

महिला दिवस पर आयोजित काव्य हेतु
कविता मै आज भी आजाद नही हूँ किन्तु , वक्त की आँखों में आँखे डाल कर, आज
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
कविता मै आज भी आजाद नही हूँ किन्तु , वक्त की आँखों में आँखे डाल कर, आज
कविता जाने क्यों? जाने क्यों लगता है, भूलाने लगे हो तुम मुझको, वक्त की गीली मिट्टी के
कविता ******** तुम कैसे हो? अब नहीं कह पाती हूँ, जीवन की आपा -थापी में निश्चल अनुराग
तुम साथ मेरे तो हो जाओ | हम दुनिया नई बसा लेंगे , जीवन की हर बगिया में
एहसास .. थी उम्मीद कि तुमसे मिलके, जिंदगी-जिंदगी होगी | फक्त ना उम्मीदी ने ना
“देशभक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता” हेतु कविता –देश की मिट्टी देश की मिट्टी अपने देश की मिट्टी की, बात