कर निकले है यह भगवान की कृपा है कि यह मानव खोपड़ी किसी विशेष भविष्य में छिपे रहस्य के कारण ही टकराई है क्यो न इसे संभाल कर घर ले चला जाय पंडित जी ज्यो ही उस खोपड़ी को उठाने के लिये नीचे झुके देखा कि खोपड़ी में गेहुआँ सांप कोबरा छिपा बैठा था पंडित जी को लगा जैसे भगवान स्वयं उस मानव खोपड़ी में सांप बनकर बैठे है सो पंडित जी ने मानव खोपड़ी को अपने भीगे कपड़े में बड़ी मुश्किल से लपेट लिया जिसमें खोपड़ी के साथ साथ साँप भी उसी गीले कपड़े में बंध गया अब पंडित जी खोपड़ी और उसमें छिपे सांप को अपने डंडे के एक किनारे बांध लिया और डंडे को कंधे पर रख कर गांव में वही पहुंचे जहां गांव के देवता के स्थान पर पीपल के पेड़ के निचे ठाकुर सतपाल के स्मारक की जमीन के प्रस्ताव पर विचार विमर्श चल रहा था जब पंडित जी वहां पहुंचे तो पंचायत के जले भुने सदस्यों ने व्यंग मारते हुए एक स्वर में कहा आईये यहां लाला गजपति तो थे ही आपही की कमी थी पंडित जी ने भी उसी अंदाज में जबाब दिया तुम गांव वालों की क्या मजाल जो मेरे और लाला गजपति के बिना कोई भी कार्य कर सको लो मैँ हाजिर हो गया।
अब पुनः ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक के लिये जमीन पर चर्चा शुरू हुई पंचायत के सारे सदस्य अड़े थे कि सदबुद्धि यज्ञ के पुर्णाहुति की जगह गांव में प्राइमरी स्कूल के लिये है अतः उसे स्मारक के लिये नही दिया जा सकता पंडित जी के आने से पहले लाला गजपति ग्राम पंचायत के सदस्यों को संमझा कर तंग आ चुके थे मगर कोई असर नही हुआ। शोमारू प्रधान ने कह रखा था कि गांव पंचायत सदस्यों को मनाना पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति का काम है।तेज हवा पछुआ भी चल रही थी और बसंत का खुशगवार मौसम था पंडित जी ने अपने गीली धोती में बंधी मानव खोपड़ी अपने डंडे सहित पीपत के पेड़ में किसी तरह अटका रखी थी जब पंडित जी पंचायत की बैठक में आये और पीपल के पेड़ में अपनी लाठी में बंधे खोपड़ी को रखने की जुगत कर रहे थे तभी बैठक में बैठे सभी पंचायत सदस्यों को किसी खुराफात की आसंका हुई मगर किसी ने ध्यान इसलिये नही दिया कि कोई खास बात नज़र नही आई।पंडित जी की पुरानी धोती में बंधी खोपडी गांव पंचायत बैठक में पहुचते पहुचते फट चुकी थी पंडित जी की लाठी के एक किनारे लटकी खोपड़ी से सांप कभी कभार अपना फन निकाल कर बाहर निकलने की आहट लेता मगर डंडे के एक किनारे लटके होने के कारण अपना फन फिर खोपड़ी में छुपा लेता अब वह पीपल के पेड़ पर फ़टी धोती से निकल कर पंचायत सदस्यों की चल रही बैठक के ठीक ऊपर वाली पतली डाल पर बैठा हवा के झोंको का आनंद ले रहा था।लाला लाजपत ने पंडित महिमा को बताया कि उनके आने से पहले उसने पंचायत सदस्यों को समझाने की बहुत कोशिश की मगर पंचायत सदस्य सद्बुद्धि यज्ञ हवन कुंड की जगह प्राइमरी विद्यालय बनाने को आड़े है।पंडित महिमा के समझ मे आ गया कि बात सीधे नही बनने वाली है उन्होंने बोलना शुरू किया देखो भाई पंचायत सदस्यों सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड के जगह पर तो मरहूम ठाकुर सतपाल जी का स्मारक ही बनेगा चाहे जितना बखेड़ा खड़ा करना हो कर लो ठाकुर सतपाल ने शरीर छोड़ा है ना तो हम लोगों का साथ छोड़ा है ना गांव ठाकुर आदमी जो चाहते है उसे जिंदा या मुर्दा किसी तरह पूरा ही करते है।अब मैँ ठाकुर सतपाल से ही पूछता हूं बताओ मित्र तुम्हारा स्मारक सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड पर बनेगा की नही पंचायत के सारे सदस्य पंडित महिमा का चेहरा देखते कहने लगे पण्डितवा पगलाई गवा का ई ससुर जियत है तो स्मारक के जमीन खातिर कुछ करि नाही पावत हैं अब मुर्दा ठग सतपाल का करि जब जिंदा लाला गजपति और ई कुछ नाही करि सकत अभी संसय परिहास के मध्य पंचायत सदस्य पड़े हुये थे कि खोपड़ी का सांप जो खोपड़ी से निकल पीपल के डाल पर बैठा था एकाएक पंचायत सदस्य मुसई पर गिरा और उसको डस लिया मुसई गिरकर तड़फड़ाने लगा बाकी लोगों ने मिलकर साँप को मारने की कोशिश और बड़ी मुश्किल से उसे मार सके अब मुसई के उपचार में झाड़ फूंक हुआ मगर मुसाई को बचाया नही जा सका ।गांव वालों के बीच चर्चा आम हो गई कि सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड की जगह ठाकुर सतपाल के स्मारक हेतु दे दी जानी चाहिए नही तो जीते जी ठाकुर ने कम परेशान किया मरने के बाद और परेशान करेगा जैसा कि पंडित महिमा कह रहे थे अब पंचायत के सभी सदस्य एकमत होकर सदबुद्धि यज्ञ की जमीन ठाकुर सतपाल सिंह जी के स्मारक के लिये दे दी और सभी ने मिलकर ठाकुर का भव्य स्मारक बनवाया और बड़े जोर शोर से उसका उद्घाटन विधि विधान से करवाया और ठाकुर साहब की प्रतिमा के समक्ष खड़े होकर गांव की हिपज़त का आशीर्वाद मांगते हुए प्रार्थना की ठाकुर साहब आपने जीवित रहते हुए अपने दो मित्रो लाला गजपति और पंडित महिमा के साथ मिल कर गांव वालों को बहुत परेशान किया मरते मरते भी आपने चैधरी सुरेंमन को जेल भेज दिया और अब मुसाई की जान आपके ही स्मारक के चक्कर मे अखड़ेरे चली गयी अब आप हम गांव वालों पर रहम करो ।गाँव वालों की प्रार्थना सुनकर पंडित महिमा और लाला गजपति बोले गांव वाले आप चिंता ना करो हम लोग ठाकुर सतपाल की आत्मा को मनाएंगे और कोशिश करेंगे कि अब गांव में शांति सौहार्दपूर्ण वातावरण बरकरार रहे मगर इसके लिये गांव के हर घर से ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक पर एक रुपया हर इतवार को चढ़ाया जाना होगा गांव वालों ने खुशी खुशी पंडित और लाला की शर्त स्वीकार कर ली अब क्या था हर इतवार को लाला और पंडित के पास पांच सौ रूपये आ जाते जिससे वे अपनी अनाप सनाप जरूरतों हेतु खर्च करते।गांव में अमूमन शांति का माहौल कायम था।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश