
अनूदित कविता

प्रभांशु कुमार की नई कविता-मेरे अंदर का दूसरा आदमी
मेरे अंदर का दूसरा आदमी मेरा दूसरा रुप है, वर्तमान परिदृश्य का सच्चा स्वरूप है। रात में सो
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
मेरे अंदर का दूसरा आदमी मेरा दूसरा रुप है, वर्तमान परिदृश्य का सच्चा स्वरूप है। रात में सो
वह आदमी निराश नही है अपनी जिन्दगी से जो सड़क किनारे कूड़े को उठाता हुआ अपनी प्यासी आंखो