ग़ज़ल,,,,, जीवन के संदर्भ,,,,,
ग़ज़ल,,,,, जीवन के संदर्भ बड़े गंभीर हुए।। हम कमान पर चढ़े हुए बिष तीर हुए।। मृगतृष्णा केभ्रम
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
ग़ज़ल,,,,, जीवन के संदर्भ बड़े गंभीर हुए।। हम कमान पर चढ़े हुए बिष तीर हुए।। मृगतृष्णा केभ्रम
दोहे ,,, 1,,, इच्छाएं घर से चलीं,कर सोलह श्रृंगार।। लौटी हैं बेआबरू, हो घायल हर बार।। 2,,, आंधी
ग़ज़ल,,,,, फूलों की खुशबुओं से महकता जिगर रहा।। जब तक किसी हसीन का कांधे पर सर रहा।।
मां,,,,, 1,,, मां चंदा की चांदनी ,मां सूरज की धूप।। वक़्त पड़े ज्वालामुखी ,वक्त़ पड़े जल रूप।। 2,,,,
ग़ज़ल,,, उस घड़ी हमने नहीं की फिक्र,अपनी जान की।। बात आगे आ गई जब देश के सम्मान की।।